HI/Prabhupada 1056 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन आध्यात्मिक मंच पर है, शरीर, मन और बुद्धि से ऊपर: Difference between revisions

 
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प्रभुपाद: अभी भी भारत में, अगर किसी के पास बहुत अच्छा उद्यान और फूल है, अगर कोई जाता है "सर, मैं भगवान की पूजा के लिए अापके बगीचे से कुछ फूल लेना चाहता हूँ," "हाँ, आप ले सकते हैं ।" वे बहुत खुश हो जाऍगे ।
प्रभुपाद: अभी भी भारत में, अगर किसी के पास बहुत अच्छा उद्यान और फूल है, अगर कोई जाता है, "श्रीमान, मैं भगवान की पूजा के लिए अापके बगीचे से कुछ फूल लेना चाहता हूँ," "हाँ, आप ले सकते हैं ।" वे बहुत खुश हो जाऍगे ।  


रेमंड लोपेज: यह आदमी, उसकी आजीविका उन फूलों पर निर्भर करती था, और मुझे नहीं ... मुझे लगता है कि उसकी संपत्ति उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, दुर्भाग्य से ।
रेमंड लोपेज: यह आदमी, उसकी आजीविका उन फूलों पर निर्भर करती था, और मुझे नहीं... मुझे लगता है कि उसकी संपत्ति उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, दुर्भाग्य से ।  


वैली स्ट्रोब्स : यह एक हास्यजनक कहानी है । इसके अागे भी एक हास्यजनक कहानी है और वह यह है कि फूल लिए गए नर्सरी से जो दो पुरुष चलाते हैं । और हमें अंत में एक अपील के माध्यम से उन्हे घर लाना पडा । लेकिन अपील के अाने से पहले लड़कों को ग्लास घर की जरूरत थी क्योंकि उनके विशेष पौधों थे, जो बाहर हैं अभी ।
वैली स्ट्रोब्स: यह एक हास्यजनक कहानी है । इसके अागे भी एक हास्यजनक कहानी है, और वह यह है कि फूल लिए गए नर्सरी से जो दो पुरुष चलाते हैं । और हमें अंत में एक अपील के माध्यम से उन्हे घर लाना पडा । लेकिन अपील के अाने से पहले, लड़कों को काच के घर की जरूरत थी क्योंकि उनके विशेष पौधे थे, जो बाहर हैं अभी ।  


श्रुतकीर्ति: तुलसी ।
श्रुतकीर्ति: तुलसी ।  


वैली स्ट्रोब्स: और उन्हे ग्लास घर के बारे में कुछ भी पता नहीं था । तो वे घूम रहे थे अौर एक ने कहा, " चलो पता लगाते हैं ग्लास घर के बारे में । ओह, यहॉ एक अच्छी नर्सरी है । "(हंसी) तो गाडी अाती है । भक्त बाहर आता है, और उसने कहा, " माफ कीजिए श्रीमान, लेकिन हम ग्लास घर में रुचि रखते हैं ।" उसने कहा, "क्या आप मेरे नर्सरी से बाहर निकलेंगे ? वही नर्सरी । (हंसी) आसपास के क्षेत्र में दो सौ नर्सरी थी । उसने उसी नर्सरी को चुना ।
वैली स्ट्रोब्स: और उन्हे काच के घर के बारे में कुछ भी पता नहीं था । तो वे घूम रहे थे अौर एक ने कहा, "चलो पता लगाते हैं काच के घर के बारे में । ओह, यहॉ एक अच्छी नर्सरी है ।" (हंसी) तो गाडी अाती है । भक्त बाहर आता है, और उसने कहा, "माफ कीजिए श्रीमान, लेकिन हम काच के घर में रुचि रखते हैं ।" उसने कहा, "क्या आप मेरी नर्सरी से बाहर निकलेंगे ? वही नर्सरी । (हंसी) आसपास के क्षेत्र में दो सौ नर्सरी थी । उसने उसी नर्सरी को चुना ।  


प्रभुपाद: लेकिन अगर लोग भगवान भावित होते, वे माफ़ कर देते, "ओह, वे भगवान की सेवा के लिए आए हैं । ठीक है, आप ले सकते हैं ।" इसलिए पहला काम है लोगों को भगवान भावनाभावित करना । तब सब कुछ ठीक हो जाएगा । यस्यास्ति भक्ति:... भागवतम में एक श्लोक है:
प्रभुपाद: लेकिन अगर लोग भगवद भावना भावित होते, वे माफ़ कर देते, "ओह, वे भगवान की सेवा के लिए आए हैं । ठीक है, आप ले सकते हैं ।" इसलिए पहला काम है लोगों को भगवद भावनाभावित करना । फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा । यस्यास्ति भक्ति:... भागवतम में एक श्लोक है:  


:यस्यास्ति भक्तिर् भगवति अकिंचना
:यस्यास्ति भक्तिर भगवति अकिंचना  
:सर्वैर गुणैस तत्र समासते सुरा:
:सर्वैर गुणैस तत्र समासते सुरा:  
:हराव अभक्तस्य कुतो महद गुणा
:हराव अभक्तस्य कुतो महद गुणा  
:मनोरथेनासति धावतो बहि:
:मनोरथेनासति धावतो बहि:  
:([[Vanisource:SB 5.18.12|श्री भ ५।८।१२]])
:([[Vanisource:SB 5.18.12|श्रीमद भागवतम ५.८.१२]]) |


अर्थ यह है कि "जो भगवन भावनाभावित है, भक्त, उसमें सभी अच्छे गुण हैं ।" जिन्हे हम अच्छे गुण मानते हैं , उसमे हैं । और इसी तरह, जो भगवान का भक्त नहीं है, उसमे कोई अच्छा गुण नहीं हैं क्योंकि वह मानसिक मंच पर रहेगा । अलग मंच हैं । जीवन की शारीरिक अवधारणा, सामान्य, "मैं यह शरीर हूँ । इसलिए मेरा काम है इंद्रियों को संतुष्ट करना ।" यह जीवन की शारीरिक अवधारणा है । और दूसरे, वे सोच रहे हैं "मैं यह शरीर नहीं हूं । मैं मन हूँ ।" तो वे मानसिक अटकलों पर जा रहे हैं, दार्शनिक, विचारशील पुरुष । और उस के ऊपर, पुरुषों का बुद्धिमान वर्ग, किसी योग का अभ्यास करते हुए । और आध्यात्मिक मंच का अर्थ है उसके भी ऊपर । सबसे पहले शारीरिक अवधारणा, स्थूल, फिर मानसिक, फिर ज्ञान, फिर आध्यात्मिक । तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन, आध्यात्मिक मंच पर है, शरीर, मन और बुद्धि से ऊपर । वास्तव में, हमें उस मंच पर अाना होगा, क्योंकि हम अात्मा हैं न तो हम यह शरीर हैं और न ही यह मन हैं और न ही यह बुद्ध हैं । तो जो आध्यात्मिक चेतना के मंच पर है, उनके पास सब कुछ है - बुद्धि, मन का समुचित उपयोग, शरीर का समुचित उपयोग । जैसे एक करोड़पति की तरह, उसके पास कम ग्रेड की चीज़ें हैं । दस रुपये या सौ रुपए या सौ पौंड-उसके पास सब कुछ है । इसी तरह, अगर हम लोगों को भगवान भावनामरत के मंच पर लाने का प्रयास करते हैं, तो उसमे अन्य सभी गुण होते हैं: शरीर की देखभाल कैसे करनी है, दिमाग का उपयोग कैसे करना है, कैसे बुद्धि का उपयोग करना है, सब कुछ । लेकिन यह संभव नहीं है कि हर कोई भगवान भावनाभावित हो जाए । यह संभव नहीं है क्योंकि विभिन्न ग्रेड होते हैं । लेकिन कम से कम पुरुषों के एक वर्ग को आदर्श बनना चाहिए, भगवान भावनाभावित । जैसे हमारे सामान्य जीवन में हमें वकीलों की आवश्यकता होती है, , हमें इंजीनियर की आवश्यकता होती है, हमें चिकित्सक की आवश्यकता होती है, कई सारे लोग । इसी तरह, समाज में पुरुषों का एक वर्ग होना ही चाहिए जो पूरी तरह से भगवान भावनाभावित है अौर अादर्श है यह आवश्यक है ।
अर्थ यह है कि "जो भगवद भावनाभावित है, भक्त, उसमें सभी अच्छे गुण हैं ।" जिन्हे हम अच्छे गुण मानते हैं, उसमे हैं । और इसी तरह, जो भगवान का भक्त नहीं है, उसमे कोई अच्छा गुण नहीं हैं, क्योंकि वह मानसिक मंच पर रहेगा । अलग अलग मंच होते हैं । जीवन की शारीरिक अवधारणा, सामान्य, "मैं यह शरीर हूँ । इसलिए मेरा काम है इंद्रियों को संतुष्ट करना ।" यह जीवन की शारीरिक अवधारणा है । और दूसरे, वे सोच रहे हैं "मैं यह शरीर नहीं हूं । मैं मन हूँ ।" तो वे मानसिक अटकलों पर जा रहे हैं, तत्वज्ञानी, विचारशील पुरुष । और उस के ऊपर, पुरुषों का बुद्धिमान वर्ग, किसी योग का अभ्यास करते हुए । और आध्यात्मिक मंच का अर्थ है उसके भी ऊपर । सबसे पहले शारीरिक अवधारणा, स्थूल, फिर मानसिक, फिर ज्ञान, फिर आध्यात्मिक ।  
 
तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन, आध्यात्मिक मंच पर है, शरीर, मन और बुद्धि से ऊपर । वास्तव में, हमें उस मंच पर अाना होगा, क्योंकि हम अात्मा हैं, न तो हम यह शरीर हैं और न ही यह मन हैं और न ही यह बुद्धि हैं । तो जो आध्यात्मिक चेतना के मंच पर है, उनके पास सब कुछ है - बुद्धि, मन का समुचित उपयोग, शरीर का समुचित उपयोग । जैसे एक करोड़पति की तरह, उसके पास कम स्तर की चीज़ें हैं । दस रुपये या सौ रुपए या सौ पौंड - उसके पास सब कुछ है ।  
 
इसी तरह, अगर हम लोगों को भगवद भावनामृत के मंच पर लाने का प्रयास करते हैं, तो उसमे अन्य सभी गुण होते हैं: शरीर की देखभाल कैसे करनी है, दिमाग का उपयोग कैसे करना है, कैसे बुद्धि का उपयोग करना है, सब कुछ । लेकिन यह संभव नहीं है कि हर कोई भगवद भावनाभावित हो जाए । यह संभव नहीं है क्योंकि विभिन्न श्रेणिआ होती हैं । लेकिन कम से कम पुरुषों के एक वर्ग को आदर्श बनना चाहिए, भगवद भावनाभावित । जैसे हमारे सामान्य जीवन में हमें वकीलों की आवश्यकता होती है, हमें इंजीनियर की आवश्यकता होती है, हमें चिकित्सक की आवश्यकता होती है, कई सारे लोग । इसी तरह, समाज में पुरुषों का एक वर्ग होना ही चाहिए जो पूरी तरह से भगवद भावनाभावित है अौर अादर्श है | यह आवश्यक है ।  
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Latest revision as of 17:35, 31 October 2018



750522 - Conversation B - Melbourne

प्रभुपाद: अभी भी भारत में, अगर किसी के पास बहुत अच्छा उद्यान और फूल है, अगर कोई जाता है, "श्रीमान, मैं भगवान की पूजा के लिए अापके बगीचे से कुछ फूल लेना चाहता हूँ," "हाँ, आप ले सकते हैं ।" वे बहुत खुश हो जाऍगे ।

रेमंड लोपेज: यह आदमी, उसकी आजीविका उन फूलों पर निर्भर करती था, और मुझे नहीं... मुझे लगता है कि उसकी संपत्ति उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, दुर्भाग्य से ।

वैली स्ट्रोब्स: यह एक हास्यजनक कहानी है । इसके अागे भी एक हास्यजनक कहानी है, और वह यह है कि फूल लिए गए नर्सरी से जो दो पुरुष चलाते हैं । और हमें अंत में एक अपील के माध्यम से उन्हे घर लाना पडा । लेकिन अपील के अाने से पहले, लड़कों को काच के घर की जरूरत थी क्योंकि उनके विशेष पौधे थे, जो बाहर हैं अभी ।

श्रुतकीर्ति: तुलसी ।

वैली स्ट्रोब्स: और उन्हे काच के घर के बारे में कुछ भी पता नहीं था । तो वे घूम रहे थे अौर एक ने कहा, "चलो पता लगाते हैं काच के घर के बारे में । ओह, यहॉ एक अच्छी नर्सरी है ।" (हंसी) तो गाडी अाती है । भक्त बाहर आता है, और उसने कहा, "माफ कीजिए श्रीमान, लेकिन हम काच के घर में रुचि रखते हैं ।" उसने कहा, "क्या आप मेरी नर्सरी से बाहर निकलेंगे ? वही नर्सरी । (हंसी) आसपास के क्षेत्र में दो सौ नर्सरी थी । उसने उसी नर्सरी को चुना ।

प्रभुपाद: लेकिन अगर लोग भगवद भावना भावित होते, वे माफ़ कर देते, "ओह, वे भगवान की सेवा के लिए आए हैं । ठीक है, आप ले सकते हैं ।" इसलिए पहला काम है लोगों को भगवद भावनाभावित करना । फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा । यस्यास्ति भक्ति:... भागवतम में एक श्लोक है:

यस्यास्ति भक्तिर भगवति अकिंचना
सर्वैर गुणैस तत्र समासते सुरा:
हराव अभक्तस्य कुतो महद गुणा
मनोरथेनासति धावतो बहि:
(श्रीमद भागवतम ५.८.१२) |

अर्थ यह है कि "जो भगवद भावनाभावित है, भक्त, उसमें सभी अच्छे गुण हैं ।" जिन्हे हम अच्छे गुण मानते हैं, उसमे हैं । और इसी तरह, जो भगवान का भक्त नहीं है, उसमे कोई अच्छा गुण नहीं हैं, क्योंकि वह मानसिक मंच पर रहेगा । अलग अलग मंच होते हैं । जीवन की शारीरिक अवधारणा, सामान्य, "मैं यह शरीर हूँ । इसलिए मेरा काम है इंद्रियों को संतुष्ट करना ।" यह जीवन की शारीरिक अवधारणा है । और दूसरे, वे सोच रहे हैं "मैं यह शरीर नहीं हूं । मैं मन हूँ ।" तो वे मानसिक अटकलों पर जा रहे हैं, तत्वज्ञानी, विचारशील पुरुष । और उस के ऊपर, पुरुषों का बुद्धिमान वर्ग, किसी योग का अभ्यास करते हुए । और आध्यात्मिक मंच का अर्थ है उसके भी ऊपर । सबसे पहले शारीरिक अवधारणा, स्थूल, फिर मानसिक, फिर ज्ञान, फिर आध्यात्मिक ।

तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन, आध्यात्मिक मंच पर है, शरीर, मन और बुद्धि से ऊपर । वास्तव में, हमें उस मंच पर अाना होगा, क्योंकि हम अात्मा हैं, न तो हम यह शरीर हैं और न ही यह मन हैं और न ही यह बुद्धि हैं । तो जो आध्यात्मिक चेतना के मंच पर है, उनके पास सब कुछ है - बुद्धि, मन का समुचित उपयोग, शरीर का समुचित उपयोग । जैसे एक करोड़पति की तरह, उसके पास कम स्तर की चीज़ें हैं । दस रुपये या सौ रुपए या सौ पौंड - उसके पास सब कुछ है ।

इसी तरह, अगर हम लोगों को भगवद भावनामृत के मंच पर लाने का प्रयास करते हैं, तो उसमे अन्य सभी गुण होते हैं: शरीर की देखभाल कैसे करनी है, दिमाग का उपयोग कैसे करना है, कैसे बुद्धि का उपयोग करना है, सब कुछ । लेकिन यह संभव नहीं है कि हर कोई भगवद भावनाभावित हो जाए । यह संभव नहीं है क्योंकि विभिन्न श्रेणिआ होती हैं । लेकिन कम से कम पुरुषों के एक वर्ग को आदर्श बनना चाहिए, भगवद भावनाभावित । जैसे हमारे सामान्य जीवन में हमें वकीलों की आवश्यकता होती है, हमें इंजीनियर की आवश्यकता होती है, हमें चिकित्सक की आवश्यकता होती है, कई सारे लोग । इसी तरह, समाज में पुरुषों का एक वर्ग होना ही चाहिए जो पूरी तरह से भगवद भावनाभावित है अौर अादर्श है | यह आवश्यक है ।