HI/770511 - श्रील प्रभुपाद ऋषिकेश में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कोई भी प्रामाणिक व्यक्ति कभी ये नहीं कहेगा की वह भगवान है। यदि कोई ऎसा कहे तो वह सबसे बड़ा दुष्ट है। भगवान को इतना सस्ता नहीं समझना चाहिए। चैतन्य महाप्रभु ने ऎसा कभी नहीं कहा। वे स्वयं को दासों के दासों का दास मानते थे। गोपी भर्तुः पद कमलयोर दास-दास-दासानुदासः (सी.सी मध्य १३.८०)। बिलकुल सौ कदम पीछे। और यही असली पेहचान है। जैसे ही कोई व्यक्ति कहता है की वह भगवान है, उसी क्षण हमे समझना चाहिए की वो पागल है। वह भगवान का अंश है। यही वास्तविक सत्य है।" |
770511 - बातचीत - ऋषिकेश |