"हम लोगों को इस भ्रमित करने वाले समाज से बचाने का प्रयास कर रहे है। यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। हम स्वयं को और दुसरो को भी सबसे उत्तम जीवन जीने के लिए प्रेरित कर रहे है। कृष्ण प्रारम्भ में ही यह शिक्षा देते है की आप शरीर नहीं, आत्मा है। इसी से भगवद-गीता की शुरुआत होती है। देहात्म बुद्धि के स्तर पर आध्यात्मिक ज्ञान होना कैसे संभव है? लोग आध्यात्मिक विषयो पर बात करते है परन्तु सबसे पहले व्यक्ति को यह समझना होगा की वह आत्मा है, शरीर नहीं। अहं ब्रह्मास्मि। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। "यदि मै ब्रह्मन हु तो मेरी जीवन का मूल्य क्या है? मैंने पूरा जीवन स्वयं को शरीर मानकर कार्य किया जबकि मै तो ब्रह्मन हु।" तब ब्रह्मा जिज्ञासा जागृत होती है। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा।"
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