HI/710807 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 23:12, 24 July 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कृष्ण का प्रत्यक्ष विस्तार और विस्तार का विस्तार होता है। कृष्ण की तरह, उनका तात्कालिक विस्तार बलदेव, बलराम है। फिर बलराम से अगला विस्तार चतुर विष्णु, चतुर्गुण: संकर्षण, वासुदेव, अनिरुद्ध, प्रद्युम्न। इस संकर्षण से फिर एक और विस्तार है, नारायण। नारायण से, एक और विस्तार है। फिर, संकर्षण, वासुदेव, अनिरुद्ध की दूसरी अवस्था... न केवल एक नारायण, बल्कि असंख्य नारायण। क्योंकि वैकुंठलोक में, आध्यात्मिक गगनमंडल, असंख्य ग्रह हैं। कितने? अब, बस यह कल्पना कीजिए कि इस ब्रह्मांड में ग्रह हैं। यह एक ब्रह्मांड है। लाखों ग्रह हैं। आप गिनती नहीं कर सकते। आप गिनती नहीं कर सकते। इसी तरह, असंख्य ब्रह्मांड भी हैं। यह भी आप गिन नहीं सकते। फिर भी इन सभी ब्रह्मांडों को एक साथ लिया जाये तो भी, कृष्ण के विस्तार का केवल एक-चौथाई हिस्सा है।" |
710807 - प्रवचन श्री.भा. ०१.०१.०१ - लंडन |