HI/750125 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हॉगकॉग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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Latest revision as of 05:27, 9 October 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हम अपने जीवन के रूप को एक शरीर से दूसरे शरीर में बदल रहे हैं, लेकिन अगर हम ईश्वर को समझना चाहते हैं ... यह आवश्यक है। इसलिए जब तक हम ईश्वर को नहीं समझते हैं, जब तक हम घर वापस नहीं जाते हैं, गॉडहेड में वापस आते हैं, तब तक भौतिक अस्तित्व के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा। मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ( भ.गी. १५.७ (१९७२))। यह संघर्ष। हर कोइ खुश होने के लिए कठिन संघर्ष करता है। लेकिन यह संभव नहीं है। बस खोज के बाद, खुशी के खोज के बाद, जब समय आता है: ' आपका काम समाप्त हो गया है। अब बाहर निकलो।' इसे मृत्यु कहा जाता है। इसलिए मृत्यु भी कृष्ण है। कृष्ण भगवद् गीता में कहते हैं, मृत्युः सर्वहरश्चाहम् ( भ.गी. १०.३४ (१९७२))। मृत्यु, कृष्ण मृत्यु के रूप में आते हैं। आपके जीवनकाल के दौरान, यदि आप कृष्ण चेतना को नहीं समझते हैं, तो कृष्ण मृत्यु के रूप में आऐंगे और आपको जो कुछ भी मिला है, उसे ले जाऐंगे। सर्व हर। फिर आपका शरीर, आपका परिवार, आपका देश, आपका बैंक, सब कुछ व्यापार, व्यवसाय समाप्त हो जाऐगा।' अब आपको एक और निकाय स्वीकार करना होगा। आप इन सब बातों को भूल जाऐंगे।' यह चल रहा है।"
750125 - प्रवचन भ.गी. ०७.०१ - हॉगकॉग