HI/BG 5.8-9
श्लोक 8-9
- नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् ।
- पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् ॥८॥
- प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि ।
- इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥९॥
शब्दार्थ
न—नहीं; एव—निश्चय ही; किञ्चित्—कुछ भी; करोमि—करता हूँ; इति—इस प्रकार; युक्त:—दैवी चेतना में लगा हुआ; मन्येत—सोचता है; तत्त्व-वित्—सत्य को जानने वाला; पश्यन्—देखता हुआ; शृण्वन्—सुनता हुआ; स्पृशन्—स्पर्श करता हुआ; जिघ्रन्—सूँघता हुआ; अश्नन्—खाता हुआ; गच्छन्—जाता हुआ; स्वपन्—स्वह्रश्वन देखता हुआ; श्वसन्—साँस लेता हुआ; प्रलपन्—बात करता हुआ; विसृजन्—त्यागता हुआ; गृöन्—स्वीकार करता हुआ; उन्मिषन्—खोलता हुआ; निमिषन्—बन्द करता हुआ; अपि—तो भी; इन्द्रियाणि—इन्द्रियों को; इन्द्रिय-अर्थेषु—इन्द्रिय-तृह्रिश्वत में; वर्तन्ते—लगी रहने देकर; इति—इस प्रकार; धारयन्—विचार करते हुए।
अनुवाद
दिव्य भावनामृत युक्त पुरुष देखते, सुनते, स्पर्श करते, सूँघते, खाते, चलते-फिरते, सोते तथा श्र्वास लेते हुए भी अपने अन्तर में सदैव यही जानता रहता है कि वास्तव में वह कुछ भी नहीं करता | बोलते, त्यागते, ग्रहण करते या आँखे खोलते-बन्द करते हुए भी वह यह जानता रहता है कि भौतिक इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों में प्रवृत्त है और वह इन सबसे पृथक् है |
तात्पर्य
चूँकि कृष्णभावनाभावित व्यक्ति का जीवन शुद्ध होता है फलतः उसे निकट तथा दूरस्थ पाँच कारणों – कर्ता, कर्म, अधिष्ठान, प्रयास तथा भाग्य – पर निर्भर किसी कार्य से कुछ लेना-देना नहीं रहता | इसका कारण यह है कि वह भगवान् की दिव्य देवा में लगा रहता है | यद्यपि ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपने शरीर तथा इन्द्रियों से कर्म कर रहा है, किन्तु वह अपनी वास्तविक स्थिति के प्रति सचेत रहता है जो कि आध्यात्मिक व्यस्तता है | भौतिक चेतना में इन्द्रियाँ इन्द्रियतृप्ति में लगी रहती हैं, किन्तु कृष्णभावनामृत में वे कृष्ण की इन्द्रियों की तुष्टि में लगी रहती हैं | अतः कृष्णभावनाभावित व्यक्ति सदा मुक्त रहता है, भले ही वह ऊपर से भौतिक कार्यों में लगा हुआ दिखाई पड़े | देखने तथा सुनने के कार्य ज्ञानेन्द्रियों के कर्म हैं जबकि चलना, बोलना, मल त्यागना आदि कर्मेन्द्रियों के कार्य हैं | कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कभी भी इन्द्रियों के कार्यों से प्रभावित नहीं होता | वह भगवत्सेवा के अतिरिक्त कोई दूसरा कार्य नहीं कर सकता क्योंकि उसे ज्ञात है कि वह भगवान् का शाश्र्वत दास है |