"हमारे वैष्णव कवि, कविराज गोस्वामी कहते है, भुक्ति-मुक्ति-सिद्धि-कामी सकली अशांत: "जो लोग भोग करने की इच्छा रखते है - भौतिक जगत में इन्द्रिय-तृप्ति के द्वारा अथवा ब्रह्मज्योति में लीन होकर अथवा अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त करके - वो कभी खुश नहीं रह सकते।" क्योंकि उनकी वासनाये अभी समाप्त नहीं हुई है। हो सकता है मेरी भोग्य वस्तु आपके भोग्य वस्तु से अधिक महान हो परन्तु वासना तो है। इसलिए जिनके ह्रदय में वासनाये है, वो कभी खुश नहीं हो सकते। भुक्ति-मुक्ति-सिद्धि-कामी सकली अशांत, कृष्ण भक्त निष्काम (सी.सी मध्य १९.१४९). कृष्ण भक्त को कुछ नहीं चाहिए। अतएव शांत। अतः वह संतुष्ट है। स्वामिन कृतारथोस्मि वरं न याचे (सी.सी मध्य २२.४२): "मुझे कुछ नहीं चाहिए। मै पूरी तरह से संतुष्ट हूँ।"
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