HI/BG 17.1: Difference between revisions
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Revision as of 16:28, 14 August 2020
श्लोक 1
- h
शब्दार्थ
अर्जुन: उवाच—अर्जुन ने कहा; ये—जो; शा-विधिम्—शाों के विधान को; उत्सृज्य—त्यागकर; यजन्ते—पूजा करते हैं; श्रद्धया—पूर्ण श्रद्धा से; अन्विता:—युक्त; तेषाम्—उनकी; निष्ठा—श्रद्धा; तु—लेकिन; का—कौनसी; कृष्ण—हे कृष्ण; सत्त्वम्—सतोगुणी; आहो—अथवा अन्य; रज:—रजोगुणी; तम:—तमोगुणी।
अनुवाद
अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण! जो लोग शास्त्र के नियमों का पालन न करके अपनी कल्पना के अनुसार पूजा करते हैं, उनकी स्थिति कौन सी है? वे सतोगुणी हैं, रजोगुणी हैं या तमोगुणी?
तात्पर्य
चतुर्थ अध्याय के उन्तालीसवें श्लोक में कहा गया है कि किसी विशेष प्रकार की पूजा में निष्ठावान् व्यक्ति क्रमशः ज्ञान की अवस्था को प्राप्त होता है और शान्ति तथा सम्पन्नता की सर्वोच्च सिद्धावस्था तक पहुँचता है । सोलहवें अध्याय में यह निष्कर्ष निकलता है कि जो शास्त्रों के नियमों का पालन नहीं करता, वह असुर है और जो निष्ठापूर्वक इन नियमों का पालन करता है, वह देव है । अब यदि ऐसा निष्ठावान व्यक्ति हो, जो ऐसे कतिपय नियमों का पालन करता हो, जिनका शास्त्रों में उल्लेख न हो, तो उसकी स्थिति क्या होगी? अर्जुन के इस सन्देह का स्पष्टीकरण कृष्ण द्वारा होना है । क्या वे लोग जो किसी व्यक्ति को चुनकर उस पर किसी भगवान् के रूप में श्रद्धा दिखाते हैं, सतो, रजो या तमोगुण में पूजा करते हैं? क्या ऐसे व्यक्तियों को जीवन की सिद्धावस्था प्राप्त हो पाती है? क्या वे वास्तविक ज्ञान प्राप्त करके उच्चतम सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो पाते हैं? जो लोग शास्त्रों के विधि-विधानों का पालन नहीं करते, किन्तु जिनकी किसी पर श्रद्धा होती है और जो देवी, देवताओं तथा मनुष्यों की पूजा करते हैं, क्या उन्हें सफलता प्राप्त होती है ? अर्जुन इन प्रश्नों को श्री कृष्ण से पूछ रहा है ।