HI/720422 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद टोक्यो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 23:27, 28 July 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"सब धूर्त (हैं) हमारे दृष्टिकोण से। क्यों...? यह एक यथार्थ तथ्य है। जिसके पास देखने के लिए चक्षु हैं कौन धूर्त है और कौन बुद्धिमान... जो भी कृष्ण भावना भावित नहीं है, वह धूर्त है, हम यह मानते हैं। वह बहुत बड़ा व्यक्ति हो सकता है, किन्तु बहुत बड़ा व्यक्ति मायने धूर्तों के मध्य, एक और धूर्तों का समूह, क्योंकि वे भी माया के वश में हैं। ठीक जैसे गधों के समाज में, एक गधा गा रहा हो, ओह्हू - ओह्हू (गधे की आवाज़ बनाते हैं)। वे... गधे समझ रहे हैं, "ओह वह कितनी अच्छी तरह गा रहा है" (सभी हँसते हैं) सब गधे। एक गधा गा रहा है, और वे प्रशंसा करते हैं। "ओह, महान गायक"। और तुम सभी (कहते), "इसको रोको। इसको रोको। कृपया इसको रोको। इसको रोको। इसको रोको"। यही चल रहा है। तो ये सभी नेता, सभी धूर्त, ये सभी धूर्त हैं।" |
720422 - प्रवचन SB 02.09.02 - टोक्यो |