HI/Prabhupada 1031 - प्रत्येक जीव, वे भौतिक अावरण से ढके हैं: Difference between revisions

 
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तो भगवान, या रपम सत्य, निरपेक्ष सत्य, वह है जो सब का स्रोत है । तो यह श्रीमद-भागवतम की शुरुआत है । जन्मादस्य यत: "निरपेक्ष सत्य वह है जो सब का स्रोत है ।" अब, इस निरपेक्ष सत्य की प्रकृति क्या है ? "सर्व" का अर्थ है...। दो बाते हैं : पदार्थ अौर अात्मा । दो बातें । जैसे यह मेज़ द्रव्य पदार्थ है अौर हम जीव, हम अात्मा हैं, अात्मा । यह भौतिक शरीर केवल मेरा अावरण है, वस्त्र की तरह । हम में से हर एक वस्त्र पहनता है, ढका है किसी वस्त्र के द्वारा । इसी तरह, सभी जीव, वे भौतिक अावरण से ढके हैं । स्थूल वस्त्र या कोट और सूक्ष्म वस्त्र । स्थूल वस्त्र पाँच भौतिक तत्वों से बना है : पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, और सूक्ष्म वस्त्र बना है मन, बुद्धि और अहंकार से ।
तो भगवान, या परम सत्य, निरपेक्ष सत्य, वह है जो सब का स्रोत है । तो यह श्रीमद-भागवतम की शुरुआत है । जन्मादि अस्य यत: "निरपेक्ष सत्य वह है जो सब का स्रोत है ।" अब, इस निरपेक्ष सत्य की प्रकृति क्या है ? "सर्व" का अर्थ है...। दो बाते हैं: पदार्थ अौर अात्मा । दो चीज़े । जैसे यह मेज़ पदार्थ है अौर हम जीव, हम अात्मा हैं, अात्मा । यह भौतिक शरीर केवल मेरा अावरण है, वस्त्र की तरह । हम में से हर एक वस्त्र पहनता है, ढका है किसी वस्त्र के द्वारा । इसी तरह, सभी जीव, वे भौतिक अावरण से ढके हैं । स्थूल वस्त्र या कोट और सूक्ष्म वस्त्र । स्थूल वस्त्र पाँच भौतिक तत्वों से बना है: पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, और सूक्ष्म वस्त्र बना है मन, बुद्धि और अहंकार से ।  


तो हम, अात्मा, भगवान का अंशस्वरूप । वर्तमान समय में हम दो प्रकार के वस्त्रों द्वारा ढके हैं - सूक्ष्म वस्त्र: मन, बुद्धि और अहंकार; और स्थूल वस्त्र । सूक्ष्म का अर्थ है हमें पता है कि वह चीज़ है लेकिन हम उसे देख नहीं सकते हैं । जैसे कि तुम्हें पता है कि मेरा मन है; मुझे पता है कि तुम्हारा मन है, लेकिन मैं तुम्हारे मन को नहीं दिख सकता, तुम मेरे मन को नहीं देख सकते हो । मुझे पता है कि तुम्हारे पास बुद्धि है, तुम्हे पता है कि मेरे पास बुद्धि है, लेकिन हम देख नहीं सकते हैं कि वह बुद्धि क्या है । इसी तरह, पहचान । मैं इस चेतना में हूँ ... वह भी तुम्हारी चेतना है, मेरी चेतना है, लेकिन हम नहीं देख सकते हैं । तो जो बातें भौतिक आंखों को दिखाई नहीं देती हैं, उसे सूक्ष्म कहा जाता है । और आत्मा अौर भी सूक्ष्म है । तो मानव जीवन है उस आत्मा को समझना परमात्मा के रूप में ।
तो हम, अात्मा, भगवान के अंशस्वरूप । वर्तमान समय में हम दो प्रकार के वस्त्रों द्वारा ढके हैं - सूक्ष्म वस्त्र: मन, बुद्धि और अहंकार; और स्थूल वस्त्र । सूक्ष्म का अर्थ है हमें पता है की वह चीज़ है लेकिन हम उसे देख नहीं सकते हैं । जैसे कि तुम्हें पता है कि मेरा मन है; मुझे पता है कि तुम्हारा मन है, लेकिन मैं तुम्हारे मन को नहीं देख सकता, तुम मेरे मन को नहीं देख सकते । मुझे पता है कि तुम्हारे पास बुद्धि है, तुम्हे पता है कि मेरे पास बुद्धि है, लेकिन हम देख नहीं सकते हैं कि वह बुद्धि क्या है । इसी तरह, पहचान । मैं इस चेतना में हूँ... की तुम्हारी भी चेतना है, मेरी भी चेतना है, लेकिन हम देख नहीं सकते । तो जो बातें भौतिक आंखों को दिखाई नहीं देती हैं, उसे सूक्ष्म कहा जाता है । और आत्मा अौर भी सूक्ष्म है । तो मानव जीवन उस आत्मा को परमात्मा के रूप में समझने के लिए है ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



740628 - Lecture at St. Pascal's Franciscan Seminary - Melbourne

तो भगवान, या परम सत्य, निरपेक्ष सत्य, वह है जो सब का स्रोत है । तो यह श्रीमद-भागवतम की शुरुआत है । जन्मादि अस्य यत: "निरपेक्ष सत्य वह है जो सब का स्रोत है ।" अब, इस निरपेक्ष सत्य की प्रकृति क्या है ? "सर्व" का अर्थ है...। दो बाते हैं: पदार्थ अौर अात्मा । दो चीज़े । जैसे यह मेज़ पदार्थ है अौर हम जीव, हम अात्मा हैं, अात्मा । यह भौतिक शरीर केवल मेरा अावरण है, वस्त्र की तरह । हम में से हर एक वस्त्र पहनता है, ढका है किसी वस्त्र के द्वारा । इसी तरह, सभी जीव, वे भौतिक अावरण से ढके हैं । स्थूल वस्त्र या कोट और सूक्ष्म वस्त्र । स्थूल वस्त्र पाँच भौतिक तत्वों से बना है: पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, और सूक्ष्म वस्त्र बना है मन, बुद्धि और अहंकार से ।

तो हम, अात्मा, भगवान के अंशस्वरूप । वर्तमान समय में हम दो प्रकार के वस्त्रों द्वारा ढके हैं - सूक्ष्म वस्त्र: मन, बुद्धि और अहंकार; और स्थूल वस्त्र । सूक्ष्म का अर्थ है हमें पता है की वह चीज़ है लेकिन हम उसे देख नहीं सकते हैं । जैसे कि तुम्हें पता है कि मेरा मन है; मुझे पता है कि तुम्हारा मन है, लेकिन मैं तुम्हारे मन को नहीं देख सकता, तुम मेरे मन को नहीं देख सकते । मुझे पता है कि तुम्हारे पास बुद्धि है, तुम्हे पता है कि मेरे पास बुद्धि है, लेकिन हम देख नहीं सकते हैं कि वह बुद्धि क्या है । इसी तरह, पहचान । मैं इस चेतना में हूँ... की तुम्हारी भी चेतना है, मेरी भी चेतना है, लेकिन हम देख नहीं सकते । तो जो बातें भौतिक आंखों को दिखाई नहीं देती हैं, उसे सूक्ष्म कहा जाता है । और आत्मा अौर भी सूक्ष्म है । तो मानव जीवन उस आत्मा को परमात्मा के रूप में समझने के लिए है ।