HI/BG 1.27

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 27

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ।
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ॥२७॥

शब्दार्थ

तान्—उन सब को; समीक्ष्य—देखकर; स:—वह; कौन्तेय:—कुन्तीपुत्र; सर्वान्—सभी प्रकार के; बन्धून्—सम्बन्धियों को; अवस्थितान्—स्थित; कृपया—दयावश; परया—अत्यधिक; आविष्ट:—अभिभूत; विषीदन्—शोक करता हुआ; इदम्—इस प्रकार; अब्रवीत्—बोला।

अनुवाद

जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला |