HI/BG 1.13

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 13

ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥१३॥

शब्दार्थ

तत:—तत्पश्चात्; शङ्खा:—शंख; च—भी; भेर्य:—बड़े-बड़े ढोल, नगाड़े; च—तथा; पणव-आनक—ढोल तथा मृदंग; गो-मुखा:—शृंग; सहसा—अचानक; एव—निश्चय ही; अभ्यहन्यन्त—एकसाथ बजाये गये; स:—वह; शब्द:—समवेत स्वर; तुमुल:—कोलाहलपूर्ण; अभवत्—हो गया।

अनुवाद

तत्पश्चात् शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग सहसा एकसाथ बज उठे | वह समवेत स्वर अत्यन्त कोलाहलपूर्ण था |