HI/720325 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/720325BG-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"आध्यात्मिक दुनिया में अपरा प्रकृति का कोई प्रदर्शन नहीं है; वहां केवल परा-प्रकृति है, चेतना। आध्यात्मिक दुनिया को इसलिए जीवित दुनिया कहा जाता है। वहां कुछ भी अचेतन का प्रदर्शन, या निर्जीव नहीं है। वहां भी विविधता हैं, जैसे कि यहां है। वहां पानी है, वहां वृक्ष हैं, वहां भूमि है। निर्विशेष नहीं है, व्यक्तित्वहीन-नहीं है, सब कुछ है-लेकिन वे सभी परा-प्रकृति से बने हैं। ऐसा वर्णन आता है कि यमुना नदी उसकी लहरों के साथ बह रही है, लेकिन जब कृष्ण यमुना के तट पर आते हैं, लहरें कृष्ण की बांसुरी सुनने के लिए रुक जाती हैं।"|Vanisource:720325 - Lecture BG 07.06 - Bombay|७२०३२५ - प्रवचन भ.गी. ०७.०६ - बॉम्बे}} | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/720325BG-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"आध्यात्मिक दुनिया में अपरा प्रकृति का कोई प्रदर्शन नहीं है; वहां केवल परा-प्रकृति है, चेतना। आध्यात्मिक दुनिया को इसलिए जीवित दुनिया कहा जाता है। वहां कुछ भी अचेतन का प्रदर्शन, या निर्जीव नहीं है। वहां भी विविधता हैं, जैसे कि यहां है। वहां पानी है, वहां वृक्ष हैं, वहां भूमि है। निर्विशेष नहीं है, व्यक्तित्वहीन-नहीं है, सब कुछ है-लेकिन वे सभी परा-प्रकृति से बने हैं। ऐसा वर्णन आता है कि यमुना नदी उसकी लहरों के साथ बह रही है, लेकिन जब कृष्ण यमुना के तट पर आते हैं, लहरें कृष्ण की बांसुरी सुनने के लिए रुक जाती हैं।"|Vanisource:720325 - Lecture BG 07.06 - Bombay|७२०३२५ - प्रवचन भ.गी. ०७.०६ - बॉम्बे}} |
Latest revision as of 23:27, 28 July 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"आध्यात्मिक दुनिया में अपरा प्रकृति का कोई प्रदर्शन नहीं है; वहां केवल परा-प्रकृति है, चेतना। आध्यात्मिक दुनिया को इसलिए जीवित दुनिया कहा जाता है। वहां कुछ भी अचेतन का प्रदर्शन, या निर्जीव नहीं है। वहां भी विविधता हैं, जैसे कि यहां है। वहां पानी है, वहां वृक्ष हैं, वहां भूमि है। निर्विशेष नहीं है, व्यक्तित्वहीन-नहीं है, सब कुछ है-लेकिन वे सभी परा-प्रकृति से बने हैं। ऐसा वर्णन आता है कि यमुना नदी उसकी लहरों के साथ बह रही है, लेकिन जब कृष्ण यमुना के तट पर आते हैं, लहरें कृष्ण की बांसुरी सुनने के लिए रुक जाती हैं।" |
७२०३२५ - प्रवचन भ.गी. ०७.०६ - बॉम्बे |