HI/Prabhupada 0155 - सभी ईश्वर बनने का प्रयत्न कर रहे हैं
Lecture on SB 7.6.5 -- Toronto, June 21, 1976
अतः हमे भगवद्गीता से पता चलता हैं की तीन तत्व हैं। यहाँ सनातन शब्द का प्रयोग किया गया हैं। प्रथमतः जीव अथवा जीवित तत्वों को सनातन घोषित किया गया हैं | ममैवांशो जीव भूत: जीव लोके सनातन:(भ.गी. १५.७) | हम जीवित तत्व सनातन हैं, ऐसा नहीं की माया के प्रभाव से हम जीव-भूतः हुए हैं। हमने स्वयं को माया के प्रभाव में डाला हैं, अतः हम जीव-भूतः हैं। वास्तव में हम सनातन हैं, सनातन का अर्थ हैं नित्य, नित्यो शाश्वत । जीवात्मा का वर्णन इस प्रकार हुआ हैं : नित्यो शाश्वतो अयम न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २ .२०) | यही सनातन हैं। किन्तु हम अति मूर्ख हैं। यदि हम शाश्वत हैं और हमें जीवन या मरण नहीं हैं तो, क्यों हमे जीवन मृत्यु के कठिनाइयों में डाला गया हैं? यही ब्रह्म-जिज्ञासा हैं।
किन्तु हम इसमें शिक्षित नहीं हैं। किन्तु हमे शिक्षित होना चाहिए। हमे इन उपदेशों का लाभ उठाना चाहिए। हम सनातन हैं। और एक लोक है, वर्णन हैं भगवद्गीता में, परस तस्मात तु भावो अन्यो अव्यक्तो अव्यक्तात सनातन:(भ.गी. ८.२०) | व्यक्तो अव्यक्तात सनातन: इस भौतिक जगत का प्राकट्य होता हैं और इसका आधार भौतिक शक्ति, महत तत्त्व हैं। उसका प्राकट्य नहीं होता हैं। इस लिए अव्यक्तो अव्यक्तात | इस भौतिक जगत के परे एक और जगत है, आध्यात्मिक जगत, जो सनातन हैं। परस तस्मात तु भावो अन्यो अव्यक्तो अव्यक्तात सनातन: (भ.गी. ८.२०) | और जीव भूत: सनातन: और ग्यारवे अध्याय में अर्जुन ने श्रीकृष्ण को सनातन बोल के संबोधित किया हैं। अतएव तीन सनातन हैं।
तो यदि हम सनातन हैं, और सनातन धाम हैं और कृष्ण भी सनातन हैं, तो हम भी सनातन हैं। और यदि इन तीनो को मिला दिया जाये तो वह सनातन धर्म होता हैं। किन्तु लोगो को इसके बारे में नहीं पता। लोगो का मानना हैं की यदि हम एक प्रकार के समुदाय में जन्म लेते हैं और उसके अनुसार वेशभूषा धारण करते हैं तो वह सनातन धर्म होता हैं। नहीं हर एक व्यक्ति सनातन धर्म का अनुयायी बन सकता हैं। किन्तु लोगों को सनातन शब्द का अर्थ ज्ञात नहीं हैं। सभी जीवित तत्व सनातन हैं और कृष्ण, भगवान, भी सनातन हैं। और एक स्थान हैं जहाँ हम उनसे भेट कर सकते हैं - सनातन धाम। सनातन धाम, सनातन भक्ति, सनातन धर्म। जब उसका पालन किया जाये तो उसे सनातन धर्म कहते हैं।
अतः वो सनातन धर्म क्या हैं ? अतः यदि मैं सनातन धाम को लौट जाउ जहाँ श्रीकृष्ण सनातन हैं और मैं भी सनातन हूँ। तो सनातन कार्य क्या हैं? क्या इसका अर्थ यह हैं कि सनातन धाम जाने पर मैं इश्वर बन जाऊँगा ? नहीं आप भगवान नहीं बन जायेंगे, क्योंकि भगवान तो केवल एक ही हैं। वह परमेश्वर हैं, वह प्रभु हैं और हम सभी उनके दास हैं। चैतन्य महाप्रभु कहते हैं: जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्ण दास (चैतन्य चरितामृत मध्य २०.१०८-१०९) | यहाँ हम सभी श्रीकृष्ण होने का दावा करते हैं। किन्तु जब हम सनातन धाम लौट जायेंगे तब - योग्यता सिद्ध होने पर ही जीव सनातन धाम को लौट सकते हैं- तब हम परिपूर्ण रूप से भगवान के सेवा में लग जाते हैं। यह सनातन धर्म हैं।
तो तुम उसका अभ्यास करो । सनातन धर्म का मतलब है भक्ति योग । क्योंकि हम भूल गए हैं | हर व्यक्ति इश्वर बनने का प्रयत्न कर रहा हैं। अब यहाँ अभ्यास कीजिये की किस प्रकार इश्वर का सेवक बना जा सके। और यदि आप योग्य हैं, वास्तवमें, अब आप... यकीन मानिए की आप भगवान के सेवक बन गए हैं, यही भक्ति मार्ग हैं। जैसा चैतन्य महाप्रभु ने कहा हैं: गोपी भर्तुर पद कमलयोर दास दास दास दासानुदास | जब आप भगवान के दास के दास के दास के दास बनने में निपुण हो जाते है - सौ बार - के दास - तो आप पूर्ण हो जाते हैं (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.८०)। किन्तु यहाँ पे सभी परमेश्वर बनने का प्रयत्न कर रहे हैं। लोग "अहम् ब्रह्मास्मि " का त्रुटिपूर्ण अनुवाद कर रहे हैं की "मैं परमात्मा हूँ | " किन्तु ऐसा नहीं हैं। ये वैदिक शब्द हैं और सोहम का अर्थ यह नहीं की मैं परमात्मा हूँ।
सोहम का अर्थ हैं "मैं भी उसी गुण का हूँ"। क्योंकि ममैवांशो जीवभूत: (भ.गी. १५.७) | जीव भगवान कृष्ण का अंश हैं अतः गुणात्मक रूप से एक समान हैं। जैसे समुद्र से आप एक बिंदु जल लेते हैं। अतः रासायनिक संयोजन के आधार पर दोनों एक हैं - समुद्र का एक बिंदु जल और समुद्र। इसी को सोहम या ब्रह्मास्मि कहते हैं। ऐसा नहीं की हम इन वैदिक शब्दों का त्रुटिपूर्ण अनुवाद करे और समझे "मैं ईश्वर हूँ, में भगवान बन गया हूँ | " यदि आप भगवान हैं तो आपको कुत्ता क्यों बनना पढता हैं ? क्या भगवान कुक्कुर का शारीर धारण करते हैं ? यह संभव नहीं हैं। क्योंकि हम सूक्ष्म तत्व हैं। यह भी शास्त्र में वर्णित हैं।
- केशाग्र शत भागस्य
- शतधा कल्पितस्य च
- जीव: भागो स विज्ञेय
- स अनन्त्याय कल्पते
- (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१४०)
हमारी आध्यात्मिक पहचान है की हम बाल के सिरे के दस हजारवे भाग के समान हैं। वह बहुत ही छोटा हैं, यदि हम बाल के दस हज़ार भाग करेंगे तो आत्मा उसके एक भाग के बराबर हैं। और वह हमारे शारीर के भीतर हैं। तो आप उसे कहाँ ढूँढेंगे? आपके पास ऐसा कोई यंत्र नहीं हैं। इसलिए लोग उसे निराकार कहते हैं। किन्तु उसका आकार हैं किन्तु वह अति सूक्ष्म हैं। उसे भौतिक आँखोंसे देखना असंभव हैं। अतः हमे उसे वेदों के माध्यम से देखना होगा । शास्र चक्षुशा | यही वेदांत संस्करण हैं। हमे शास्त्रों के माध्यम से देखना होगा। उसे भौतिक चक्षुओं से देखना असंभव हैं।