HI/680716 बातचीत - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680716R1-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|"कृष्ण कहते हैं स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य। तुम सिर्फ अपने आधिपत्य के परिणाम से सर्वोच्च भगवान की पूजा करने की कोशिश करो। क्योंकि कृष्ण सभी कुछ स्वीकार करते है। इसलिए यदि आप कुम्हार हैं, तो आप बर्तन प्रदान करें। यदि आप फूल वाले हैं, तो आप फूल प्रदान करें। यदि आप सुतार है, तोह आप मंदिर के लिए काम करें। यदि आप धोभी हैं, तो मंदिर के कपड़े धो लें। मंदिर केंद्र है, कृष्ण केंद्र है। और सभी को अपनी सेवा देने का मौका मिलता है। इसलिए मंदिर की पूजा बहुत अच्छी होती है। इसलिए इस मंदिर में इस तरह से आयोजन किया जाना चाहिए कि हमें किसी भी पैसे की आवश्यकता नहीं है। आप अपनी सेवा देते रहे। बस इतना ही। आप अपनी सेवा में लगे रहें। अपनी सेवा को न बदलें। आपके व्यावसायिक कर्तव्य से, आप मंदिर की सेवा जिसका अर्थ है सर्वोच्च भगवान की सेवा करने का प्रयास करते रहे।"|Vanisource:680716 - Conversation - Montreal|680716 - बातचीत - मॉन्ट्रियल}}
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Latest revision as of 16:11, 7 June 2019

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
कृष्ण कहते हैं स्वकर्मणा तम अभ्यर्च्य । तुम सिर्फ अपने कार्यक्षेत्र के परिणाम से परम भगवान् की पूजा करने की कोशिश करो । क्योंकि कृष्ण सभी कुछ स्वीकार करते है । इसलिए यदि आप कुम्हार हैं, तो आप बर्तन प्रदान करें । यदि आप फूल वाले हैं, तो आप फूल प्रदान करें । यदि आप सुतार है, तोह आप मंदिर के लिए काम करें । यदि आप धोबी हैं, तो मंदिर के कपड़े धोए । मंदिर केंद्र है, कृष्ण केंद्र है । और सभी को अपनी सेवा देने का मौका मिलता है । इसलिए मंदिर की पूजा बहुत अच्छी है । इसलिए इस मंदिर में इस तरह से आयोजन किया जाना चाहिए कि हमें किसी भी धन की आवश्यकता न हो । आप अपनी सेवा देते रहे । बस इतना ही । आप अपनी सेवा में लगे रहें । अपनी सेवा को न बदलें । आपके व्यावसायिक कर्तव्य से, आप मंदिर की सेवा करने का प्रयास करते रहे, जिसका अर्थ है परम भगवान् की सेवा ।
680716 - बातचीत - मॉन्ट्रियल