HI/BG 11.12

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 12

दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः ॥१२॥

शब्दार्थ

दिवि—आकाश में; सूर्य—सूर्य का; सहस्रस्य—हजारों; भवेत्—थे; युगपत्—एकसाथ; उत्थिता—उपस्थित; यदि—यदि; भा:—प्रकाश; स²शी—के समान; सा—वह; स्यात्—हो; भास:—तेज; तस्य—उस; महा-आत्मन:—परम स्वामी का।

अनुवाद

यदि आकाश में हजारों सूर्य एकसाथ उदय हों, तो उनका प्रकाश शायद परमपुरुष के इस विश्र्वरूप के तेज की समता कर सके |

तात्पर्य

अर्जुन ने जो कुछ देखा वह अकथ्य था, तो भी संजय धृतराष्ट्र को उस महान दर्शन का मानसिक चित्र उपस्थित करने का प्रयत्न कर रहा है | न तो संजय वहाँ था, न धृतराष्ट्र, किन्तु व्यासदेव के अनुग्रह से संजय सारी घटनाओं को देख सकता है | अतएव इस स्थिति की तुलना वह एक काल्पनिक घटना (हजारों सूर्यों) से कर रहा है, जिससे इसे समझा जा सके |