HI/Prabhupada 0534 - कृत्रिम रूप से कृष्ण को देखने की कोशिश मत करो: Difference between revisions
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प्रभुपाद: तो हमें | प्रभुपाद: तो हमें गोस्वामी के पद चिह्नों पर चलना चाहिए, कैसे हम खोजें कृष्ण और राधारानी को, वृन्दावन में, या अपने दिल के भीतर । यही प्रक्रिया है चैतन्य महाप्रभु के भजन की: जुदाई की भावना, विप्रलम्भ, विप्रलम्भ-सेवा । चैतन्य महाप्रभु की तरह, कृष्ण से जुदाई का एहसास । वे समुद्र में नीचे गिर रहे थे । वह अपने अाराम के कमरे से बाहर आ रहे थे, या अपने बेडरूम से अौर देर रात को बाहर जा रहे थे । कोई भी नहीं जानता था कि वह कहाँ चले गए हैं । तो ये उनकी खोज थी । भक्ति सेवा की यह प्रक्रिया चैतन्य महाप्रभु नें सिखाई है । ऐसा नहीं है कि बहुत आसानी से, "हमने कृष्ण को या राधारानी को रास-लीला में देखा है ।" नहीं, ऐसा नहीं है । जुदाई महसूस करो । जितना अधिक तुम कृष्ण से जुदाई महसुस करोगे, तुम्हें समझना चाहिए कि तुम प्रगति कर रहे हो । कृत्रिम रूप से कृष्ण को देखने की कोशिश मत करो । उन्नत रहो, जुदाई की भावना में, और फिर यह बिल्कुल सही होगा । यही भगवान चैतन्य की शिक्षा है । क्योंकि हमारी भौतिक आँखों से हम कृष्ण को नहीं देख सकते हैं । | ||
अत: श्री-कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इन्द्रियै: ([[Vanisource:CC Madhya 17.136|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६]]) । अपनी भौतिक इन्द्रियों से हम कृष्ण को नहीं देख सकते हैं, हम कृष्ण के नाम के बारे में सुन नहीं सकते हैं । लेकिन सेवनमुखे हि जिह्वादौ । जब तुम भगवान की सेवा में अपने आप को संलग्न करते हो... सेवा कहाँ शुरू होती है ? जिह्वादौ । सेवा जीभ से शुरू होती है । न पैर से, आँख, या कान से । यह जीभ से शुरू होती है । सेवनमुखे हि जिह्वादौ । अगर तुम अपनी जीभ के माध्यम से सेवा शुरू करते हो... कैसे ? हरे कृष्ण का जप करो । अपनी जीभ का प्रयोग करो । हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे । और कृष्ण प्रसाद लो । जीभ के दो काम हैं: ध्वनि करना, हरे कृष्ण, और प्रसाद लेना । इस प्रक्रिया से तुमको कृष्ण का एहसास होगा । | |||
भक्त: हरिबोल ! | भक्त: हरिबोल ! | ||
प्रभुपाद: कृष्ण को देखने की कोशिश मत करो । तुम अपनी भौतिक आँखों से कृष्ण को नहीं देख सकते हो । न तो तुम अपने भौतिक कानों से उनके बारे में सुन सकते हो । न तो तुम संपर्क कर सकते हो । लेकिन अगर तुम भगवान की सेवा में अपनी जीभ को संलग्न करो, तो वे खुद को प्रकट करेंगे तुमको: "मैं यहाँ हूँ ।" यही | प्रभुपाद: कृष्ण को देखने की कोशिश मत करो । तुम अपनी भौतिक आँखों से कृष्ण को नहीं देख सकते हो । न तो तुम अपने भौतिक कानों से उनके बारे में सुन सकते हो । न तो तुम संपर्क कर सकते हो । लेकिन अगर तुम भगवान की सेवा में अपनी जीभ को संलग्न करो, तो वे खुद को प्रकट करेंगे तुमको: "मैं यहाँ हूँ ।" यही ज़रूरी है । तो कृष्ण की जुदाई महसूस करो राधारानी की तरह, जैसे भगवान चैतन्य हमें सिखाते हैं, और भगवान की सेवा में अपनी जीभ को संलग्न करो; फिर, एक दिन, जब तुम परिपक्व हो जाअोगे, तुम कृष्ण को देखोगे, प्रत्यक्ष । | ||
बहुत बहुत धन्यवाद । | बहुत-बहुत धन्यवाद । | ||
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Latest revision as of 17:51, 1 October 2020
Radhastami, Srimati Radharani's Appearance Day -- London, August 29, 1971
प्रभुपाद: तो हमें गोस्वामी के पद चिह्नों पर चलना चाहिए, कैसे हम खोजें कृष्ण और राधारानी को, वृन्दावन में, या अपने दिल के भीतर । यही प्रक्रिया है चैतन्य महाप्रभु के भजन की: जुदाई की भावना, विप्रलम्भ, विप्रलम्भ-सेवा । चैतन्य महाप्रभु की तरह, कृष्ण से जुदाई का एहसास । वे समुद्र में नीचे गिर रहे थे । वह अपने अाराम के कमरे से बाहर आ रहे थे, या अपने बेडरूम से अौर देर रात को बाहर जा रहे थे । कोई भी नहीं जानता था कि वह कहाँ चले गए हैं । तो ये उनकी खोज थी । भक्ति सेवा की यह प्रक्रिया चैतन्य महाप्रभु नें सिखाई है । ऐसा नहीं है कि बहुत आसानी से, "हमने कृष्ण को या राधारानी को रास-लीला में देखा है ।" नहीं, ऐसा नहीं है । जुदाई महसूस करो । जितना अधिक तुम कृष्ण से जुदाई महसुस करोगे, तुम्हें समझना चाहिए कि तुम प्रगति कर रहे हो । कृत्रिम रूप से कृष्ण को देखने की कोशिश मत करो । उन्नत रहो, जुदाई की भावना में, और फिर यह बिल्कुल सही होगा । यही भगवान चैतन्य की शिक्षा है । क्योंकि हमारी भौतिक आँखों से हम कृष्ण को नहीं देख सकते हैं ।
अत: श्री-कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इन्द्रियै: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६) । अपनी भौतिक इन्द्रियों से हम कृष्ण को नहीं देख सकते हैं, हम कृष्ण के नाम के बारे में सुन नहीं सकते हैं । लेकिन सेवनमुखे हि जिह्वादौ । जब तुम भगवान की सेवा में अपने आप को संलग्न करते हो... सेवा कहाँ शुरू होती है ? जिह्वादौ । सेवा जीभ से शुरू होती है । न पैर से, आँख, या कान से । यह जीभ से शुरू होती है । सेवनमुखे हि जिह्वादौ । अगर तुम अपनी जीभ के माध्यम से सेवा शुरू करते हो... कैसे ? हरे कृष्ण का जप करो । अपनी जीभ का प्रयोग करो । हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे । और कृष्ण प्रसाद लो । जीभ के दो काम हैं: ध्वनि करना, हरे कृष्ण, और प्रसाद लेना । इस प्रक्रिया से तुमको कृष्ण का एहसास होगा ।
भक्त: हरिबोल !
प्रभुपाद: कृष्ण को देखने की कोशिश मत करो । तुम अपनी भौतिक आँखों से कृष्ण को नहीं देख सकते हो । न तो तुम अपने भौतिक कानों से उनके बारे में सुन सकते हो । न तो तुम संपर्क कर सकते हो । लेकिन अगर तुम भगवान की सेवा में अपनी जीभ को संलग्न करो, तो वे खुद को प्रकट करेंगे तुमको: "मैं यहाँ हूँ ।" यही ज़रूरी है । तो कृष्ण की जुदाई महसूस करो राधारानी की तरह, जैसे भगवान चैतन्य हमें सिखाते हैं, और भगवान की सेवा में अपनी जीभ को संलग्न करो; फिर, एक दिन, जब तुम परिपक्व हो जाअोगे, तुम कृष्ण को देखोगे, प्रत्यक्ष ।
बहुत-बहुत धन्यवाद ।