HI/Prabhupada 0321 - हमेशा मूल बिजलीघर से जुड़े रहना पडेगा
Lecture on SB 1.15.28 -- Los Angeles, December 6, 1973
चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि तुम्हार अाचरण एसा होना चाहिए, जैसा अादेश दिया गया है, आपनि अाचरी, फिर तुम दूसरों को सिखा सकते हो । अगर तुम्हारे खुद का अाचरण ठीख नहीं है, तो तुम्हारे शब्दों का कोई मूल्य नहीं रहेगा । (तोड़) ... एवं परम्परा प्राप्तम (भ.गी. ४.२) | अगर मूल बिजलीघर के साथ तुम्हारा संबन्ध है, तो बिजली अाती है । अन्यथा यह बस तार है । मूल्य क्या है ? बस तारों को लगाना तुम्हारी मदद नहीं करेगा । संबंध होना चाहिए । अगर तुम संब्ध खो देते हो, तो उसका कोई मूल्य नहीं है । इसलिए कृष्ण भावनामृत आंदोलन का मतलब है तुम्हे अपने आप को हमेशा मूल बिजलीघर से जोड़े रखना पडेगा । अौर फिर, तुम जहॉ भी जाअोगे, प्रकाश वहाँ होगा । प्रकाश होगा ।
अगर तुम जुडे नही हो, प्रकाश नहीं होगा । बल्ब है, तार है, स्विच है । सब कुछ है । यही अर्जुन महसूस कर रहा है कि, "मैं वही अर्जुन हूँ । मैं वही अर्जुन हूँ जो लडा कुरुश्रेत्र के युद्ध के मैदान में । मैं इतने महान योद्धा के रूप में जाना जाता था, और मेरा धनुष वही धनुष है, और मेरे तीर वही तीर है । लेकिन अब यह बेकार है । मैं खुद का बचाव नहीं कर सका, क्योंकि कृष्ण के साथ संबन्ध टूट गया । कृष्ण अब नहीं हैं।" "इसलिए वे कृष्ण के शब्दों को याद करने लगे जो कुरुक्षेत्र की लड़ाई में उन्हे सिखाया गया था ।
कृष्ण उनके शब्दों से अलग नहीं है । यह निरपेक्ष है । जो कृष्ण नें पांच हजार साल पहले कहा, अगर तुम उन शब्दों को फिर से पकड़ते हो तो तुम तुरंत कृष्ण के साथ जुड़ जाअोगे, तुरंत । यही प्रक्रिया है । बस अर्जुन को देखो । वे कहते हैं, एवं चिन्तयतो जिष्णो: कृष्ण पाद सरोरुहम | जब वे कृष्ण और उनकी युद्ध मैदानकी यथार्थ शिक्षा के बारे में सोचना शुरू करते हैं, तुरंत वे शांत हो जाते हैं, शांत । तुरंत शांत । यही प्रक्रिया है । हमारा कृष्ण के साथ अंतरंग संबंध है, सनातन । यह कृत्रिम नहीं है । इसलिए अगर तुम हमेशा कृष्ण के साथ अपने अाप को जोड़े रखते हो, फिर अशांति नहीं रहेगी । शांत ।
यम लबध्वा चापरम लाभम मन्यते नाधीकम तत: । अगर तुम्हे वह स्थान प्राप्त होता है, तो वह उच्चतम लाभ है, उच्चतम लाभ । यम लब्ध्वा च, फिर तुम किसी भी अन्य लाभ की इच्छा नहीं करोगे । तुम्हें पता चल जाएगा कि मुझे उच्चतम लाभ मिला है । यम लब्ध्वा चापरम लाभम मन्यते नाधीकम तत: । यस्मिन स्थित: ... और अगर तुम उस स्थिति में अपने आप को बनाए रखते हो दृढता से, फिर गुरुणापि दुःखेन न (भ.गी. ६.२०-२३), भारी विपदाओं के किसी भी प्रकार में, तुम परेशान नहीं रहोगे । यही शांति है । यही शांति है । एसा नहीं कि थोडी सी परेशानी, तुम परेशान हो जाअोगे । अगर तुम वास्तव में कृष्ण भावनामृत में दृढ हो, तो तुम किसी भी बडे से बडे खतरनाक हालत में परेशान नहीं रहोगे । यही कृष्ण भावनामृत की पूर्णता है । बहुत बहुत धन्यवाद ।