HI/Prabhupada 0369 - ये मेरे शिष्य मेरा अभिन्न अंग हैं



Room Conversation with Life Member, Mr. Malhotra -- December 22, 1976, Poona

श्री मल्होत्रा: यह कैसे हो सकता है कि अतीत के इतने सारे साधु , उन्होंने अहम् ब्रह्मास्मि की घोषणा की ।

प्रभुपाद: (हिन्दी) । आप ब्रह्म हैं । क्योंकि आप परब्रह्मम का अभिन्न अंग हैं । मैंने पहले ही बता दिया है, कि ... सोना, बड़ा सोना और छोटा कण, सोना ही है । इसी तरह, भगवान परब्रह्म, और हम उनके अभिन्न अंग हैं । इसलिए मैं ब्रह्म हू । लेकिन मैं परब्रह्म नहीं हूँ । कृष्ण परब्रह्म के रूप में स्वीकार किए जाते हैं अर्जुन द्वारा : परम ब्रह्म परम धाम पवित्रम परमम् भवान (भ.गी. १०.१२) | परब्रह्म ।

परम तो, इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, परमात्मा, परब्रह्म, परमेश्वर । क्यों? यही फर्क है । एक सर्वोच्च है और एक अधीनस्थ है । अधीनस्थ ब्रह्म । अाप ब्रह्म हो, इसके बारे में कोई संदेह नहीं है । लेकिन परब्रह्म नहीं । अगर आप परब्रह्म हैं, तो तुम क्यों साधना कर रहे हो परब्रह्म बनने के लिए ? क्यों? अगर आप परब्रह्म हैं, तो आप हमेशा परब्रह्म रहेंगे । अाप क्यों इस हालत में गिर गए हो कि अापको परब्रह्म बनने के लिए साधना करनी पड रही है ? यही मूर्खता है । आप परब्रह्म नहीं हो । आप ब्रह्म हो । आप सोना हो, एक छोटा कण । लेकिन आप नहीं कह सकते कि "मैं सोने की खान हूँ ।" आप ऐसा नहीं कह सकते । परम ब्रह्म परम धाम पवित्रम परमम् भवान (भ.गी. १०.१२) |

गोपाल कृष्ण: तो वह पूछ रहे हैं कि जाने का समय हो गया है कि नहीं आप भी हमारे साथ आ रहे हैं? बहुत अच्छा ।

प्रभुपाद: थोड़ा पानी ले आओ । ये मेरे शिष्य मेरा अभिन्न अंग हैं । पूरे मिशन उनके सहयोग के साथ चल रहा है । लेकिन अगर वह कहते है कि मैं मेरे गुरु महाराज के बराबर हूँ, तो यह अपराध है ।

श्री मल्होत्रा: कभी कभी गुरु की इच्छा है कि मेरे शिष्य मेरी तुलना में अधिक वृद्धि करें ।

प्रभुपाद: इसका मतलब है कि वह निचले मंच पर है । यह तुम्हे सब से पहले स्वीकार करना होगा ।

श्री मल्होत्रा: जैसे हर पिता अपने बच्चों को बड़ा होते हुए देखना चाहता है ।

प्रभुपाद: हाँ, फिर भी पिता पिता रहता है, और एक बच्चा पिता नहीं बन सकता ।

श्री मल्होत्रा: पिता पिता रहता है, लेकिन उन्होंने लगता है कि, प्रगति कर सकते हैं ...

प्रभुपाद: नहीं, नहीं । पिता चाह रख सकता है कि पुत्र समान रूप से योग्य हो, लेकिन फिर भी पिता पिता है, और बच्चा बच्चा है । यही शाश्वत है । इसी तरह, भगवान का एक अभिन्न अंग बहुत शक्तिशाली हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह भगवान बन गया है ।

श्री मल्होत्रा: अन्य परंपराओं, गुरु शिष्य, शिष्य गुरु बन जाता है, फिर शिष्य । गुरू बदल सकते हैं ।

प्रभुपाद: वे बदल नहीं सकते । अगर गुरु में परिवर्तन हो, शिष्य कार्य करता है, लेकिन, वह कभी नहीं कहेगा कि मैं अपने गुरू के बराबर हूँ या गुरु के साथ एक हो गया । ऐसा नहीं है ।

श्री मल्होत्रा: मैं इसके बारे में सोच रहा हूँ, स्वामीजी, कि अापके गुरु महाराज आपके माध्यम से प्रचार कर रहे हैं, और आप उनके माध्यम से प्रचार कर रहे हैं ।

प्रभुपाद: हाँ

श्री मल्होत्रा: तो शिष्य गुरु है अपने शिष्यों के माध्यम से ।

प्रभुपाद: यह सब ठीक है । एवं परम्परा प्राप्तम (भ.गी. ४.२) । लेकिन वह नहीं हो जाता, वह बन गया है ... वह गुरु का प्रतिनिधि हो सकता है, भगवान का प्रतिनिधि, लेकिन इसका यह मतलब यह नहीं है कि वह भगवान बन गया है ।

श्री मल्होत्रा: लेकिन वह अपने शिष्यों के साथ गुरु हो जाता है ।

प्रभुपाद: यह ठीक है ।

श्री मल्होत्रा: अपने गुरु के बराबर कभी नहीं ।

प्रभुपाद: बराबर नहीं, प्रतिनिधि । बराबर नहीं । मैं इस आदमी को प्रतिनिधि के रूप में भेजता हूँ, और वह बहुत निष्णात हो सकता है, बहुत अच्छा कारोबार कर रहा है, फिर भी वह मेरे बराबर नहीं हो सकता । वह मेरे प्रतिनिधि के रूप में काम कर रहा है, यह एक और बात है । लेकिन एसा नहीं है कि वह मूल मालिक बन गया है ।

श्री मल्होत्रा: लेकिन अापके शिष्यों के रूप में, आपको गुरु माना जाता है ।

प्रभुपाद: लेकिन वे कभी नहीं कहेंगे कि वह मेरे बराबर हो गए हैं । "मैं उन्नती कर गया हूँ अपना गुरु का स्थान लेने के लिए । " कभी नहीं कहेगा । इस लड़के की तरह, वह दण्डवत प्रणाम कर रहा है । वह प्रचार में मुझसे अधिक निष्णात हो सकता है, लेकिन वह जानता है कि "मैं अधीनस्थ हूँ ।" नहीं तो वह कैसे दण्डवत प्रणाम पेश करेगा? वह सोच सकता है, "ओह, अब मैं इतना पढा लिखा हूँ । तो मैनें इतनी उन्नती की है । क्यों मैं उन्हें बेहतर स्वीकार करूँ? नहीं । यह जारी रहता है । यहां तक ​​कि मेरी मौत के बाद , मेरी चले जाने के बाद, वह मेरी तस्वीर को दण्डवत प्रणाम पेश करेगा ।

श्री मल्होत्रा: लेकिन अपने शिष्यों के बीच वह पूजा जाएगा ...

प्रभुपाद: यह ठीक है, लेकिन वह अपने गुरु का शिष्य बना रहेगा । वह कभी नहीं कहेगा कि "अब मैं गुरु बन गया हूँ, इसलिए मैं अपने गुरु की परवाह नहीं करता । " वह कभी नहीं कहेगा । जैसे मैं कर रहा हूँ, लेकिन मैं अभी भी अपने गुरु की पूजा कर रहा हूँ । इसलिए मैं अपने गुरु के अधीनस्थ रहता हूँ, हमेशा । हालांकि मैं गुरु बन गया हूँ, लेकिन अभी भी मैं अपने गुरु के अधीनस्थ हूँ ।