HI/BG 11.23
श्लोक 23
- रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं
- महाबाहो बहुबाहूरुपादम् ।
- बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं
- दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम् ॥२३॥
शब्दार्थ
रूपम्—रूप; महत्—विशाल; ते—आपका; बहु—अनेक; वक्त्र—मुख; नेत्रम्—तथा आँखें; महा-बाहो—हे बलिष्ठ भुजाओं वाले; बहु—अनेक; बाहु—भुजाएँ; ऊरु—जाँघें; पादम्—तथा पाँव; बहु-उदरम्—अनेक पेट; बहु-दंष्ट्रा—अनेक दाँत; करालम्—भयानक; ²ष्ट्वा—देखकर; लोका:—सारे लोक; प्रव्यथिता:—विचलित; तथा—उसी प्रकार; अहम्—मैं।
अनुवाद
हे महाबाहु! आपके इस अनेक मुख, नेत्र, बाहु,जांघ, पाँव, पेट तथा भयानक दाँतों वाले विराट रूप को देखकर देवतागण सहित सभी लोक अत्यन्तविचलित हैं और उन्हीं की तरह मैं भी हूँ ||