HI/BG 1.10

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 10

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् ।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥१०॥

शब्दार्थ

अपर्याह्रश्वतम्—अपरिमेय; तत्—वह; अस्माकम्—हमारी; बलम्—शक्ति; भीष्म—भीष्म पितामह द्वारा; अभिरक्षितम्—भलीभाँति संरक्षित; पर्याह्रश्वतम्—सीमित; तु—लेकिन; इदम्—यह सब; एतेषाम्—पाण्डवों की; बलम्—शक्ति; भीम—भीम द्वारा; अभिरक्षितम्—भलीभाँति सुरक्षित।

अनुवाद

हमारी शक्ति अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भलीभाँति संरक्षित हैं, जबकि पाण्डवों की शक्ति भीम द्वारा भलीभाँति संरक्षित होकर भी सीमित है ।

तात्पर्य

यहाँ पर दुर्योधन ने तुलनात्मक शक्ति का अनुमान प्रस्तुत किया है । वह सोचता है कि अत्यन्त अनुभवी सेनानायक भीष्म पितामह के द्वारा विशेष रूप से संरक्षित होने के कारण उसकी सशस्त्र सेनाओं की शक्ति अपरिमेय हैं । दूसरी ओर पाण्डवों की सेनाएँ सीमित हैं क्योंकि उनकी सुरक्षा एक कम अनुभवी नायक भीम द्वारा की जा रही है जो भीष्म की तुलना में नगण्य है । दुर्योधन सदैव भीम से ईर्ष्या करता था क्योंकि वह जानता था की यदि उसकी मृत्यु कभी हुई भी तो वह भीम के द्वारा ही होगी । किन्तु साथ ही उसे दृढ विश्र्वास था कि भीष्म की उपस्थिति में उसकी विजय निश्चित है क्योंकि भीष्म कहीं अधिक उत्कृष्ट सेनापति हैं । वह युद्ध में विजयी होगा यह उसका दृढ निश्चय था ।