HI/BG 14.15

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 15

रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते ।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ॥१५॥

शब्दार्थ

रजसि—रजोगुण में; प्रलयम्—प्रलय को; गत्वा—प्राह्रश्वत करके; कर्म-सङ्गिषु—सकाम कॢमयों की संगति में; जायते—जन्म लेता है; तथा—उसी प्रकार; प्रलीन:—विलीन होकर; तमसि—अज्ञान में; मूढ-योनिषु—पशुयोनि में; जायते—जन्म लेता है।

अनुवाद

जब कोई रजोगुण में मरता है, तो वह सकाम कर्मियों के बीच जन्म ग्रहण करता है और जब कोई तमोगुण में मरता है, तो वह पशुयोनि में जन्म धारण करता है |

तात्पर्य

कुछ लोगों का विचार है कि एक बार मनुष्य जीवन को प्राप्त करके आत्मा कभी नीचे नहीं गिरता | यह ठीक नहीं है | इस श्लोक के अनुसार, यदि कोई तमोगुणी बन जाता है, तो वह मृत्यु के बाद पशुयोनि को प्राप्त होता है | वहाँ से मनुष्य को विकास प्रक्रम द्वारा पुनः मनुष्य जीवन तक आना पड़ता है | अतएव जो लोग मनुष्य जीवन के विषय में सचमुच चिन्तित हैं, उन्हें सतोगुणी बनना चाहिए और अच्छी संगति में रहकर गुणों को लाँघ कर कृष्णभावनामृत में स्थित होना चाहिए | यही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है | अन्यथा इसकी कोई गारंटी (निश्चितता) नहीं कि मनुष्य को फिर से मनुष्ययोनि प्राप्त हो |