HI/BG 18.29
श्लोक 29
- बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु ।
- प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय ॥२९॥
शब्दार्थ
बुद्धे:—बुद्धि का; भेदम्—अन्तर; धृते:—धैर्य का; च—भी; एव—निश्चय ही; गुणत:—गुणों के द्वारा; त्रि-विधम्—तीन प्रकार के; शृणु—सुनो; प्रोच्यमानम्—जैसा मेरे द्वारा कहा गया; अशेषेण—विस्तार से; पृथक्त्वेन—भिन्न प्रकार से; धनञ्जय—हे सम्पत्ति के विजेता।
अनुवाद
हे धनञ्जय! अब मैं प्रकृति के तीनों गुणों के अनुसार तुम्हें विभिन्न प्रकार की बुद्धि तथा धृति के विषय में विस्तार से बताऊँगा | तुम इसे सुनो |
तात्पर्य
ज्ञान, ज्ञेय तथा ज्ञाता की व्याख्या प्रकृति के गुणों के अनुसार तीन-तीन पृथक् विभागों में करने के बाद अब भगवान् कर्ता की बुद्धि तथा उसके संकल्प (धैर्य) के विषय में उसी प्रकार से बता रहे हैं |