HI/770528b बातचीत - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
प्रभुपाद: कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति (भ गी ९.३१). यदि किसी ने केवल एक दिन के लिए पूरी निष्ठा के साथ कृष्ण कि सेवा की है तो वह कभी भक्ति से दूर नहीं जा सकता। उसे कृष्ण का पूरा संरक्षण प्राप्त होता है। इस जीवन में और अगले जीवन में भी। वह कौन सा श्लोक है जो आप पढ़ रहे थे? त्यक्त्वा स्वधर्मं चरणाम्बुजं हरे-र्भजन्नपक्वोऽथ (श्री भाग १.५.१७).
भारतीय भक्त (1): क्व वाभद्रमभूदमुष्य किं। प्रभुपाद: आह। क्व वाभद्रमभूदमुष्य किं। कोई अगर एक दिन के लिए बस कृष्ण की थोड़ी सेवा कर दे तो वह भगवान को हमेशा के लिए याद रहेगा। वह सेवा कभी व्यर्थ नहीं जायेगा। पर हमे यह सोचकर अपनी भक्ति में लापरवाही नहीं करना चाहिए। यह ठीक नहीं। तस्यैव हेतो: प्रयतेत कोविदो न लभ्यते यद्भ्रमताम (श्री भाग १.५.१८). हरे कृष्ण। कितना अच्छा है ये। |
770528 - बातचीत A - वृंदावन |