HI/Prabhupada 0308 - आत्मा का काम है कृष्ण भावनामृत
Lecture -- Seattle, October 2, 1968
युवक (२): कैसे व्यक्ति मन को प्रशिक्षित करता हैं?
प्रभुपाद: यह प्रशिक्षण है । तुम सिर्फ कृष्ण भावनामृत गतिविधियों में खुद को व्यस्त रखो । यह व्यावहारिक है । जैसे जप, दस वर्ष की उम्र का लड़का, वह भी लगा हुआ है । उसके मन का ध्यान केंद्रित है हरे कृष्ण कंपन पर । उसकी अन्य इन्द्रियॉ, पैर या हाथ, वे काम कर रहे है, नाच रहे हैं । तो इस तरह से हमें अपने मन का अभ्यास करना होगा, हमारी इन्द्रियॉ हमेशा कृष्ण भावनामृत में लगी हुइ हो । यही तुम्हे पूर्णता देगा । और यह हर किसी के द्वारा संभव है । तुम्हे कृत्रिम रूप से एक जगह पर बैठने की कोई आवश्यकता नहीं है ध्यान करने के लिए । जैसे ही तुम हरे कृष्ण मंत्र का जप करते हो, तुरंत तुम्हारा दिमाग उस तरफ बँट जाता है, तुरंत तुम्हे कृष्ण की याद अाती है, कृष्ण की शिक्षा, कृष्ण का काम, सब कुछ । इसके लिए अभ्यास की आवश्यकता है ।
युवक (२): क्योंकि आप सूरज की एक किरण हैं, ...
प्रभुपाद: हाँ ।
युवक (२): क्या तुम अपने आप के बारे में सोच सकते हो?
प्रभुपाद: क्यों नहीं? मैं व्यक्ति हूँ ।
युवक (२): और जब आप सोचते हो, आप कृष्ण के बारे में सोच रहे हो?
प्रभुपाद: यद्यपि मैं छोटा हूँ, लेकिन मैं व्यक्ति हूँ । मैं शक्तिमान हूँ सोचने के लिए, मेहसूस करने के लिए अोर कुछ करने के लिए । हम यह कर रहे हैं । हम व्यक्ति हैं । तुम अपनी व्यक्तिगत इच्छा से यहां आए हो । किसी नें तुम्हें मजबूर नहीं किया है । अगर तुम चाहते हो, तुम जा सकते हो । कोई यहां आता है, कोई कभी नहीं आता है, कोई दैनिक आता है । क्यों? यद्यपि तुम छोटे हो, तुम्हारा व्यक्तित्व है । इस बद्ध स्थिति में, तुम मुक्त हो, इतने स्वतंत्र हो । और जब तुम बद्ध नहीं हो, विशुद्ध आत्मा, तुम्हे पता नहीं है कि तुम्हे कितनी स्वतंत्रता मिलती है । कोई बात नहीं है कि तुम छोटे हो, लेकिन तुम एक आध्यात्मिक चिंगारी हो ।
तुम नहीं दिख रहे हो कि एक छोटी सी आध्यात्मिक चिंगारी जिसको कोई चिकित्सक, कोई चिकित्सा विज्ञान अभी भी नहीं खोज सका है, आत्मा कहॉ है, लेकिन आत्मा है । यह एक तथ्य है । जैसे ही आत्मा इस शरीर से चली जाती है, वह बेकार है । पता लगाओ कि वह कण क्या है जो महत्वपूर्ण है । यह संभव नहीं है क्योंकि वह इतना छोटा है, कि तुम्हारे, इन भौतिक आँखें या माइक्रोस्कोप या किसी भी स्कोप से तुम पता नहीं कर सकते हो । इसलिए वे कहते हैं कि कोई आत्मा नहीं है । लेकिन वे व्याख्या नहीं कर सकते है कि क्या चला गया है । यहां तक कि वह छोटा कण आध्यात्मिक आत्मा का इतना शक्तिशाली है कि जब तक यह इस शरीर में है, वह उसे ताजा, अच्छा, सुंदर रखता है । और जैसे ही वह चला जाता है, तुरंत यह सड़ने लगता है । ज़रा देखो ।
वैसे ही जैसे एक दवा, इंजेक्शन । एक छोटी सा, एक अनाज का दाना, यह हमें फिट रखता है । यह ऐसा कुछ है, यह इतना शक्तिशाली है । तुम्हें पता नहीं है कि उस आत्मा की शक्ति क्या है । यह तुम्हे सीखना होगा । फिर वह आत्मज्ञान है । यह ध्यान की प्रक्रिया, एक शांत जगह में बैठना, उसकी जीवन की शारीरिक अवधारणा के कच्चे स्तर में सिफारिश की गई है । व्यक्ति को सोचने दो, ध्यान करने दो, "क्या मैं यह शरीर हूँ?" फिर विश्लेषण करना । तुम देखोगे, "नहीं, मैं यह शरीर नहीं हूं । मैं इस शरीर से अलग हूँ ।" फिर अौर ध्यान: "अगर मैं यह शरीर नहीं हूं, तो यह शारीरिक क्रियाऍ, यह कैसे की जा रही हैं?" यह हो रहा है उस छोटे कण कि उपस्थिति के कारण, मैं । कैसे शरीर बढ़ रहा है? उपस्थिति के कारण । जैसे लड़के की तरह, इस लड़के का शरीर छोटे कद का है । अब, यह लड़का बहुत मोटा और मजबूत शरीर पाएगा युवा उम्र में, जैसे चौबीस साल में ।
अब, यह शरीर चला जाएगा अौर दूसरा शरीर आ जाएगा । यह कैसे संभव है? आत्मा के छोटे कण की मौजूदगी के कारण । अगर वह आत्मा का कण चला जाता है या ले लिया जाता है, यह शरीर अधिक वृद्ध नहीं होगा या बदलेगा नहीं । ये ध्यान का विषय है । लेकिन जब तुम समझने के मंच पर अाते हो "मैं यह शरीर नहीं हूं । मैं, आत्मा हूँ ।" तो अगला चरण है, "आत्मा का काम क्या है?" आत्मा का काम है कृष्ण भावनामृत, कृष्ण भावनामृत में काम करना । तो वर्तमान युग में हमें आत्मा के कार्य को सीधे लेना होगा; तो अन्य चीजें अपने आप आ जाऍगी । वर्तमान समय में यह मुम्किन नहीं है, कि तुम एक सुनसान जगह पर जाअो और शांति से वहां बैठो और ध्यान करो ..... यह इस युग में संभव नहीं है । यह असंभव है । अगर तुम कृत्रिम रूप से कोशिश करते हो, तो यह विफल होगा । इसलिए तुम्हे इस प्रक्रिया को लेना होगा,
- हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम एव केवलम
- कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
- (चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१)
कली के इस युग में, आत्म बोध के लिए कोई अन्य विकल्प नहीं है यह हरे कृष्ण जप के अलावा । यही व्यावहारिक है, वास्तविक तथ्य ।