HI/680716 बातचीत - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९६८ Category:HI/अम...") |
No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - मॉन्ट्रियल]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - मॉन्ट्रियल]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680716R1-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>| | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/680712 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680712|HI/680718 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680718}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680716R1-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|कृष्ण कहते हैं स्वकर्मणा तम अभ्यर्च्य । तुम सिर्फ अपने कार्यक्षेत्र के परिणाम से परम भगवान् की पूजा करने की कोशिश करो । क्योंकि कृष्ण सभी कुछ स्वीकार करते है । इसलिए यदि आप कुम्हार हैं, तो आप बर्तन प्रदान करें । यदि आप फूल वाले हैं, तो आप फूल प्रदान करें । यदि आप सुतार है, तोह आप मंदिर के लिए काम करें । यदि आप धोबी हैं, तो मंदिर के कपड़े धोए । मंदिर केंद्र है, कृष्ण केंद्र है । और सभी को अपनी सेवा देने का मौका मिलता है । इसलिए मंदिर की पूजा बहुत अच्छी है । इसलिए इस मंदिर में इस तरह से आयोजन किया जाना चाहिए कि हमें किसी भी धन की आवश्यकता न हो । आप अपनी सेवा देते रहे । बस इतना ही । आप अपनी सेवा में लगे रहें । अपनी सेवा को न बदलें । आपके व्यावसायिक कर्तव्य से, आप मंदिर की सेवा करने का प्रयास करते रहे, जिसका अर्थ है परम भगवान् की सेवा ।|Vanisource:680716 - Conversation - Montreal|680716 - बातचीत - मॉन्ट्रियल}} |
Latest revision as of 16:11, 7 June 2019
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
कृष्ण कहते हैं स्वकर्मणा तम अभ्यर्च्य । तुम सिर्फ अपने कार्यक्षेत्र के परिणाम से परम भगवान् की पूजा करने की कोशिश करो । क्योंकि कृष्ण सभी कुछ स्वीकार करते है । इसलिए यदि आप कुम्हार हैं, तो आप बर्तन प्रदान करें । यदि आप फूल वाले हैं, तो आप फूल प्रदान करें । यदि आप सुतार है, तोह आप मंदिर के लिए काम करें । यदि आप धोबी हैं, तो मंदिर के कपड़े धोए । मंदिर केंद्र है, कृष्ण केंद्र है । और सभी को अपनी सेवा देने का मौका मिलता है । इसलिए मंदिर की पूजा बहुत अच्छी है । इसलिए इस मंदिर में इस तरह से आयोजन किया जाना चाहिए कि हमें किसी भी धन की आवश्यकता न हो । आप अपनी सेवा देते रहे । बस इतना ही । आप अपनी सेवा में लगे रहें । अपनी सेवा को न बदलें । आपके व्यावसायिक कर्तव्य से, आप मंदिर की सेवा करने का प्रयास करते रहे, जिसका अर्थ है परम भगवान् की सेवा । |
680716 - बातचीत - मॉन्ट्रियल |