HI/Prabhupada 0928 - केवल कृष्ण के लिए अपने विशुद्ध प्रेम को बढ़ाअो । यही जीवन की पूर्णता है: Difference between revisions

 
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प्रभुपाद: मन तुम कर सकते, हर कोई, हम जानते हैं, मन की गति क्या है। यहां तक ​​कि एक दस हज़ारवां हिस्सा सेकेंड का इसमें, हम लाखों मील जा सकते हैं । मन की गति । यह इतनी तीव्र है । तुम यहाँ बैठे हो, और माल लो तुम्हारा कुछ है लाखों मील दूर मीलों दूर, तुम तुरंत ...तुम्हारा मन तुरंत जा सकता है । तो ये दो उदाहरण दिए जाते हैं । देखो वे कितने वैज्ञानिक थे । ये धुर्त कहते हैं कि कोई उन्नत बुद्धि या उन्नत वैज्ञानिक नहीं था । फिर कहाँ से ये शब्द आ रहे हैं ? हवा की गति, मन की गति । जब तुम उन्होंने कुछ प्रयोग न किया हो, कुछ ज्ञान । क्यों, कैसे ये किताबें लिखी गई ?
प्रभुपाद: मन, हर कोई, हम जानते हैं, मन की गति क्या है। यहां तक ​​की सेकेंड के एक दस हज़ारवे हिस्सेमें, हम लाखों मील जा सकते हैं । मन की गति । यह इतनी तीव्र है । तुम यहाँ बैठे हो, और मान लो तुम्हारा कुछ है लाखों मील दूर, मीलों दूर, तुम तुरंत... तुम्हारा मन तुरंत जा सकता है । तो ये दो उदाहरण दिए जाते हैं । देखो वे कितने वैज्ञानिक थे । ये धूर्त कहते हैं कि कोई उन्नत बुद्धि या उन्नत वैज्ञानिक नहीं था । फिर कहाँ से ये शब्द आ रहे हैं ? हवा की गति, मन की गति । जब तक उन्होंने कुछ प्रयोग न किया हो, कुछ ज्ञान । क्यों, कैसे ये किताबें लिखी गई ?  


तो पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्यो वायोर अथापि मनस: (ब्र स ५।३४) । और कैसे गति, तीव्र विमान निर्मित होते हैं ? मुनि-पुंगवानाम । महान वैज्ञानिक और सबसे बड़ी विचारशील पुरुषों द्वारा । उनके द्वारा निर्मित । तो यह पूर्णता है ? नहीं । तो अप्यस्ति यत प्रपद सीम्नि अविचिन्त्य तत्वे फिर भी तुम अचिंतनीय असमझ में रहोगे कि सृजन क्या है । फिर भी, अगर तुम इतने उन्नत हो कि तुम इस गति से दौड़ सकते हो, और अगर तुम सबसे बड़े वैज्ञानिक और विचारशील दार्शनिक हो, फिर भी तुम उसी हालत में रहोगे, अज्ञात । फिर भी ।
तो पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्यो वायोर अथापि मनस: (ब्रह्मसंहिता ५.३४) । और कैसे गति, तीव्र विमान निर्मित होते हैं ? मुनि-पुंगवानाम । महान वैज्ञानिक और सबसे बड़े विचारशील पुरुषों द्वारा । उनके द्वारा निर्मित । तो यह पूर्णता है ? नहीं । तो अप्यस्ति यत प्रपद सीम्नि अविचिन्त्य तत्वे | फिर भी तुम समझ नहीं सकोगे की सृजन क्या है । फिर भी, अगर तुम इतने उन्नत हो कि तुम इस गति से दौड़ सकते हो, और अगर तुम सबसे बड़े वैज्ञानिक और विचारशील तत्वज्ञानी हो, फिर भी तुम उसी हालत में रहोगे, अज्ञात । फिर भी ।  


तो कैसे हम श्री कृष्ण का अध्ययन कर सकते हैं ? और कृष्ण नें इन सब बातों को बनाया है । तो अगर तुम समझ नहीं सकते हो कि श्री कृष्ण नें बनाई हैं यह चीजें, तो तुम कैसे श्री कृष्ण को समझ सकते हो ? यह बिल्कुल संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । इसलिए मन की यह वृन्दावन की स्थिति भक्तों के लिए पूर्णता है । उन्हे ज़रूरत नहीं है श्री कृष्ण को समझने की । वे बिना किसी शर्त के, श्री कृष्ण से प्रेम करना चाहते हैं । "क्योंकि श्री कृष्ण भगवान हैं, इसलिए मैं प्रेम करता हूँ ..." उनकी मानसिकता ऐसी नहीं है । श्री कृष्ण भगवान का रूप वृन्दावन में प्रदर्शित नहीं कर रहे हैं । वे साधारण ग्वाल बाल के रूप में वहाँ अभिनय कर रहे हैं । लेकिन समय अाने पर, वे साबित कर रहे हैं कि वे भगवान हैं । लेकिन वे यह जानने की परवाह नहीं करते हैं । तो वृन्दावन के बाहर ...
तो कैसे हम कृष्ण का अध्ययन कर सकते हैं ? और कृष्ण नें इन सब बातों को बनाया है । तो अगर तुम समझ नहीं सकते हो कि श्री कृष्ण नें बनाई हैं यह चीजें, तो तुम कैसे श्री कृष्ण को समझ सकते हो ? यह बिल्कुल संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । इसलिए मन की यह वृन्दावन की स्थिति भक्तों के लिए पूर्णता है । उन्हे ज़रूरत नहीं है श्री कृष्ण को समझने की । वे बिना किसी शर्त के, श्री कृष्ण से प्रेम करना चाहते हैं । "क्योंकि श्री कृष्ण भगवान हैं, इसलिए मैं प्रेम करता हूँ..." उनकी मानसिकता ऐसी नहीं है ।  


जैसे कुंतीदेवी । कुंतीदेवी वृन्दावन का निवासी नहीं है । वे हस्तिनापुर की निवासी है, वृन्दावन के बाहर । बाहर के भक्त, जो भक्त वृन्दावन के बाहर हैं, वे वृन्दावन के निवासियों का अध्ययन कर रहे हैं, कैसे महान हैं वे । लेकिन वृन्दावन के निवासि, वे श्री कृष्ण कितने महान हैं यह जानने के इच्छुक नहीं हैं । यही अंतर है । तो हमारा काम है केवल श्री कृष्ण से प्रेम करना । जितना अधिक तुम श्री कृष्ण से प्रेम करोगे, उतना अधिक तुम पूर्ण हो जाअोगे । जरूरी नहीं है श्री कृष्ण को समझना, कैसे उन्होंने सृजन किया । ये चीज़ें उल्लेख की गई हैं । श्री कृष्ण स्वयं के बारे में समझा रहे हैं इतना भगवद गीता में । श्री कृष्ण को जानने के लिए बहुत ज्यादा परेशान मत होना । यह संभव नहीं है । केवल श्री कृष्ण के लिए अपने विशुद्ध प्रेम में वृद्धि करो । यही जीवन की पूर्णता है ।
श्री कृष्ण भगवान का रूप वृन्दावन में प्रदर्शित नहीं कर रहे हैं । वे साधारण ग्वाल बाल के रूप में वहाँ अभिनय कर रहे हैं । लेकिन समय अाने पर, वे साबित कर रहे हैं कि वे भगवान हैं । लेकिन वे यह जानने की परवाह नहीं करते हैं । तो वृन्दावन के बाहर... जैसे कुंतीदेवी । कुंतीदेवी वृन्दावन की निवासी नहीं है । वे हस्तिनापुर की निवासी है, वृन्दावन के बाहर । बाहर के भक्त, जो भक्त वृन्दावन के बाहर हैं, वे वृन्दावन के निवासियों का अध्ययन कर रहे हैं, कैसे महान हैं वे । लेकिन वृन्दावन के निवासी, वे श्री कृष्ण कितने महान हैं यह जानने के इच्छुक नहीं हैं । यही अंतर है ।  


बहुत बहुत धन्यवाद
तो हमारा काम है केवल श्री कृष्ण से प्रेम करना । जितना अधिक तुम श्री कृष्ण से प्रेम करोगे, उतना अधिक तुम पूर्ण हो जाअोगे । जरूरी नहीं है श्री कृष्ण को समझना, कैसे उन्होंने सृजन किया । ये चीज़ें उल्लेख की गई हैं । श्री कृष्ण स्वयं के बारे में समझा रहे हैं इतना भगवद गीता में । श्री कृष्ण को जानने के लिए बहुत ज्यादा परेशान मत हो । यह संभव नहीं है । केवल श्री कृष्ण के लिए अपने विशुद्ध प्रेम में वृद्धि करो । यही जीवन की पूर्णता है ।  


भक्त : हरे कृष्ण, जय !
बहुत बहुत धन्यवाद ।
 
भक्त: हरे कृष्ण, जय !  
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Latest revision as of 07:00, 27 October 2018



730423 - Lecture SB 01.08.31 - Los Angeles

प्रभुपाद: मन, हर कोई, हम जानते हैं, मन की गति क्या है। यहां तक ​​की सेकेंड के एक दस हज़ारवे हिस्सेमें, हम लाखों मील जा सकते हैं । मन की गति । यह इतनी तीव्र है । तुम यहाँ बैठे हो, और मान लो तुम्हारा कुछ है लाखों मील दूर, मीलों दूर, तुम तुरंत... तुम्हारा मन तुरंत जा सकता है । तो ये दो उदाहरण दिए जाते हैं । देखो वे कितने वैज्ञानिक थे । ये धूर्त कहते हैं कि कोई उन्नत बुद्धि या उन्नत वैज्ञानिक नहीं था । फिर कहाँ से ये शब्द आ रहे हैं ? हवा की गति, मन की गति । जब तक उन्होंने कुछ प्रयोग न किया हो, कुछ ज्ञान । क्यों, कैसे ये किताबें लिखी गई ?

तो पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्यो वायोर अथापि मनस: (ब्रह्मसंहिता ५.३४) । और कैसे गति, तीव्र विमान निर्मित होते हैं ? मुनि-पुंगवानाम । महान वैज्ञानिक और सबसे बड़े विचारशील पुरुषों द्वारा । उनके द्वारा निर्मित । तो यह पूर्णता है ? नहीं । तो अप्यस्ति यत प्रपद सीम्नि अविचिन्त्य तत्वे | फिर भी तुम समझ नहीं सकोगे की सृजन क्या है । फिर भी, अगर तुम इतने उन्नत हो कि तुम इस गति से दौड़ सकते हो, और अगर तुम सबसे बड़े वैज्ञानिक और विचारशील तत्वज्ञानी हो, फिर भी तुम उसी हालत में रहोगे, अज्ञात । फिर भी ।

तो कैसे हम कृष्ण का अध्ययन कर सकते हैं ? और कृष्ण नें इन सब बातों को बनाया है । तो अगर तुम समझ नहीं सकते हो कि श्री कृष्ण नें बनाई हैं यह चीजें, तो तुम कैसे श्री कृष्ण को समझ सकते हो ? यह बिल्कुल संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । इसलिए मन की यह वृन्दावन की स्थिति भक्तों के लिए पूर्णता है । उन्हे ज़रूरत नहीं है श्री कृष्ण को समझने की । वे बिना किसी शर्त के, श्री कृष्ण से प्रेम करना चाहते हैं । "क्योंकि श्री कृष्ण भगवान हैं, इसलिए मैं प्रेम करता हूँ..." उनकी मानसिकता ऐसी नहीं है ।

श्री कृष्ण भगवान का रूप वृन्दावन में प्रदर्शित नहीं कर रहे हैं । वे साधारण ग्वाल बाल के रूप में वहाँ अभिनय कर रहे हैं । लेकिन समय अाने पर, वे साबित कर रहे हैं कि वे भगवान हैं । लेकिन वे यह जानने की परवाह नहीं करते हैं । तो वृन्दावन के बाहर... जैसे कुंतीदेवी । कुंतीदेवी वृन्दावन की निवासी नहीं है । वे हस्तिनापुर की निवासी है, वृन्दावन के बाहर । बाहर के भक्त, जो भक्त वृन्दावन के बाहर हैं, वे वृन्दावन के निवासियों का अध्ययन कर रहे हैं, कैसे महान हैं वे । लेकिन वृन्दावन के निवासी, वे श्री कृष्ण कितने महान हैं यह जानने के इच्छुक नहीं हैं । यही अंतर है ।

तो हमारा काम है केवल श्री कृष्ण से प्रेम करना । जितना अधिक तुम श्री कृष्ण से प्रेम करोगे, उतना अधिक तुम पूर्ण हो जाअोगे । जरूरी नहीं है श्री कृष्ण को समझना, कैसे उन्होंने सृजन किया । ये चीज़ें उल्लेख की गई हैं । श्री कृष्ण स्वयं के बारे में समझा रहे हैं इतना भगवद गीता में । श्री कृष्ण को जानने के लिए बहुत ज्यादा परेशान मत हो । यह संभव नहीं है । केवल श्री कृष्ण के लिए अपने विशुद्ध प्रेम में वृद्धि करो । यही जीवन की पूर्णता है ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: हरे कृष्ण, जय !