HI/Prabhupada 0567 - मैं दुनिया को यह संस्कृति देना चाहता हूँ
Press Interview -- December 30, 1968, Los Angeles
पत्रकार: अाप कब से यहॉ हैं श्रीमान?
प्रभुपाद: मैं सितंबर १९६५ में यहां आया था । और फिर मैं थोड़ा सा अस्वस्थ था मई १९६७ में, मुझे लगता है । फिर मैं भारत वापस चला गया । अौर फिर से मैं दिसंबर १९६७ में वापस आ गया, एक साल के बाद ।
पत्रकार: हाँ, मैं देख रहा हूँ । अाप यहां क्यों आए हैं ?
प्रभुपाद: क्योंकि मैं दुनिया को यह संस्कृति देना चाहता हूँ, और मेरे विचार में अमेरिका उन्नत देश है । अगर वे यह स्वीकार करते हैं, तो पूरी दुनिया भर में इस विचार को प्रसारित करना संभव हो जाएगा । यही मेरा विचार है । लेकिन मैं अब उम्मीद कर रहा हूँ क्योंकि ये शिक्षित युवा अमेरिकी, वे इस आंदोलन में गंभीर रुचि ले रहे हैं । और हम कागज, किताबें प्रकाशित कर रहे हैं, और वे बहुत अच्छी तरह से लिख रहे हैं । तो बूढ़ा आदमी हूँ, मैं मर सकता हूँ, लेकिन मैंने इस विचार को प्रत्यारोपित किया है । यह चलेगा । यह चलेगा और उन्हे स्वीकार किया जाएगा । यह प्रयोग हो गया है । अगर इसे अच्छी तरह से प्रचारित किया जाता है, तो यह किसी भी असफलता के बिना स्वीकार किया जाएगा । और ये लडके जो मेरे पास आए हैं, उन्होंने इसे गंभीरता से लिया है । इसलिए मैं उम्मीद कर रहा हूँ ।
पत्रकार: मैंने आपकी पत्रिका को देखा । यह एक सुंदर पत्रिका है ।
प्रभुपाद: बैक टू गौडहेड ?
पत्रकार: ओह हाँ । एक खूबसूरत पत्रिका |
प्रभुपाद: आपका बहुत बहुत धन्यवाद । धन्यवाद ।
पत्रकार: सुंदर चीज़ । यह कहां किया जाता है?
प्रभुपाद: यह न्यूयॉर्क में प्रकाशित होता हैं ।
पत्रकार: न्यूयॉर्क में । मैंने नवीनतम अंक देखा है... सुंदर पत्रिका । आह, आंदोलन में, लगभग कितने लोग हैं?
प्रभुपाद: मेरे पास सख्ती से मेरे नियामक सिद्धांतों का पालन करने वाले एक सौ से थोडे अधिक शिष्य हैं ।
पत्रकार: एक सौ ।
प्रभुपाद: हाँ । विभिन्न शाखाओं में । मेरे पास तेरह शाखाऍ हैं । कुछ अनुयायी लंडन में काम कर रहे हैं ।
पत्रकार: लंडन में?
प्रभुपाद: हाँ, वे बहुत अच्छा कर रहे हैं । वे सभी विवाहित जोड़े हैं । मैंने उनकी शादी कराई है । हां । मैंने उनकी शादी कराई । वे सभी युवा लड़के हैं, तीस के भीतर । मेरा सबसे उम्र में बडा शिष्य २९ का है । अन्यथा २५, २४ । सबसे अधिक ३० । और इसी तरह, लड़कियॉ, अापने इस लड़की को देखा है । आप देखते हैं । तो मैं उनको, विवाहित जीवन में उन्हें सुखी कराता हूँ । उनकी मानसिकता... वे तथाकथित आत्मसंतुष्ट जीवन की लालसा नहीं रखते हैं । वे बडी सरलता के साथ रहते हैं बहुत कम शारीरिक आवश्यकताओं के साथ, लेकिन कृष्ण भावनामृत के बहुत उच्च विचार हैं । तो मैं बहुत उम्मीद करता हूँ कि अगर मैं मर भी गया... क्योंकि मैं ७३ साल का बूढ़ा आदमी हूँ । मैं किसी भी समय मर सकता हूँ । लेकिन मैं अब आश्वासित हूँ कि मेरा यह आंदोलन चलेगा । ये लड़के इसे अागे बढाऍगे ।
यही कि, मेरा मिशन, इस तरह सफल है । मैं इस विचार के साथ यहां आया था, कि यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन अमेरिका से शुरू किया जाना चाहिए । क्योंकि जो कुछ भी अमेरिका द्वारा स्वीकार किया जाता है, लोग अनुसरन करते हैं क्योंकि अमेरिका माना जाता है... दरअसल अमेरिका एक गरीब देश नहीं है । तो वे बहुत आसानी से समझ सकते हैं, अपना सकते हैं । और कई उलझे हुए युवक हैं ।