Category:Hindi Language
- We launched our Multi-language pages in Vanipedia on the 2nd of May 2015 - celebrating the appearance of Lord Nrsimhadeva.
- The first series of translations are short texts of Śrīla Prabhupāda's audio and video clips. We have a total of 1080 original Vaniquotes pages in English to translate in each language.
- Vanipedia's dream is to fulfill Śrīla Prabhupāda's desire to translate all of his books, lectures, conversations and letters in all languages of the world. Here is a list of participating languages.
- Already, over 720 devotees have been engaged in translating into 100 languages within Vanipedia. If you want to help translate some of the 1,080 texts, or help to organize the translations and/or import Śrīla Prabhupāda's books in your language, please contact visnu.murti.vani@ gmail.com
- Welcome to our Hindi YouTube Channel where you can see many videos of Srila Prabhupada speaking with hardcoded Hindi subtitles.
Subcategories
This category has the following 15 subcategories, out of 15 total.
#
0
1
3
D
P
T
Pages in category "Hindi Language"
The following 271 pages are in this category, out of 271 total.
H
- HI/Prabhupada 0001 - एक करोड़ तक फैल जाअो
- HI/Prabhupada 0002 - उन्मत्त सभ्यता
- HI/Prabhupada 0003 - पुरूष भी स्त्री है
- HI/Prabhupada 0004 - आधिकारिक स्रोत की शरण लो
- HI/Prabhupada 0005 - प्रभुपाद की जीवनी तीन मिनटों में
- HI/Prabhupada 0006 - हर कोई भगवान है मूर्खों का स्वर्ग
- HI/Prabhupada 0007 - कृष्ण का संरक्षण आएगा
- HI/Prabhupada 0008 - कृष्ण दावा करते है की 'मैं हर किसी का पिता हूँ'
- HI/Prabhupada 0009 - चोर जो भक्त बना
- HI/Prabhupada 0010 - कृष्ण की नकल न करो
- HI/Prabhupada 0011 - मन में कृष्ण की पूजा की जा सकती है
- HI/Prabhupada 0012 - ज्ञान का स्रोत श्रवण है
- HI/Prabhupada 0013 - आध्यात्मिक कार्य चौबीस घंटे
- HI/Prabhupada 0014 - भक्त इतने महान हैं
- HI/Prabhupada 0015 - मैं ये शरीर नहीं हूँ
- HI/Prabhupada 0016 - मैं काम करना चाहता हूँ
- HI/Prabhupada 0017 - परा शक्ति और अपरा शक्ति
- HI/Prabhupada 0018 - गुरु के शब्द सर्वस्व
- HI/Prabhupada 0019 - पहले सुनो और फिर दोहराओ
- HI/Prabhupada 0020 - कृष्ण को समझना इतना सरल नहीं है
- HI/Prabhupada 0021 - ये देश में इतने सारे तलाक क्यों होते है
- HI/Prabhupada 0022 - कृष्ण भूखे नहीं है
- HI/Prabhupada 0023 - मृत्यु से पहले कृष्ण भावनाभावित हो जाअो
- HI/Prabhupada 0024 - कृष्ण इतने दयालु है
- HI/Prabhupada 0025 - अगर हम असली चीज देते हैं, तो उसका असर तो होगा ही
- HI/Prabhupada 0026 - अापको सबसे पहले स्थानांतरित किया जाएगा उस ब्रह्मांड में जहाँ कृष्ण मौजूद हैं
- HI/Prabhupada 0027 - उन्हे पता ही नहीं की पुनर्जिवन है
- HI/Prabhupada 0028 - बुद्ध भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0029 - बुद्ध ने राक्षसों को धोखा दिया
- HI/Prabhupada 0030 - कृष्ण सिर्फ आनंद करते है
- HI/Prabhupada 0031 - मेरे उपदेशो तथा प्रशिक्षण के अनुसार जीवन व्यतीत करो
- HI/Prabhupada 0032 - मुझे जो कुछ भी कहना था, मैने अपनी पुस्तकों में कह दिया है
- HI/Prabhupada 0033 - महाप्रभु का नाम पतीत-पावन है, वे सब बुरे पुरुषों का उद्धार कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0034 - हर कोई अधिकारियों से ज्ञान प्राप्त करता है
- HI/Prabhupada 0035 - ये शरीर में दो जीव है
- HI/Prabhupada 0036 - जीवन का लक्ष्य है हमारे स्वाभाविक स्थिति को समझना
- HI/Prabhupada 0037 - जो कृष्ण को जानता है, वह गुरू है
- HI/Prabhupada 0038 - ज्ञान वेदों से उत्पन्न होता है
- HI/Prabhupada 0039 - आधुनिक नेता कठपुतली के समान है
- HI/Prabhupada 0040 - यहाँ एक परम पुरुष हैं
- HI/Prabhupada 0850 - अगर कुछ पैसे मिलें, तो पुस्तकें छापो
- HI/Prabhupada 0851 - चबाए हुए को चबाना । यह भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0852 - आपके हृदय की गहराईओं में, भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0853 - एसा नहीं है कि हम इस ग्रह में आए हैं । हम कई अन्य ग्रहों में जा चुकें है
- HI/Prabhupada 0854 - महानतम से अधिक महान, और सबसे छोटे से छोटा । ये भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0855 - अगर मैं अपने भौतिक आनंद को रोक दूँ, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा । नहीं
- HI/Prabhupada 0856 - अात्मा भी व्यक्ति है जितने के भगवान व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0857 - कृत्रिम अावरण को हटाना होगा । फिर हम कृष्ण भावनामृत में अाते हैं
- HI/Prabhupada 0858 - हम प्रशिक्षण दे रहे हैं, हम वकालत कर रहे हैं कि अवैध यौन संबंध पाप है
- HI/Prabhupada 0859 - यही पश्चिमी सभ्यता का दोष है। वोक्स पोपुलै, जनता की राय लेना
- HI/Prabhupada 0860 - यह ब्रिटिश सरकार की नीति थी कि हर भारतीय चीज़ की निंदा करना
- HI/Prabhupada 0861 - मेलबोर्न शहर के सभी भूखे पुरुष, यहाँ आओ, तुम भर पेट खाना खाअो
- HI/Prabhupada 0862 - जब तक तुम समाज को नहीं बदलते, तुम समाज कल्याण कैसे कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0863 - तुम मांस खा सकते हो, लेकिन तुम अपने पिता और माता की हत्या करके मांस नहीं खा सकते हो
- HI/Prabhupada 0864 - पूरे मानव समाज को सुखी करने के लिए, यह भगवद भावनामृत आंदोलन फैलना बहुत आवश्यक है
- HI/Prabhupada 0865 - तुम देश को ले रहे हो, लेकिन शास्त्र ग्रहों को लेता है, देश को नहीं
- HI/Prabhupada 0866 - सब कुछ मर जाएगा - पेड़, पौधे, पशु, सब कुछ
- HI/Prabhupada 0867 - हम शाश्वत हैं और हम अपनी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार हैं । यही ज्ञान है
- HI/Prabhupada 0868 - हम जीवन के इस भयानक स्थिति से बच रहे हैं। तुम खुशी से बच रहे हो
- HI/Prabhupada 0869 - जनता व्यस्त मूर्ख है । तो हम आलसी बुद्धिमान पैदा कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0870 - यह क्षत्रिय का कर्तव्य है, बचाना, रक्षा करना
- HI/Prabhupada 0871 - राजा प्रथम श्रेणी के ब्राह्मण, साधु, द्वारा नियंत्रित थे
- HI/Prabhupada 0872 - यह जरूरी है कि मानव समाज चार वर्णो में बांटा जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0873 - भक्ति का मतलब है अपने को उपाधियों से शुद्ध करना
- HI/Prabhupada 0874 - जो आध्यात्मिक मंच पर उन्नत हैं, वह प्रसन्नात्मा है । वह खुश है
- HI/Prabhupada 0875 - अपने खुद के भगवान के नाम का जाप करो । कहाँ आपत्ति है - लेकिन भगवान के पवित्र नाम का जाप करो
- HI/Prabhupada 0876 - जब तुम आनंद के आध्यात्मिक महासागर पर आओगे, इसमें दिन प्रतिदिन वृद्धि होगी
- HI/Prabhupada 0877 - अगर तुम आदर्श नहीं हो, तो यह केंद्र खोलना बेकार होगा
- HI/Prabhupada 0878 - भारत में वैदिक सभ्यता का पतन
- HI/Prabhupada 0879 - विनम्रता भक्ति सेवा में बहुत अच्छी है
- HI/Prabhupada 0880 - कृष्ण भावनामृत को कृष्ण को परेशान करने के लिए अपनाया है, या तुम वास्तव में गंभीर हो
- HI/Prabhupada 0881 - यद्यपि भगवान अदृश्य हैं, अब वे दिखाई देने के लिए अवतरित हुए हैं, कृष्ण
- HI/Prabhupada 0882 - कृष्ण बहुत उत्सुक हैं हमें परम धाम ले जाने के लिए, पर हम ज़िद्दी हैं
- HI/Prabhupada 0883 - अपनी आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए अपना समय बर्बाद मत करो
- HI/Prabhupada 0884 - हम बैठे हैं और कृष्ण के बारे में पृच्छा कर रहे हैं । यही जीवन है
- HI/Prabhupada 0885 - आध्यात्मिक आनंद समाप्त नहीं होता । यह बढ़ता है
- HI/Prabhupada 0886 - व्यक्ति भागवत या पुस्तक भागवत, तुम सेवा करो । फिर तुम स्थिर रहोगे
- HI/Prabhupada 0887 - वेद का मतलब है ज्ञान, और अन्त का मतलब अंतिम चरण, या अंत
- HI/Prabhupada 0888 - हरे कृष्ण मंत्र का जप करो और भगवान का साक्षात्कार करो
- HI/Prabhupada 0889 - अगर तुम एक सेंट रोज़ जमा करते हो, एक दिन यह एक सौ डॉलर हो सकता है
- HI/Prabhupada 0890 - कितना समय लगता है कृष्णा को आत्मसमर्पण करने के लिए?
- HI/Prabhupada 0891 - कृष्ण नियमित आवर्तन से कई सालों के बाद इस ब्रह्मांड में अवतरित होते हैं
- HI/Prabhupada 0892 - अगर तुम शिक्षा से गिर जाते हो, तो कैसे तुम शाश्वत सेवक रह सकते हो ?
- HI/Prabhupada 0893 - यह हर किसी का असली इरादा है । कोई भी काम नहीं करना चाहता
- HI/Prabhupada 0894 - कर्तव्य करना ही है । थोड़ी पीड़ा हो तो भी। यही तपस्या कहा जाता है
- HI/Prabhupada 0895 - एक भक्त खतरनाक स्थितिको आपत्तिजनक स्थितिके रूपमें कभी नहीं लेता है । वह स्वागत करता है
- HI/Prabhupada 0896 - जब हम किताब बेचते हैं, यह कृष्ण भावनामृत है
- HI/Prabhupada 0897 - अगर तुम कृष्ण भावनाभावित रहते हो, यह तुम्हारा लाभ है
- HI/Prabhupada 0898 - क्योंकि मैं एक भक्त बन गया हूँ, कोई खतरा नहीं होगा, कोई दुख नहीं होगा । नहीं
- HI/Prabhupada 0899 - भगवान मतलब बिना प्रतिस्पर्धा के : एक । भगवान एक हैं । कोई भी उनसे महान नहीं है
- HI/Prabhupada 0900 - जब इन्द्रियों को इन्द्रिय संतुष्टि के लिए उपयोग किया जाता है, यह माया है
- HI/Prabhupada 0901 - अगर मैं ईर्ष्या नहीं करता हूँ, तो मैं आध्यात्मिक दुनिया में हूँ । कोई भी जांच कर सकता है
- HI/Prabhupada 0902 - कमी है कृष्ण भावनामृत की तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित बनते हो तब सब कुछ पर्याप्त है
- HI/Prabhupada 0903 - जैसे ही नशा खत्म होगा, तुम्हारे सभी नशीले स्वप्न भी खत्म हो जाते हैं
- HI/Prabhupada 0904 - तुमने भगवान की संपत्ति चुराई है
- HI/Prabhupada 0905 - असली चेतना में आओ कि सब कुछ भगवान का है
- HI/Prabhupada 0906 - तुम्हारे पास शून्य है । कृष्ण को रखो । तुम दस बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0907 - आध्यात्मिक दुनिया में, तथाकथित अनैतिकता भी अच्छी है
- HI/Prabhupada 0908 - मैं सुखी होने की कोशिश कर सकता हूँ, अगर कृष्ण मंजूरी नहीं देते हैं, मैं कभी सुखी नहीं हूँगा
- HI/Prabhupada 0909 - मुझे मजबूर किया गया इस स्थिति में आने के लिए मेरे गुरु महाराज के आदेश का पालन करने के लिए
- HI/Prabhupada 0910 - हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए की हम कृष्ण द्वारा शाषित रहे । यही सफल जीवन है
- HI/Prabhupada 0911 - अगर तुम भगवान में विश्वास करते हो, तो तुम सभी जीवों पर समान तरह से कृपालु और दयालु होंगे
- HI/Prabhupada 0912 - जो बुद्धिमत्ता में उन्नत हैं, वो भगवान को भीतर और बाहर देख सकते हैं
- HI/Prabhupada 0913 - कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान, और भविष्य नहीं है । इसलिए वे शाश्वत हैं
- HI/Prabhupada 0914 - पदार्थ कृष्ण की एक शक्ति है, और अात्मा एक और शक्ति
- HI/Prabhupada 0915 - साधु मेरा ह्दय है, और मैं भी साधु का ह्दय हूँ
- HI/Prabhupada 0916 - कृष्ण को आपके अच्छे कपड़े या अच्छा फूल या अच्छे भोजन की आवश्यकता नहीं है
- HI/Prabhupada 0917 - सारा संसार इन्द्रियों की सेवा कर रहा है, इन्द्रियों का सेवक
- HI/Prabhupada 0918 - कृष्ण का शत्रु बनना बहुत लाभदायक नहीं है । बेहतर है दोस्त बनो
- HI/Prabhupada 0919 - कृष्ण का कोई दुश्मन नहीं है । कृष्ण का कोई दोस्त नहीं है । वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं
- HI/Prabhupada 0920 - क्योंकि जीवन शक्ति, आत्मा है, पूरा शरीर काम कर रहा है
- HI/Prabhupada 0921 - क्या तुम श्रीमान निक्सन का संग करने पर बहुत गर्व महसूस नहीं करोगे ?
- HI/Prabhupada 0922 - हम हर किसी से अनुरोध कर रहे हैं : कृपया मंत्र जपो, जपो, जपो
- HI/Prabhupada 0923 - इन चार स्तम्भों को तोड़ो । तो पापी जीवन की छत गिर जाएगी
- HI/Prabhupada 0924 - केवल नकारात्मक्ता का कोई अर्थ नहीं है। कुछ सकारात्मक होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0925 - कामदेव हर किसी को मोहित करते है । और कृष्ण कामदेव को मोहित करते हैं
- HI/Prabhupada 0926 - ऐसी कोई कारोबार नहीं । यह जऱूरी है । कृष्ण उस तरह का प्रेम चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0927 - कैसे तुम कृष्ण का विश्लेषण करोगे ? वे असीमित हैं । यह असंभव है
- HI/Prabhupada 0928 - केवल कृष्ण के लिए अपने विशुद्ध प्रेम को बढ़ाअो । यही जीवन की पूर्णता है
- HI/Prabhupada 0929 - स्नान करना, यह भी अादत नहीं है । शायद एक हफ्ते में एक बार
- HI/Prabhupada 0930 - तुम इस भौतिक स्थिति से बाहर निकलो । तब वास्तविक जीवन है, अनन्त जीवन
- HI/Prabhupada 0931 - अगर कोई अजन्मा है तो वह कैसे मर सकता है ? मृत्यु का कोई सवाल ही नहीं है
- HI/Prabhupada 0932 - कृष्ण जन्म नहीं लेते हैं, लेकिन कुछ मूर्खों को एेसा दिखाई देता है
- HI/Prabhupada 0933 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को पशु जीवन में पतन होने से बचाने की कोशिश करता है
- HI/Prabhupada 0934 - आत्मा की आवश्यकता की परवाह न करना, यह मूर्ख सभ्यता है
- HI/Prabhupada 0935 - जीवन की वास्तविक आवश्यकता आत्मा के आराम की आपूर्ति है
- HI/Prabhupada 0936 - केवल वादा; 'भविष्य में ।' 'लेकिन अभी अाप क्या दे रहे हैं, श्रीमान ?'
- HI/Prabhupada 0937 - कौआ हंस के पास नहीं जाएगा । हंस कौए के पास नहीं जाएगा
- HI/Prabhupada 0938 - यीशु मसीह, कोई गलती नहीं है । केवल एक मात्र गलती थी वह भगवान के बारे मे प्रचार कर रहे थे
- HI/Prabhupada 0939 - कोई भी उस पति से शादी नहीं करेगा जिसने चौंसठ बार शादी की हो
- HI/Prabhupada 0940 - आध्यात्मिक दुनिया मतलब कोई काम नहीं । बस आनंद, हर्ष
- HI/Prabhupada 0941 - हमारे छात्रों में से कुछ, वे सोचते हैं कि 'क्यों मैं इस मिशन के लिए काम करूँ?
- HI/Prabhupada 0942 - हमने कृष्ण को भूलकर अनावश्यक समस्याओं को पैदा किया है
- HI/Prabhupada 0943 - कुछ भी मेरा नहीं है । इशावास्यम इदम सर्वम, सब कुछ कृष्ण का है
- HI/Prabhupada 0944 - केवल आवश्यकता यह है कि हम कृष्ण की व्यवस्था का लाभ लें
- HI/Prabhupada 0945 - भागवत-धर्म का मतलब है भक्त और भगवान के बीच का संबंध
- HI/Prabhupada 0946 - हम इस तथाकथित भ्रामक सुख के लिए एक शरीर से दूसरे में प्रवेश करते हैं
- HI/Prabhupada 0947 - हमें बहुत स्वतंत्रता मिली है, लेकिन अभी हम इस शरीर से बद्ध हैं
- HI/Prabhupada 0948 - यह युग कलि कहलता है, यह बहुत अच्छा समय नहीं है । केवल असहमति और लड़ाई
- HI/Prabhupada 0949 - हम शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन हम हमारे दांतों का अध्ययन नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0950 - हमारा पड़ोसी भूखा मर सकता है, लेकिन हमें इसकी परवाह नहीं है
- HI/Prabhupada 0951 - आम के पेड़ के शीर्ष पर एक बहुत परिपक्व फल है
- HI/Prabhupada 0952 - भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक क्रियाओ के विरुद्ध है
- HI/Prabhupada 0953 - जब आत्मा स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, तो वह नीचे गिर जाता है । यही भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0954 - जब हम इन नीच गुणों पर विजय पाते हैं, तब हम सुखी होते हैं
- HI/Prabhupada 0955 - ज्य़ादातर जीव, वे आध्यात्मिक दुनिया में हैं । केवल कुछ ही नीचे गिरते हैं
- HI/Prabhupada 0956 - कुत्ते का पिता अपने बेटे को कभी नहीं कहेगा : ' स्कूल जाअो ' नहीं । वे कुत्ते हैं
- HI/Prabhupada 0957 - मुहम्मद कहते हैं कि वे भगवान के दास हैं । मसीह कहते हैं कि वे भगवान के पुत्र हैं
- HI/Prabhupada 0958 - अाप गायों को प्यार नहीं करते; आप उन्हें कसाईखाने भेज देते हो
- HI/Prabhupada 0959 - भगवान को भी विवेक है । बुरा तत्व हैं
- HI/Prabhupada 0960 - जो भगवान के अस्तित्व से इनकार करता हैं, वो पागल हैं
- HI/Prabhupada 0961 - हमारी स्थिति है अाधीन रहना और भगवान शासक हैं
- HI/Prabhupada 0962 - हम ठोस तथ्य के रूप में भगवान को मानते हैं
- HI/Prabhupada 0963 - केवल कृष्ण का एक भक्त जो उनसे घनिष्टता के संबंध रखता है भगवद गीता को समझ सकता है
- HI/Prabhupada 0964 - जब कृष्ण इस ग्रह पर विद्यमान थे, वे गोलोक वृन्दावन में अनुपस्थित थे । नहीं
- HI/Prabhupada 0965 - हमें उस व्यक्ति की शरण लेना है जिसका जीवन कृष्ण को समर्पित है
- HI/Prabhupada 0966 - हम भगवान के दर्शन कर सकते हैं जब आंखें रंगीं हो भक्ति के काजल से
- HI/Prabhupada 0967 - कृष्ण को, भगवान को, समझने के लिए हमें अपनी इन्द्रियों को शुद्ध करना होगा
- HI/Prabhupada 0968 - पश्चिमी तत्वज्ञान सुखवाद का है, खाअो, पियो, ऐश करो
- HI/Prabhupada 0969 - अगर तुम अपनी जीभ को भगवान की सेवा में लगाते हो, वे खुद को तुम्हे प्रकट करेंगे
- HI/Prabhupada 0970 - जीभ को हमेशा भगवान की महिमा करने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0971 - तो जब तक तुम जीवन की शारीरिक अवधारणा में हो, तुम जानवर से बेहतर नहीं हो
- HI/Prabhupada 0972 - समझने की कोशिश करो 'किस तरह का शरीर मुझे अगला मिलेगा?
- HI/Prabhupada 0973 - अगर वह सिद्धांतों का पालन करता है, तो वह निश्चित रूप से भगवद धाम वापस जाता है
- HI/Prabhupada 0974 - हमारी महानता बहुत, बहुत छोटी है, अत्यल्प । भगवान बहुत महान हैं
- HI/Prabhupada 0975 - हम छोटे भगवान हैं । सूक्ष्म, नमूने के भगवान
- HI/Prabhupada 0976 - जनसंख्या के अधिक होने का कोई सवाल नहीं है । यह एक गलत सिद्धांत है
- HI/Prabhupada 0977 - यह भौतिक शारीर हमारे आध्यात्मिक शरीर के अनुसार काटा जाता है
- HI/Prabhupada 0978 - अगर तुम्हे ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है, तो तुम भुगतोगे
- HI/Prabhupada 0979 - भारत की हालत बहुत ही अराजक है
- HI/Prabhupada 0980 - हम भौतिक समृद्धि से सुखी नहीं हो सकते, यह एक तथ्य है
- HI/Prabhupada 0981 - पहेले हर ब्राह्मण ये दो विज्ञान सीखते थे, आयुर्वेद और ज्योतिर वेद
- HI/Prabhupada 0982 - जैसे ही हमें एक गाडी मिलती है, कितनी भी खराब क्यों न हो, हमें लगता है कि यह बहुत अच्छा है
- HI/Prabhupada 0983 - भौतिकवादी व्यक्ति, वे अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0984 - हिंदुओं का एक भगवान है और ईसाइयों का दूसरा भगवान है । नहीं । भगवान दो नहीं हो सकते हैं
- HI/Prabhupada 0985 - मनुष्य जीवन विशेष रूप से परम सत्य के बारे में जिज्ञासा करने के लिए है
- HI/Prabhupada 0986 - कोई भी भगवान से ज्यादा बुद्धिमान नहीं हो सकता
- HI/Prabhupada 0987 - यह मत सोचो कि भगवद भावनामृत में तुम भूखे रहोगे । तुम कभी भूखे नहीं रहोगे
- HI/Prabhupada 0988 - श्रीमद-भागवतम में तथाकथित भावुक धर्मनिष्ठा नहीं है
- HI/Prabhupada 0989 - गुरु की कृपा से व्यक्ति को कृष्ण मिलते हैं । यही है भगवद भक्ति-योग
- HI/Prabhupada 0990 - प्रेम का मतलब यह नहीं 'मैं खुद को प्यार करता हूँ' और प्रेम पर ध्यान करता हूं । नहीं
- HI/Prabhupada 0991 - जुगल प्रीति : राधा और कृष्ण के बीच का प्रेम
- HI/Prabhupada 0992 - अवसरवादियों के लिए कोई कृष्ण भावनामृत नहीं है
- HI/Prabhupada 0993 - यह व्यवस्था करो कि वह भूखा नहीं रहा है । यह आध्यात्मिक साम्यवाद है
- HI/Prabhupada 0994 - भगवान और हमारे बीच क्या अंतर है?
- HI/Prabhupada 0995 - कृष्ण भावनामृत अंदोलन क्षत्रिय कर्म या वैश्य कर्म के लिए नहीं है
- HI/Prabhupada 0996 - मैंने तुम अमेरिकी लड़के अौर लड़कियों को रिश्वत नहीं दी थी मेरा अनुसरण करने के लिए
- HI/Prabhupada 0997 - कृष्ण का कार्य हर किसी के लिए है । इसलिए हम हर किसी का स्वागत करते हैं
- HI/Prabhupada 0998 - एक साधु का कार्य है सभी जीवों का कल्याण
- HI/Prabhupada 0999 - अात्मवित मतलब वो व्यक्ति जो आत्मा को जानता है
- HI/Prabhupada 1000 - माया हमेशा मौके की तलाश में है, छिद्र, कैसे तुम पर फिर से कब्जा करें
- HI/Prabhupada 1001 - कृष्ण भावनामृत हर किसी के हृदय में सुषुप्त है
- HI/Prabhupada 1002 - यदि मैं भगवान से किसी लाभ के लिये प्रेम करूँ, तो वह व्यापार है; वो प्रेम नहीं है
- HI/Prabhupada 1003 - व्यक्ति भगवान के पास गया है, भगवान आध्यात्मिक है, लेकिन वो भौतिक लाभ मांग रहा है
- HI/Prabhupada 1004 - बिल्लियों और कुत्तों की तरह काम करते रहना और मर जाना । ये बुद्धिमता नहीं है
- HI/Prabhupada 1005 - कृष्ण भावनामृत के बिना, आपकी केवल बकवास इच्छाए होंगीं
- HI/Prabhupada 1006 - हम जाति व्यवस्था प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1007 - जहाँ तक कृष्ण भावनामृत का संबंध है, हम समान रूप से वितरित करते हैं
- HI/Prabhupada 1008 - मेरे गुरु महाराज ने मुझे आदेश दिया 'जाओ और पश्चिमी देशों में इस पंथ का प्रचार करो'
- HI/Prabhupada 1009 - अगर तुम गुरु को भगवान की तरह सम्मान देते हो, तो उन्हे भगवानकी तरह सुविधा भी देनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1010 - तुम लकड़ी, पत्थर देख सकते हो । तुम आत्मा नहीं देख सकते
- HI/Prabhupada 1011 - धर्म क्या है यह तुम्हे भगवान से सीखना होगा । तुम अपने मन से धर्म का निर्माण नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 1012 - सुनना और दोहराना, सुनना और दोहराना । आपको निर्माण करने की अावशयक्ता नहीं है
- HI/Prabhupada 1013 - अगली मृत्यु से पहले हमें अति शीध्र प्रयास करना चाहिए
- HI/Prabhupada 1014 - एक ढोंगी नकली भगवान अपने शिष्य को सिखा रहा था और वह बिजली के झटके महसूस कर रहा था
- HI/Prabhupada 1015 - जब तक पदार्थ के पीछे अात्मा नहीं होती है, कुछ भी निर्माण नहीं किया जा सकता है
- HI/Prabhupada 1016 - भागवतम कहता है कि हर वस्तु का मूल स्रोत संवेदनशील है । सचेत
- HI/Prabhupada 1017 - ब्रह्मा मूल सृजनकर्ता नहीं हैं । मूल सृजनकर्ता कृष्ण हैं
- HI/Prabhupada 1018 - शुरुआत में हमें लक्ष्मी नारायण के स्तर में राधा-कृष्ण की पूजा करनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1019 - अगर तुम कृष्ण के लिए कुछ सेवा करते हो, तो कृष्ण तुम्हे सौ गुना पुरस्कृत करेंगे
- HI/Prabhupada 1020 - हृदय प्रेम के लिए ही है, परन्तु आप क्यों इतने कठोर हृदय के हो ?
- HI/Prabhupada 1021 - अगर बद्ध जीव से कोई सहानुभूति करता है, तो वह एक वैष्णव है
- HI/Prabhupada 1022 - पहली बात हमें यह सीखना है कि प्रेम कैसे करना है । यही प्रथम श्रेणी का धर्म है
- HI/Prabhupada 1023 - अगर भगवान सर्व शक्तिशाली हैं, तुम क्यों उनकी शक्ति को घटाते हो, कि वे अवतरित नहीं हो सकते ?
- HI/Prabhupada 1024 - अगर तुम इन दो सिद्धांतों का पालन करते हो, कृष्ण तुम्हारी पकड़ में होंगे
- HI/Prabhupada 1025 - कृष्ण केवल प्रतीक्षा कर रहे हैं 'कब यह धूर्त मेरी तरफ अपना चेहरा मोडेगा ?'
- HI/Prabhupada 1026 - अगर हम समझ जाते हैं कि कृष्ण भोक्ता हैं, हम नहीं - यही आध्यात्मिक दुनिया है
- HI/Prabhupada 1027 - मेरी पत्नी, मेरे बच्चे और समाज मेरे सैनिक हैं । अगर मैं मुसीबत मे हूँ, वे मेरी मदद करेंगे
- HI/Prabhupada 1028 - ये सभी नेता, वे स्थिति को बिगाड़ रहे हैं
- HI/Prabhupada 1029 - हमारा धर्म वैराग्य नहीं कहता है । हमारा धर्म भगवान से प्रेम करना सिखाता है
- HI/Prabhupada 1030 - मानव जीवन भगवान को समझने के लिए है । यही मानव जीवन का एमात्र उद्देश्य है
- HI/Prabhupada 1031 - प्रत्येक जीव, वे भौतिक अावरण से ढके हैं
- HI/Prabhupada 1032 - अपने आपक को भौतिक शक्ति से आध्यात्मिक शक्ति की और ले जाने की पद्धति
- HI/Prabhupada 1033 - यीशु मसीह भगवान के पुत्र हैं, भगवान के श्रेष्ठ पुत्र, तो उनके प्रति हमें पूरा सम्मान है
- HI/Prabhupada 1034 - मृत्यु का अर्थ है सात महीनों की नींद । बस । यही मृत्यु है
- HI/Prabhupada 1035 - हरे कृष्ण जप द्वारा अपने अस्तित्व की वास्तविक्ता को समझो
- HI/Prabhupada 1036 - सात ग्रह प्रणालियॉ हमारे उपर हैं और सात ग्रह प्रणालियॉ नीचे भी हैं
- HI/Prabhupada 1037 - इस भौतिक जगत में हम देखते हैं कि लगभग हर कोई भगवान को भूल गया है
- HI/Prabhupada 1038 - शेर का ख़ुराक दूसरा जानवर है । मनुष्य का ख़ुराक फल, अनाज, दूध की उत्पाद है
- HI/Prabhupada 1039 - गाय माँ है क्योंकि हम गाय का दूध पीते हैं । मैं कैसे नकार सकता हूँ कि वह माँ नहीं है ?
- HI/Prabhupada 1040 - मानव जीवन का हमारा मिशन दुनिया भर में असफल हो रहा है
- HI/Prabhupada 1041 - केवल लक्षणात्मक उपचार से तुम मनुष्य को स्वस्थ नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 1042 - मैं आपके मोरिशियस में देखता हूं, आपके पास अनाज के उत्पादन के लिए पर्याप्त भूमि है
- HI/Prabhupada 1043 - हम कोका कोला नहीं पीते हैं । हम पेप्सी कोला नहीं पीते हैं । हम धूम्रपान नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 1044 - मेरे बचपन में मैं दवाई नहीं लेता था
- HI/Prabhupada 1045 - मैं क्या कहूं ? हर बकवास व्यक्ति कुछ बकवास बात करेगा । मैं इसे कैसे रोक सकता हूं ?
- HI/Prabhupada 1046 - तय करो कि क्या एेसा शरीर पाना है जो कृष्ण के साथ नृत्य करने में, बात करने में सक्षम है
- HI/Prabhupada 1047 - उसने कुछ मिथ्या कर्तव्य को अपनाया है और उसके लिए कडी मेहनत कर रहा है, इसलिए वह एक गधा है
- HI/Prabhupada 1048 - तुम कभी सुखी नहीं रहोगे - पूर्ण शिक्षा - जब तक तुम भगवद धाम वापस नहीं जाते हो
- HI/Prabhupada 1049 - गुरु भगवान का विश्वसनीय सेवक । यही गुरु है
- HI/Prabhupada 1050 - 'तुम ऐसा करो और मुझे पैसे दो और तुम सुखी हो जाओगे' - वह गुरु नहीं है
- HI/Prabhupada 1051 - मैने गुरु के शब्दों को अपनाया, जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में
- HI/Prabhupada 1052 - माया के प्रभाव में अाकर हम सोच रहे हैं कि 'यह मेरी संपत्ति है'
- HI/Prabhupada 1053 - क्योंकि तुम्हे समाज को चलाना है, इसका मतलब यह नहीं कि तुम असली बात भूल जाअो
- HI/Prabhupada 1054 - वैज्ञानिक, तत्वज्ञानी, विद्वान - सभी नास्तिक
- HI/Prabhupada 1055 - देखो कि अपना कर्तव्य करते हुए अापने भगवान को प्रसन्न किया है या नहीं
- HI/Prabhupada 1056 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन आध्यात्मिक मंच पर है, शरीर, मन और बुद्धि से ऊपर
- HI/Prabhupada 1057 - भगवद्-गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, वैदिक ज्ञान का सार
- HI/Prabhupada 1058 - भगवद गीता के वक्ता भगवान श्री कृष्ण हैं
- HI/Prabhupada 1059 - प्रत्येक व्यक्ति का भगवान के साथ विशिष्ट संबंध है
- HI/Prabhupada 1060 - जब तक कोई भगवद गीता का पाठ विनम्र भाव से नहीं करता है...
- HI/Prabhupada 1061 - इस भगवद गीता की विषयवस्तु में पाँच मूल सत्यों का ज्ञान निहित है
- HI/Prabhupada 1062 - हमारी वृत्ति भौतिक प्रकृति को नियंत्रित करने की है
- HI/Prabhupada 1063 - हमें सभी प्रकार के कर्मफल से मुक्ति दो
- HI/Prabhupada 1064 - भगवान हरेक जीव के हृदय में वास करते हैं
- HI/Prabhupada 1065 - व्यक्ति को सर्वप्रथम यह जान लेना चाहिए कि वो यह शरीर नहीं है
- HI/Prabhupada 1066 - अल्पज्ञानी लोग परम सत्य को निराकार मानते हैं
- HI/Prabhupada 1067 - हमें भगवद गीता को किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी के बग़ैर, बिना घटाए स्वीकार करना है
- HI/Prabhupada 1068 - विभिन्न प्रकार के गुणों के अनुसार तीन प्रकार के कर्म हैं
- HI/Prabhupada 1069 - रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है - सनातन धर्म नहीं
- HI/Prabhupada 1070 - सेवा करना जीव का शाश्वत धर्म है
- HI/Prabhupada 1071 - अगर हम भगवान का संग करते हैं, उनका सहयोग करते हैं, तो हम सुखी बन जाते हैं
- HI/Prabhupada 1072 - भौतिक जगत को छोड़ना और नित्य धाम में अनन्दमय जीवन पाना
- HI/Prabhupada 1073 - जब तक हम भौतिक प्रकृति पर प्रभुत्व जताने की प्रवृत्ति को नहीं त्यागते
- HI/Prabhupada 1074 - इस संसार में जितने भी दुख का हम अनुभव करते हैं - ये सब शरीर से उत्पन्न है
- HI/Prabhupada 1075 - इस जीवन के कर्मो से हम अगले जीवन की तैयारी कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1076 - मृत्यु के समय हम या तो इस संसार में रह सकते हैं या आध्यात्मिक जगत जा सकते हैं
- HI/Prabhupada 1077 - भगवान पूर्ण हैं, उनके नाम और उनमे कोई अंतर नहीं है
- HI/Prabhupada 1078 - मन तथा बुद्धि को चौबीस घंटे भगवान के विचार में लीन करना
- HI/Prabhupada 1079 - भगवद गीता एक दिव्य साहित्य है जिसको हमें ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए
- HI/Prabhupada 1080 - भगवद गीता में संक्षेप रुप से बताया है - एक ईश्वर कृष्ण हैं, वे सांप्रदायिक ईश्वर नहीं हैं