HI/Prabhupada 0223 - यह संस्था पूरे मानव समाज को शिक्षित करने के लिए होनी चाहिए: Difference between revisions

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प्रभुपाद: आपत्ति क्या है?
प्रभुपाद: आपत्ति क्या है?  


श्री राजदा: कोई आपत्ति नहीं हो सकती ।
श्री राजदा: कोई आपत्ति नहीं हो सकती ।  


प्रभुपाद: भगवद गीता स्वीकार किए जाता है, और जहाँ तक मैं जानता हूँ मोरारजी को जब गिरफ्तार किया जा रहा था उन्होंने कहा, "मैं भगवद गीता को पढ़ लूँ ।" मैंने अखबार में पढ़ा ।
प्रभुपाद: भगवद गीता स्वीकार की गई है, और जहाँ तक मैं जानता हूँ मोरारजी को जब गिरफ्तार किया जा रहा था, उन्होंने कहा, "मैं भगवद गीता को पढ़ लूँ ।" मैंने अखबार में पढ़ा ।  


श्री राजदा: हाँ, वे कह रहे थे ।
श्री राजदा: हाँ, वे कह रहे थे ।


प्रभुपाद: तो वह ... वे भगवद गीता के भक्त हैं, और कई दूसरों भी हैं । तो क्यों यह शिक्षा पूरी दुनिया को नहीं दिया जाना चाहिए?
प्रभुपाद: तो वह ... वे भगवद गीता के भक्त हैं, और कई दूसरे लोग भी हैं । तो क्यों यह शिक्षा पूरी दुनिया को नहीं दी जानी चाहिए?  


श्री राजदा: अब, मैंने देखा है, आम तौर पर वे ३।३० बजे उठ जाते हैं, अपनी सभी धार्मिक बातें की पहले करते हैं, भगवद गीता का पढना और यह सब । और वह दो, तीन घंटे के लिए चलता है । फिर, सात पर, वे अपने कमरे से बाहर आते हैं नहाने के बाद । फिर वह (अस्पष्ट) मिलते हैं ।
श्री राजदा: अब, मैंने देखा है, आम तौर पर वे ३.३० बजे उठ जाते हैं, अपनी सभी धार्मिक बातें पहले करते हैं, भगवद गीता का पढना और यह सब । और वह दो, तीन घंटे के लिए चलता है । फिर, सात पर, वे अपने कमरे से बाहर आते हैं नहाने के बाद । फिर वह (अस्पष्ट) मिलते हैं ।  


प्रभुपाद: और यह विदेशी लड़के, वे ३।३० से ९।३० तक अपने, इस भगवद गीता का अभ्यास शुरू करते हैं । उन्हें कोई अन्य व्यवसाय नहीं है । आप देखो । आपने अध्ययन किया है, हमारे गिरिराज का । वह पूरा दिन कर रहा है । वे सभी इस पर कर रहे हैं । सुबह ३।३० से जब तक वे थक नहीं जाते हैं ९।३०, केवल भगवद गीता ।
प्रभुपाद: और यह विदेशी लड़के, वे ३.३० से ९.३० तक अपने, इस भगवद गीता का अभ्यास शुरू करते हैं । उन्हें कोई अन्य व्यवसाय नहीं है । आप देखो । आपने अध्ययन किया है, हमारे गिरिराज का । वह पूरा दिन कर रहा है । वे सभी इस पर कर रहे हैं । सुबह ३.३० से जब तक वे थक नहीं जाते हैं ९.३०, केवल भगवद गीता ।  


श्री राजदा: कमाल है ।
श्री राजदा: कमाल है ।  


प्रभुपाद: और हमारे पास इतनी सारी सामग्री है । अगर हम इस एक पंक्ति पर चर्चा करते हैं, तथा देहान्तर प्राप्ति: ([[Vanisource:BG 2.13|भगी २।१३]]), तो इसे समझने के लिए कई दिन लगते हैं ।
प्रभुपाद: और हमारे पास इतनी सारी सामग्री है । अगर हम इस एक पंक्ति पर चर्चा करते हैं, तथा देहान्तर प्राप्ति: ([[HI/BG 2.13|भ.गी २.१३]]) , तो इसे समझने के लिए कई दिन लगते हैं ।  


श्री राजदा: ज़रूर ।
श्री राजदा: ज़रूर ।  


प्रभुपाद: अब, अगर यह तथ्य है, तथा देहान्तर प्राप्ति: और न हन्यते हन्यमाने शरीरे ([[Vanisource:BG 2.20|भगी २।२०]]) हम उसके लिए क्या कर रहे हैं? यह है भगवद गीता । न जायते न मृयते वा कदाचिन न हन्यते हन्यमाने शरीरे ([[Vanisource:BG 2.20|भगी २।२०]]) तो जब मेरा शरीर नष्ट हो जाता है, मैं जा रहा हूँ ... (तोड़) ... व्यक्तिगत रूप से दरवाजे से दरवाजे जा रहे हैं, पुस्तकों की बिक्री और पैसा भेजते हैं । हम हमारे मिशन को इस तरीके से अागे बढा रहे हैं । मुझे कोई मदद नहीं मिल रही है जनता से, न तो सरकार से । और रिकार्ड है ये बैंक ऑफ अमेरिका में कि मैं कितनी विदेशी मुद्रा ला रहा हूँ । यहां तक ​​कि इस कमजोर स्वास्थ्य में भी, मैं कम से कम रात में चार घंटे काम कर रहा हूँ । और वे भी मुझे मदद कर रहे हैं । तो यह हमारा व्यक्तिगत प्रयास है । यहाँ क्यों नहीं आते? अगर तुम वास्तव में बहुत गंभीर छात्र हो भगवद गीता के, तो तुम क्यों नहीं अाते, सहयोग करते हो ? और हराव अणक्तस्य कुतो महद-गुणा मनोरथेनासति धावतो ([[Vanisource:SB 5.18.12|श्रीभ ५।१८।१२]]) तुम केवल कानून द्वारा सार्वजनिक जनता को ईमानदार नहीं कर सकते हो । यह संभव नहीं है । भूल जाइए । यह संभव नहीं है । हराव अभक्तस कुतो.... यस्तास्ति भक्तिर भगवति अकिंचना सरवै: अगर तुम, अगर कोई भगवान का भक्त बन जाता है, तो सभी अच्छे गुण उसमे होंगे । और हराव अभक्तस्य कुतो महद ... अगर वह एक भक्त नहीं है ... अब इतनी सारी चीजें, निंदा, बड़े, बड़े नेताओं की हो रही है । आज का अखबार मैंने देखा है । "यह आदमी, वह आदमी, ठुकराया गया है ।" क्यों? हराव अभक्तस्य कुतो । एक बड़ा नेता बनने का लाभ क्या है अगर वह एक भक्त न बन सका ? (हिन्दी) तुम बहुत बुद्धिमान युवा हो, और इसलिए मैं आपको कुछ सुझाव देने की कोशिश कर रहा हूँ, और अगर तुम इन विचारों को कुछ आकार दे सकते हो ... यह पहले से ही है । यह कोई रहस्य नहीं है । केवल हमें गंभीर होना चाहिए, कि यह संस्था पूरे मानव समाज को शिक्षित करने के लिए होनी चाहिए । कोई बात नहीं, एक बहुत छोटी संख्या है । कोई बात नहीं है । लेकिन आदर्श होना चाहिए ।
प्रभुपाद: अब, अगर यह तथ्य है, तथा देहान्तर प्राप्ति: और न हन्यते हन्यमाने शरीरे ([[HI/BG 2.20|भ.गी. २.२०]]), हम उसके लिए क्या कर रहे हैं? यह है भगवद गीता । न जायते न मृयते वा कदाचिन न हन्यते हन्यमाने शरीरे ([[HI/BG 2.20|भ.गी. २.२०]]) | तो जब मेरा शरीर नष्ट हो जाता है, मैं जा रहा हूँ ... (तोड़) ... व्यक्तिगत रूप से दरवाजे से दरवाजे जा रहे हैं, पुस्तकों को बेचते हुए, और पैसा भेजते हैं । हम हमारे मिशन को इस तरीके से अागे बढा रहे हैं । मुझे कोई मदद नहीं मिल रही है जनता से, न तो सरकार से । और रिकार्ड है ये बैंक ऑफ अमेरिका में कि मैं कितनी विदेशी मुद्रा ला रहा हूँ । यहां तक ​​कि इस कमजोर स्वास्थ्य में भी, मैं कम से कम रात में चार घंटे काम कर रहा हूँ । और वे भी मुझे मदद कर रहे हैं ।  
 
तो यह हमारा व्यक्तिगत प्रयास है । यहाँ क्यों नहीं आते? अगर तुम वास्तव में बहुत गंभीर छात्र हो भगवद गीता के, तो तुम क्यों नहीं अाते, सहयोग करते हो ? और हराव अभक्तस्य कुतो महद-गुणा मनोरथेनासति धावतो ([[Vanisource:SB 5.18.12|श्रीमद भागवतम ५.१८.१२]]) | तुम केवल कानून द्वारा सार्वजनिक जनता को ईमानदार नहीं कर सकते हो । यह संभव नहीं है । भूल जाइए । यह संभव नहीं है । हराव अभक्तस्य कुतो.... यस्तास्ति भक्तिर भगवति अकिंचना सर्वै:... अगर तुम, अगर कोई भगवान का भक्त बन जाता है, तो सभी अच्छे गुण उसमे होंगे । और हराव अभक्तस्य कुतो महद ... अगर वह एक भक्त नहीं है ... अब इतनी सारी चीजें, निंदा, बड़े, बड़े नेताओं की हो रही है । आज का अखबार मैंने देखा है । "यह आदमी, वह आदमी, ठुकराया गया है ।" क्यों? हराव अभक्तस्य कुतो ।  
 
एक बड़ा नेता बनने का लाभ क्या है अगर वह एक भक्त न बन सका ? (हिन्दी) तुम बहुत बुद्धिमान युवा हो, और इसलिए मैं आपको कुछ सुझाव देने की कोशिश कर रहा हूँ, और अगर तुम इन विचारों को कुछ आकार दे सकते हो ... यह पहले से ही है । यह कोई रहस्य नहीं है । केवल हमें गंभीर होना चाहिए, कि यह संस्था पूरे मानव समाज को शिक्षित करने के लिए होनी चाहिए । कोई बात नहीं, एक बहुत छोटी संख्या भी । कोई बात नहीं । लेकिन आदर्श होना चाहिए ।  
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Latest revision as of 18:20, 17 September 2020



Room Conversation with Ratan Singh Rajda M.P. "Nationalism and Cheating" -- April 15, 1977, Bombay

प्रभुपाद: आपत्ति क्या है?

श्री राजदा: कोई आपत्ति नहीं हो सकती ।

प्रभुपाद: भगवद गीता स्वीकार की गई है, और जहाँ तक मैं जानता हूँ मोरारजी को जब गिरफ्तार किया जा रहा था, उन्होंने कहा, "मैं भगवद गीता को पढ़ लूँ ।" मैंने अखबार में पढ़ा ।

श्री राजदा: हाँ, वे कह रहे थे ।

प्रभुपाद: तो वह ... वे भगवद गीता के भक्त हैं, और कई दूसरे लोग भी हैं । तो क्यों यह शिक्षा पूरी दुनिया को नहीं दी जानी चाहिए?

श्री राजदा: अब, मैंने देखा है, आम तौर पर वे ३.३० बजे उठ जाते हैं, अपनी सभी धार्मिक बातें पहले करते हैं, भगवद गीता का पढना और यह सब । और वह दो, तीन घंटे के लिए चलता है । फिर, सात पर, वे अपने कमरे से बाहर आते हैं नहाने के बाद । फिर वह (अस्पष्ट) मिलते हैं ।

प्रभुपाद: और यह विदेशी लड़के, वे ३.३० से ९.३० तक अपने, इस भगवद गीता का अभ्यास शुरू करते हैं । उन्हें कोई अन्य व्यवसाय नहीं है । आप देखो । आपने अध्ययन किया है, हमारे गिरिराज का । वह पूरा दिन कर रहा है । वे सभी इस पर कर रहे हैं । सुबह ३.३० से जब तक वे थक नहीं जाते हैं ९.३०, केवल भगवद गीता ।

श्री राजदा: कमाल है ।

प्रभुपाद: और हमारे पास इतनी सारी सामग्री है । अगर हम इस एक पंक्ति पर चर्चा करते हैं, तथा देहान्तर प्राप्ति: (भ.गी २.१३) , तो इसे समझने के लिए कई दिन लगते हैं ।

श्री राजदा: ज़रूर ।

प्रभुपाद: अब, अगर यह तथ्य है, तथा देहान्तर प्राप्ति: और न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २.२०), हम उसके लिए क्या कर रहे हैं? यह है भगवद गीता । न जायते न मृयते वा कदाचिन न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २.२०) | तो जब मेरा शरीर नष्ट हो जाता है, मैं जा रहा हूँ ... (तोड़) ... व्यक्तिगत रूप से दरवाजे से दरवाजे जा रहे हैं, पुस्तकों को बेचते हुए, और पैसा भेजते हैं । हम हमारे मिशन को इस तरीके से अागे बढा रहे हैं । मुझे कोई मदद नहीं मिल रही है जनता से, न तो सरकार से । और रिकार्ड है ये बैंक ऑफ अमेरिका में कि मैं कितनी विदेशी मुद्रा ला रहा हूँ । यहां तक ​​कि इस कमजोर स्वास्थ्य में भी, मैं कम से कम रात में चार घंटे काम कर रहा हूँ । और वे भी मुझे मदद कर रहे हैं ।

तो यह हमारा व्यक्तिगत प्रयास है । यहाँ क्यों नहीं आते? अगर तुम वास्तव में बहुत गंभीर छात्र हो भगवद गीता के, तो तुम क्यों नहीं अाते, सहयोग करते हो ? और हराव अभक्तस्य कुतो महद-गुणा मनोरथेनासति धावतो (श्रीमद भागवतम ५.१८.१२) | तुम केवल कानून द्वारा सार्वजनिक जनता को ईमानदार नहीं कर सकते हो । यह संभव नहीं है । भूल जाइए । यह संभव नहीं है । हराव अभक्तस्य कुतो.... यस्तास्ति भक्तिर भगवति अकिंचना सर्वै:... अगर तुम, अगर कोई भगवान का भक्त बन जाता है, तो सभी अच्छे गुण उसमे होंगे । और हराव अभक्तस्य कुतो महद ... अगर वह एक भक्त नहीं है ... अब इतनी सारी चीजें, निंदा, बड़े, बड़े नेताओं की हो रही है । आज का अखबार मैंने देखा है । "यह आदमी, वह आदमी, ठुकराया गया है ।" क्यों? हराव अभक्तस्य कुतो ।

एक बड़ा नेता बनने का लाभ क्या है अगर वह एक भक्त न बन सका ? (हिन्दी) तुम बहुत बुद्धिमान युवा हो, और इसलिए मैं आपको कुछ सुझाव देने की कोशिश कर रहा हूँ, और अगर तुम इन विचारों को कुछ आकार दे सकते हो ... यह पहले से ही है । यह कोई रहस्य नहीं है । केवल हमें गंभीर होना चाहिए, कि यह संस्था पूरे मानव समाज को शिक्षित करने के लिए होनी चाहिए । कोई बात नहीं, एक बहुत छोटी संख्या भी । कोई बात नहीं । लेकिन आदर्श होना चाहिए ।