HI/Prabhupada 0396 - राजा कुलशेखर की प्रार्थना
Purport to Prayers of King Kulasekhara, CD 14
यह श्लोक, प्रार्थना, एक किताब से लिया गया है जिसका नाम है मुकुंद-माला-स्तोत्र । यह प्रार्थना एक राजा द्वारा प्रस्तुत की गई थी जिनका नाम कुलशेखर था । वे एक महान राजा थे पर वह एक महान भक्त भी थे । वैदिक साहित्य के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ राजा बहुत महान भक्त थे, और वे राजर्षि कहे जाते है । राजर्षि का मतलब है हालांकि वे शाही सिंहासन पर हैं, वे सब साधु व्यक्ति हैं । तो यह कुलशेखर, राजा कुलशेखर, कृष्ण से प्रार्थना कर रहें हैं कि, "मेरे प्यारे कृष्ण, मेरे मन का हंस अब फँस सकता है अापके चरण कमलों के तने के साथ । क्योंकि, मृत्यु के क्षण, शारीरिक कार्यों के तीन तत्व, अर्थात् बलगम, और पित्त, और वायु, वे अतिव्याप्त हो जाएँगे, और मेरी आवाज घुट जाएगी , इसलिए मेरी मृत्यु के समय अापके मधुर पवित्र नाम को बोलने में मैं सक्षम नहीं होऊँगा ।"
तुलना इस तरह से दी जाती है कि सफेद हंस, जब भी उसे एक कमल का फूल मिलता है, वह वहाँ जाता है और पानी में गोताखोरी कर खेलता है, और कमल के फूल के तने में वह उलझ जाता है । तो राजा कुलशेखर चाहते हैं कि अपने मन और शरीर की स्वस्थ अवस्था में, वह भगवान के चरण कमल के तने में तुरंत उलझ जाएँ और तुरंत मर जाएँ । विचार यह है कि हमें कृष्णभावनामृत को स्वीकार करना चाहिए, जब तक हमारा मन और शरीर अच्छी हालत में है । अपने जीवन के अंतिम चरण का इंतजार मत करो । कृष्णभावनामृत का अभ्यास करते रहो जब तक तुम्हारा शरीर और मन एक स्वस्थ अवस्था में है, और फिर मृत्यु के समय तुम कृष्ण और उनकी लीलाओं को याद करने में सक्षम हो जाअोगे, और तुरंत आध्यात्मिक दुनिया के लिए स्थानांतरित कर दिए जाअोगे ।