HI/BG 10.30

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 30

प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥३०॥

शब्दार्थ

प्रह्लाद:—प्रह्लाद; च—भी; अस्मि—हूँ; दैत्यानाम्—असुरों में; काल:—काल; कलयताम्—दमन करने वालों में; अहम्—मैं हूँ; मृगाणाम्—पशुओं में; च—तथा; मृग-इन्द्र:—ङ्क्षसह; अहम्—मैं हूँ; वैनतेय:—गरुड़; च—भी; पक्षिणाम्—पक्षियों में।

अनुवाद

दैत्यों में मैं भक्तराज प्रह्लाद हूँ, दमन करने वालों में काल हूँ, पशुओं में सिंह हूँ, तथा पक्षियों में गरुड़ हूँ |

तात्पर्य

दिति तथा अदिति दो बहनें थीं | अदिति के पुत्र आदित्य कहलाते हैं और दिति के दैत्य | सारे आदित्य भगवद्भक्त निकले और सारे दैत्य नास्तिक | यद्यपि प्रहलाद का जन्म दैत्य कुल में हुआ था, किन्तु वे बचपन से ही परम भक्त थे | अपनी भक्ति तथा दैवी गुण के कारण वे कृष्ण के प्रतिनिधि माने जाते हैं |

दमन के अनेक नियम हैं, किन्तु काल इस संसार की हर वस्तु को क्षीण कर देता है, अतः वह कृष्ण का प्रतिनिधित्व कर रहा है | पशुओं में सिंह सबसे शक्तिशाली तथा हिंसक होता है और पक्षियों के लाखों प्रकारों में भगवान् विष्णु का वाहन गरुड़ सबसे महान है |