HI/BG 16.13-15: Difference between revisions

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:इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् ।
 
:इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम् ॥१३॥
:असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
:ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥१४॥
:आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया ।
:यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः ॥१५॥
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Latest revision as of 17:17, 13 August 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 13-15

इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् ।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम् ॥१३॥
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥१४॥
आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया ।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः ॥१५॥

शब्दार्थ

इदम्—यह; अद्य—आज; मया—मेरे द्वारा; लब्धम्—प्राह्रश्वत; इमम्—इसे; प्राह्रश्वस्ये—प्राह्रश्वत करूँगा; मन:-रथम्—इच्छित; इदम्—यह; अस्ति—है; इदम्—यह; अपि—भी; मे—मेरा; भविष्यति—भविष्य में बढ़ जायगा; पुन:—फिर; धनम्—धन; असौ—वह; मया—मेरे; हत:—मारा गया; शत्रु:—शत्रु; हनिष्ये—मारूँगा; च—भी; अपरान्—अन्यों को; अपि—निश्चय ही; ईश्वर:—प्रभु, स्वामी; अहम्—मैं हूँ; अहम्—मैं हूँ; भोगी—भोक्ता; सिद्ध:—सिद्ध; अहम्—मैं हूँ; बल-वान्—शक्तिशाली; सुखी—प्रसन्न; आढ्य:—धनी; अभिजन-वान्—कुलीन सम्बन्धियों से घिरा; अस्मि—मैं हूँ; क:—कौन; अन्य:—दूसरा; अस्ति—है; स²श:—समान; मया—मेरे द्वारा; यक्ष्ये—मैं यज्ञ करूँगा; दास्यामि—दान दूँगा; मोदिष्ये—आमोद-प्रमोद मनाऊँगा; इति—इस प्रकार; अज्ञान—अज्ञानतावश; विमोहिता:—मोहग्रस्त।

अनुवाद

आसुरी व्यक्ति सोचता है, आज मेरे पास इतना धन है और अपनी योजनाओं से मैं और अधिक धन कमाऊँगा | इस समय मेरे पास इतना है किन्तु भविष्य में यह बढ़कर और अधिक हो जायेगा | वह मेरा शत्रु है और मैंने उसे मार दिया है और मेरे अन्य शत्रु भी मार दिये जाएंगे | मैं सभी वस्तुओं का स्वामी हूँ | मैं भोक्ता हूँ | मैं सिद्ध, शक्तिमान् तथा सुखी हूँ | मैं सबसे धनी व्यक्ति हूँ और मेरे आसपास मेरे कुलीन सम्बन्धी हैं | कोई अन्य मेरे समान शक्तिमान तथा सुखी नहीं है | मैं यज्ञ करूँगा, दान दूँगा और इस तरह आनन्द मनाऊँगा | इस प्रकार ऐसे व्यक्ति अज्ञानवश मोहग्रस्त होते रहते हैं |