HI/BG 18.30: Difference between revisions
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Revision as of 14:52, 16 August 2020
श्लोक 30
- k
शब्दार्थ
प्रवृत्तिम्—कर्म को; च—भी; निवृत्तिम्—अकर्म को; च—तथा; कार्य—करणीय; अकार्ये—तथा अकरणीय में; भय—भय; अभये—तथा निडरता में; बन्धम्—बन्धन; मोक्षम्—मोक्ष; च—तथा; या—जो; वेत्ति—जानता है; बुद्धि:—बुद्धि; सा—वह; पार्थ—हे पृथापुत्र; सात्त्विकी—सतोगुणी।
अनुवाद
हे पृथापुत्र! वह बुद्धि सतोगुणी है, जिसके द्वारा मनुष्य यह जानता है कि क्या करणीय है और क्या नहीं है, किस्से डरना चाहिए और किस्से नहीं, क्या बाँधने वाला है और क्या मुक्ति देने वाला है |
तात्पर्य
शास्त्रों के निर्देशानुसार कर्म करने को या उन कर्मों को करना जिन्हें किया जाना चाहिए, प्रवृत्ति कहते हैं | जिन कार्यों का इस तरह निर्देश नहीं होता वे नहीं किये जाने चाहिए | जो व्यक्ति शास्त्रों के निर्देशों को नहीं जानता, वह कर्मों तथा उनकी प्रतिक्रिया से बँध जाता है | जो बुद्धि अच्छे बुरे का भेद बताती है, वह सात्त्विकी है |