HI/BG 13.6-7

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 6-7

महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः ॥६॥
इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं संघातश्चेतना धृतिः ।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ॥७॥

शब्दार्थ

महा-भूतानि—स्थूल तत्त्व; अहङ्कार:—मिथ्या अभिमान; बुद्धि:—बुद्धि; अव्यक्तम्—अप्रकट; एव—निश्चय ही; च—भी; इन्द्रियाणि—इन्द्रियाँ; दश-एकम्—ग्यारह; च—भी; पञ्च—पाँच; च—भी; इन्द्रिय-गो-चरा:—इन्द्रियों के विषय; इच्छा—इच्छा; द्वेष:—घृणा; सुखम्—सुख; दु:खम्—दु:ख; सङ्घात:—समूह; चेतना—जीवन के लक्षण; धृति:—धैर्य; एतत्—यह सारा; क्षेत्रम्—कर्मों का क्षेत्र; समासेन—संक्षेप में; स-विकारम्—अन्त:क्रियाओं सहित; उदाहृतम्—उदाहरणस्वरूप कहा गया।

अनुवाद

पंच महाभूत, अहंकार, बुद्धि, अव्यक्त (तीनों गुणों की अप्रकट अवस्था), दसों इन्द्रियाँ तथा मन, पाँच इन्द्रियविषय, इच्छा, द्वेष, सुख, दुख, संघात, जीवन के लक्षण तथा धैर्य – इन सब को संक्षेप में कर्म का क्षेत्र तथा उसकी अन्तःक्रियाएँ (विकार) कहा जाता है |

तात्पर्य

महर्षियों, वैदिक सूक्तों (छान्दस) एवं वेदान्त-सूत्र (सूत्रों) के प्रामाणिक कथनों के आधार पर इस संसार के अवयवों को इस प्रकार समझा जा सकता है | पहले तो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश – ये पाँच महाभूत हैं | फिर अहंकार, बुद्धि तथा तीनों गुणों की अव्यक्त अवस्था आती है | इसके पश्चात् पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं – नेत्र, कान, नाक, जीभ तथा त्वचा | फिर पाँच कर्मेन्द्रियाँ – वाणी, पाँव, हाथ, गुदा तथा लिंग – हैं | तब इन इन्द्रियों के ऊपर मन होता है जो भीतर रहने के कारण अन्तःइन्द्रिय कहा जा सकता है | इस प्रकार मन समेत कुल ग्यारह इन्द्रियाँ होती हैं | फिर इन इन्द्रियों के पाँच विषय हैं – गंध, स्वाद, रूप, स्पर्श तथा ध्वनि | इस तरह इन चौबीस तत्त्वों का समूह कार्यक्षेत्र कहलाता है | यदि कोई इन चौबीसों विषयों का विश्लेषण करे तो उसे कार्यक्षेत्र समझ में आ जाएगा | फिर इच्छा, द्वेष, सुख तथा दुख नामक अन्तः-क्रियाएँ (विकार) हैं जो स्थूल देह के पाँच महाभूतों की अभिव्यक्तियाँ हैं | चेतना तथा धैर्य द्वारा प्रदर्शित जीवन के लक्षण सूक्ष्म शरीर अर्थात् मन, अहंकार तथा बुद्धि के प्राकट्य हैं | ये सूक्ष्म तत्त्व भी कर्मक्षेत्र में सम्मिलित रहते हैं |

पंच महाभूत अहंकार की स्थूल अभिव्यक्ति हैं, जो अहंकार की मूल अवस्था को ही प्रदर्शित करती है, जिसे भौतिकवादी बोध या तामस बुद्धि कहा जाता है |यह और आगे प्रकृति के तीनों गुणों की अप्रकट अवस्था की सूचक है | प्रकृति के अव्यक्त गुणों को प्रधान कहा जाता है |

जो व्यक्ति इन चौबीसों तत्त्वों को, उनके विकारों समेत जानना चाहता है, उसे विस्तार से दर्शन का अध्ययन करना चाहिए | भगवद्गीता के केवल सारांश दिया गया है |

शरीर इन समस्त तत्त्वों की अभिव्यक्ति है | शरीर में छह प्रकार के परिवर्तन होते हैं – यह उत्पन्न होता है, बढ़ता है, टिकता है, सन्तान उत्पन्न करता है और तब यह क्षीण होता है और अन्त में समाप्त हो जाता है | अतएव क्षेत्र अस्थायी भौतिक वस्तु है लेकिन क्षेत्र का ज्ञाता क्षेत्रज्ञ इससे भिन्न रहता है |