HI/Prabhupada 0112 - किसी भी बात को परिणाम से माना जाता है



Television Interview -- July 29, 1971, Gainesville

प्रश्नकर्ता: जैसा कि मैंने कहा श्रीमान, अाप १९६५में इस देश में अाए , अपने आध्यात्मिक गुरु के द्वारा आपको दिए गए निर्देश या आदेश पर । वैसे, अापके आध्यात्मिक गुरु कौन थे?

प्रभुपाद: मेरे आध्यात्मिक गुरु थे ओम विष्णुपाद परमहंस भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद।

प्रश्नकर्ता: अब उत्तराधिकार की इस पंक्ति में हम जिसके बारे में बात कर रहे थे पहले, यह पारम्परिक उत्तराधिकार की यह पंक्ति जो जाती है, कृष्ण तक वापस, ठीक है, क्या अापके आध्यात्मिक गुरु अापसे पहले थे?

प्रभुपाद: हाँ। यह परमपरा उत्तराधिकार पॉच हज़ार सालों से कृष्ण से आ रही है।

प्रश्नकर्ता: अापके आध्यात्मिक गुरु अभी भी जिंदा हैं?

प्रभुपाद: नहीं, १९३६ में उनका निधन हो गया।

प्रश्नकर्ता: तो आप इस विशेष समय में इस आंदोलन के प्रमुख हो विश्व भर में? यह सही है? प्र

भुपाद: मेरे कई अन्य गुरुभाई हैं, लेकिन मुझे विशेष रूप से शुरू से यह आदेश दिया गया था। तो मैं अपने आध्यात्मिक गुरु को खुश करने की कोशिश कर रहा हूँ। बस।

प्रश्नकर्ता: अब आपको इस देश में भेजा गया था, अमेरिका को। यह अापका क्षेत्र है। क्या यह सही है?

प्रभुपाद: मेरा क्षेत्र, उनहोनें कहा कि, "तुम जाओ और यह दर्शनशास्र अंग्रेजी जानते हुए जनता को बताअो।"

प्रश्नकर्ता: अंग्रेजी बोलने वाले दुनिया के लिए।

प्रभुपाद: हाँ। और विशेष रूप से पश्चिमी दुनिया। हां। उन्होंने एसा कहा।

प्रश्नकर्ता: आप जब अाए सोलह साल पहले, इस देश में, पन्द्रह सोलह साल अौर शुरु किया ...

प्रभुपाद: नहीं, नहीं, पन्द्रह सोलह साल नहीं ।

प्रश्नकर्ता: पांच, छह साल पहले, मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ। दुनिया के इस हिस्से में, आप दुनिया के उस हिस्से में नहीं आए जहॉ धर्म की कमी थी, अापको पता है। अमेरिका में कई धर्म हैं, और मुझे लगता है कि इस देश के लोगों का मानना है, महान बहुमत में, कि वे धार्मिक लोग हैं, भगवान में विश्वास करने वाले लोग हैं, जो समर्पित हैं धार्मिक अभिव्यक्ति के किसी न किसी रूप के प्रती। और मैं यह सोच रहा हूँ कि अापकी सोच क्या थी। आप क्या जोड़ सकते हैं पहले से ही विद्यमान धार्मिक अभिव्यक्ति में इस देश में, यहां आकर और इसमे अपने खुद का दर्शनशास्र जोड़कर।

प्रभुपाद: हाँ। जब मैं पहली बार तुमहारे देश में आया था तो मैं बटलर में एक भारतीय दोस्त का अतिथि था।

प्रश्नकर्ता: पेंसिल्वेनिया में।

प्रभुपाद: पेंसिल्वेनिया। हां। हॉलाकी वह एक छोटा सा काउंटी था, लेकिन मैं बहुत ज्यादा प्रसन्न हुअा कि वहॉ कई चर्च थे।

प्रश्नकर्ता: तो कई चर्च। हां। हां।

प्रभुपाद: हाँ। कई चर्च। और मैंने वहाँ कई चर्चों में बात की थी। मेरे मेजबान नें उस के लिए व्यवस्था की। तो यह मेरा उद्देश्य नहीं था, कि मैं कुछ धार्मिक प्रक्रिया को हराने के लिए यहाँ आया था। यह मेरा उद्देश्य नहीं था। हमारा मिशन है, भगवान चैतन्य का मिशन है, कि सब को भगवान से प्यार करना सिखाऍ। बस।

प्रश्नकर्ता: लेकिन किस तरह से श्रीमान, क्या मैं पूछ सकता हुँ, किस तरह से, अभी जो परमेश्वर के प्रेम के शिक्षण आप दे रहे हैं, वह अलग और शायद बेहतर है उन परमेश्वर के प्रेम की शिक्षाओं से जो पहले से ही इस देश में आयोजित किए जा रहा हैं और सदियों से पश्चिमी दुनिया में आयोजित की गई हैं?

प्रभुपाद: यह तथ्य है। हम भगवान चैतन्य के कदमों का अनुसरण कर रहे हैं। उन्हें माना जाता है ... हमनें स्वीकार किए है - वैदिक साहित्य के अधिकार के अनुसार - वह व्यक्तिगत रूप से कृष्ण है।

प्रश्नकर्ता: कौन से प्रभु?

प्रभुपाद: भगवान चैतन्य।

प्रश्नकर्ता: अरे हाँ। वह जो भारत में पांच सौ साल पहले वापस आये थे?

प्रभुपाद: हाँ। तो वह कृष्ण ही हैं, और वह कृष्ण से प्यार करने का तरीका सिखा रहे हैं। इसलिए उनकी प्रक्रिया सबसे अधिकृत है। वैसे ही जैसे तुम इस स्थापना में विशेषज्ञ हो । अगर कोई कुछ कर रहा है, तो तुम उसे व्यक्तिगत रूप से सिखाओ, कि "इस तरह से करो", तो यह बहुत अधिकृत है। तो भगवद चेतना, खुद भगवान सिखा रहे हैं। जैसे भगवद गीता में, कृष्ण भगवान है । वह खुद के बारे में बात कर रहे हैं। और अंत में उन्होंने कहा, "बस मुझ पर आत्मसमर्पण करो। मैं तुम्हारा भार संभालूंगा ।" लेकिन लोग गलत समझते हैं। तो भगवान चैतन्य - कृष्ण फिर से अाए, भगवान चैतन्य के रूप में, लोगों को सिखाने के लिए कि कैसे आत्मसमर्पण करना चाहिए। और क्योंकि हम भगवान चैतन्य के कदमों का अनुसरण कर रहे हैं, विधि इतनी उत्कृष्ट है कि जो विदेशी जन कृष्ण को कभी नहीं जानते थे, वे आत्मसमर्पण कर रहे हैं। विधि इतनी शक्तिशाली है । तो यह मेरा उद्देश्य था । हम नहीं कहते हैं कि "मेरी प्रक्रिया बेहतर है।", "यह धर्म इस धर्म की तुलना में बेहतर है।" हम परिणाम से देखना चाहते हैं। संस्कृत में एक शब्द है, फलेन परिचियते । किसी भी बात को परिणाम से माना जाता है।

प्रश्नकर्ता: किसी भी बात को ...?

प्रभुपाद: परिणाम से।

प्रश्नकर्ता: अरे हाँ।

प्रभुपाद: तुम कह सकते हो, मैं कह सकता हूँ कि मेरी विधि बहुत अच्छी है। तुम अपनी विधि को बहुत अच्छा कह सकते हो, लेकिन हमें परिणाम से तय करना चाहिए। यही है ... भागवत कहता है कि वह धर्म की प्रक्रिया बहुत अच्छी है जिसके अनुसरन से हर कोई भगवान का प्रेमी हो जाता है।