HI/660307 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660307BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|बद्ध जीव और मुक्त आत्मा में अंतर केवल इतना है कि, बद्ध जीव चार प्रकार से अपूर्ण है। बद्ध जीव निश्चित रूप से भूल करता है, बद्ध जीव भ्रम में रहता है, बद्ध जीव में दूसरों को धोका देने की वृत्ति होती है और बद्ध जीव की इन्द्रियाँ अपूर्ण होती हैं; अपूर्ण इन्द्रियाँ । इसलिए ज्ञान केवल मुक्त आत्मा से ही प्राप्त करना चाहिए।|Vanisource:660307 - Lecture BG 02.12 - New York|660307 - प्रवचन भ.गी. २.१२ - न्यूयार्क}} |
Latest revision as of 05:14, 17 July 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
बद्ध जीव और मुक्त आत्मा में अंतर केवल इतना है कि, बद्ध जीव चार प्रकार से अपूर्ण है। बद्ध जीव निश्चित रूप से भूल करता है, बद्ध जीव भ्रम में रहता है, बद्ध जीव में दूसरों को धोका देने की वृत्ति होती है और बद्ध जीव की इन्द्रियाँ अपूर्ण होती हैं; अपूर्ण इन्द्रियाँ । इसलिए ज्ञान केवल मुक्त आत्मा से ही प्राप्त करना चाहिए। |
660307 - प्रवचन भ.गी. २.१२ - न्यूयार्क |