HI/680619 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680619BG-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|"कृष्ण चेतना में हम अपने समकालीनों को "प्रभु" कह कर संबोधित करते हैं। प्रभु का अर्थ है स्वामी। और वास्तविक विचार यह है कि "आप मेरे स्वामी हैं, मैं आपका सेवक हूं।" ठीक इसके विपरीत संख्या। यहां, भौतिक दुनिया में, हर कोई चाहता है। स्वयं को गुरु के रूप में स्थान दें: "मैं तुम्हारा स्वामी हूँ, तुम मेरे सेवक हो।" यही भौतिक अस्तित्व की मानसिकता है। और आध्यात्मिक अस्तित्व का अर्थ है, "मैं नौकर हूँ, तुम मालिक हो।" बस देखो। ठीक इसके विपरीत संख्या।"|Vanisource:680619 - Lecture BG 04.09 - Montreal|680619 - प्रवचन BG 04.09 - मॉन्ट्रियल}}
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Latest revision as of 04:02, 6 June 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
कृष्ण भावनामृत में हम अपने समकालिक भक्तों को "प्रभु" कह कर संबोधित करते हैं। प्रभु का अर्थ है स्वामी। और वास्तविक विचार यह है कि "आप मेरे स्वामी हैं, मैं आपका सेवक हूं।" ठीक इसके विपरीत भौतिक जगत में, हर कोई स्वामी बनना चाहता है। "मैं तुम्हारा स्वामी हूँ, तुम मेरे सेवक हो।" यह ही भौतिक अस्तित्व की मानसिकता है तथा आध्यात्मिक अस्तित्व का अर्थ है, "मैं सेवक हूँ, आप स्वामी हैं।" ध्यान दें, यह बिल्कुल विपरीत स्थिति है।
680619 - प्रवचन भ.गी. ४.९ - मॉन्ट्रियल