HI/BG 17.9

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 9

कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः ।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः ॥९॥

शब्दार्थ

कटु—कड़ुवे, तीते; अम्ल—खट्टे; लवण—नमकीन; अति-उष्ण—अत्यन्त गरम; तीक्ष्ण—चटपटे; रूक्ष—शुष्क; विदाहिन:—जलाने वाले; आहारा:—भोजन; राजसस्य—रजोगुणी के; इष्टा:—रुचिकर; दु:ख—दु:ख; शोक—शोक; आमय—रोग; प्रदा:—उत्पन्न करने वाले।

अनुवाद

अत्यधिक तिक्त, खट्टे, नमकीन, गरम, चटपटे,शुष्क तथा जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजोगुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं । ऐसे भोजन दुख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले हैं ।