HI/BG 17.8: Difference between revisions
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:रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः ॥८॥ | |||
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Latest revision as of 16:41, 14 August 2020
श्लोक 8
- आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः ।
- रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः ॥८॥
शब्दार्थ
आयु:—जीवन काल; सत्त्व—अस्तित्व; बल—बल; आरोग्य—स्वास्थ्य; सुख—सुख; प्रीति—तथा संतोष; विवर्धना:—बढ़ाते हुए; रस्या:—रस से युक्त; स्निग्धा:—चिकना; स्थिरा:—सहिष्णु; हृद्या:—हृदय को भाने वाले; आहारा:—भोजन; सात्त्विक—सतोगुणी; प्रिया:—अच्छे लगने वाले।
अनुवाद
जो भोजन सात्त्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है ।ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्यप्रद तथा हृदय को भाने वाला होता है ।