Category:HI-Quotes - in United Kingdom
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- HI/Prabhupada 0008 - कृष्ण दावा करते है की 'मैं हर किसी का पिता हूँ'
- HI/Prabhupada 0094 - हमारा कार्य कृष्ण के शब्दों को दोहराना है
- HI/Prabhupada 0152 - एक पापी मनुष्य श्री कृष्ण के प्रति जागरूक नहीं बन सकता है
- HI/Prabhupada 0156 - मैं आपको वो सिखाने की कोशिश कर रहा हूँ, जिसे आप भूल चुके हैं
- HI/Prabhupada 0198 - इन बुरी आदतों को छोडना होगा और इन मोतियों पर हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना होगा
- HI/Prabhupada 0218 - गुरु आंखें खोलता है
- HI/Prabhupada 0228 - अमर होने का रास्ता समझो
- HI/Prabhupada 0232 - तो भगवान से जलने वाले दुश्मन भी हैं । वे राक्षस कहे जाते हैं
- HI/Prabhupada 0233 - हमें गुरु और कृष्ण की दया के माध्यम से कृष्ण भावनामृत मिलती है
- HI/Prabhupada 0234 - एक भक्त बनना सबसे बड़ी योग्यता है
- HI/Prabhupada 0235 - अयोग्य गुरू का मतलब है जो शिष्य का मार्गदर्शन कैसे करना है यह नहीं जानता है
- HI/Prabhupada 0236 - एक ब्राह्मण, एक सन्यासी,भीख माँग सकते हैं, लेकिन एक क्षत्रिय नहीं, एक वैश्य नहीं
- HI/Prabhupada 0237 - हम कृष्ण के साथ संपर्क में आ जाते हैं उनका नाम जप कर, हरे कृष्ण
- HI/Prabhupada 0238 - भगवान अच्छे हैं, वे सर्व अच्छे हैं
- HI/Prabhupada 0239 - कृष्ण को समझने के लिए, हमें विशेष इंद्रियों की आवश्यकता है
- HI/Prabhupada 0240 - कोई अधिक बेहतर पूजा नहीं है गोपियों की तुलना में
- HI/Prabhupada 0241 - इन्द्रियॉ सर्पों की तरह हैं
- HI/Prabhupada 0242 - सभ्यता की मूल प्रक्रिया को हमारा वापस जाना बहुत मुश्किल है
- HI/Prabhupada 0243 - एक शिष्य गुरु के पास ज्ञान के लिए आता है
- HI/Prabhupada 0244 - हमारा तत्वज्ञान है कि सब कुछ भगवान के अंतर्गत आता है
- HI/Prabhupada 0245 - हर कोई अपने इन्द्रियों को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहा है
- HI/Prabhupada 0246 - कृष्ण का भक्त जो बन जाता है , सभी अच्छे गुण उनके शरीर में प्रकट होते हैं
- HI/Prabhupada 0247 - असली धर्म का मतलब है भगवान से प्यार करना
- HI/Prabhupada 0248 - कृष्ण की १६१०८ पत्नियां थीं, और लगभग हर बार उन्हे लड़ना पड़ा, पत्नी को हासिल करने के लिए
- HI/Prabhupada 0249 - सवाल उठाया गया था कि , क्यों युद्ध होता है
- HI/Prabhupada 0250 - श्री कृष्ण के लिए कार्य करो, भगवान के लिए काम करो, अपने निजी हित के लिए नहीं
- HI/Prabhupada 0251 - गोपियॉ कृष्ण की शाश्वत संगी हैं
- HI/Prabhupada 0252 - हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं
- HI/Prabhupada 0253 - असली खुशी भगवद गीता में वर्णित है
- HI/Prabhupada 0254 - वैदिक ज्ञान गुरु समझाता है
- HI/Prabhupada 0255 - भगवान की सरकार में इतने सारे निर्देशक होने चाहिए, वे देवता कहे जाते हैं
- HI/Prabhupada 0256 - इस कलियुग में कृष्ण उनके नाम के रूप में आए हैं, हरे कृष्ण
- HI/Prabhupada 0265 - भक्ति का मतलब है ऋषिकेश, इंद्रियों के मालिक, की सेवा करना
- HI/Prabhupada 0266 - कृष्ण पूर्ण ब्रह्मचारी हैं
- HI/Prabhupada 0267 - श्री कृष्ण क्या हैं व्यासदेव नें वर्णित किया है
- HI/Prabhupada 0268 - कृष्ण का शुद्ध भक्त बने बिना कोई भी कृष्ण को नहीं समझ सकता है
- HI/Prabhupada 0269 - बदमाश अर्थघटन द्वारा भगवद् गीता नहीं समझ सकते हो
- HI/Prabhupada 0270 - तो प्रत्येक व्यक्ति की अपनी प्राकृतिक प्रवृत्तियॉ है
- HI/Prabhupada 0271 - कृष्ण का नाम अच्युत है
- HI/Prabhupada 0272 - भक्ति दिव्य है
- HI/Prabhupada 0273 - आर्य का मतलब है जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत है
- HI/Prabhupada 0274 - वैसे ही जैसे हम ब्रह्म सम्प्रदाय के हैं
- HI/Prabhupada 0275 - धर्म का मतलब है कर्तव्य
- HI/Prabhupada 0276 - गुरु का कार्य है कृष्ण देना, न कि भौतिक सामग्री देना
- HI/Prabhupada 0330 - हर किसी को व्यक्तिगत रूप से खुद का ख्याल रखना होगा
- HI/Prabhupada 0338 - इस लोकतंत्र का मूल्य क्या है, सभी मूर्ख और दुष्ट
- HI/Prabhupada 0426 - जो विद्वान व्यक्ति है, वह न तो जीवित के लिए न ही मरे हुए व्यक्ति के लिए विलाप करता है
- HI/Prabhupada 0427 - आत्मा, स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर से अलग हैं
- HI/Prabhupada 0428 - इंसान का विशेषाधिकार है यह समझना कि मैं क्या हूँ
- HI/Prabhupada 0429 - कृष्ण भगवान का नाम है । कृष्ण का मतलब है पूर्ण आकर्षक
- HI/Prabhupada 0430 - चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि भगवान का हर नाम भगवान की तरह ही शक्तिशाली है
- HI/Prabhupada 0431 - भगवान वास्तव में सभी जीव के सही दोस्त हैं
- HI/Prabhupada 0505 - तुम इस शरीर को नहीं बचा सकते । यह संभव नहीं है
- HI/Prabhupada 0506 - तुम्हारी आँखें शास्त्र होनी चाहिए । यह जड़ आँखें नहीं
- HI/Prabhupada 0507 - अपने प्रत्यक्ष अनुभव से, तुम गणना नहीं कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0508 - जो पशु हत्यारे हैं, उनका मस्तिष्क पत्थर के रूप में सुस्त है
- HI/Prabhupada 0509 - ये लोग कहते हैं कि जानवरों की कोई आत्मा नहीं है
- HI/Prabhupada 0510 - आधुनिक सभ्यता, उन्हे आत्मा का ज्ञान नहीं है
- HI/Prabhupada 0511 - वास्तविक भुखमरी आत्मा की है । आत्मा को आध्यात्मिक भोजन नहीं मिल रहा है
- HI/Prabhupada 0512 - जो भौतिक प्रकृति के समक्ष आत्मसमर्पण करता है, उसे भुगतना पड़ता है
- HI/Prabhupada 0513 - कई अन्य शरीर हैं, ८४,००,००० अलग प्रकार के शरीर
- HI/Prabhupada 0514 - इधर, खुशी का मतलब है दर्द का थोड़ा अभाव
- HI/Prabhupada 0515 - तुम खुश नहीं हो सकते हो, श्रीमान, जब तक तुम्हे यह भौतिक शरीर मिला है
- HI/Prabhupada 0528 - राधारानी कृष्ण की आनन्द शक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0529 - राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं
- HI/Prabhupada 0530 - हम इस संकट से बाहर अा सकते हैं जब हम विष्णु का अाश्रय लेते हैं
- HI/Prabhupada 0531 - हम वैदिक साहित्य से समझते हैं, कृष्ण की शक्तियों की कई किस्में हैं
- HI/Prabhupada 0532 - कृष्ण के आनंद लेने में कुछ भौतिक नहीं है
- HI/Prabhupada 0533 - राधारानी हैं हरि प्रिया, कृष्ण की बहुत प्रिय हैं
- HI/Prabhupada 0534 - कृत्रिम रूप से कृष्ण को देखने की कोशिश मत करो
- HI/Prabhupada 0535 - हम जीव, हम कभी नहीं मरते हैं, कभी जन्म नहीं लेते हैं
- HI/Prabhupada 0536 - वेदों का अध्ययन करने का क्या फायदा है अगर तुम कृष्ण को समझ नहीं सके
- HI/Prabhupada 0537 - कृष्ण सबसे गरीब आदमी के लिए भी पूजा के लिए उपलब्ध हैं
- HI/Prabhupada 0538 - कानून का मतलब है राज्य द्वारा दिए गए वचन । तुम घर पर कानून नहीं बना सकते
- HI/Prabhupada 0539 - इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को समझने की कोशिश करनी चाहिए
- HI/Prabhupada 0574 - तुम मंजूरी के बिना किसी को नहीं मार सकते हो
- HI/Prabhupada 0575 - उन्हे अंधेरे में और अज्ञानता में रखा जाता है
- HI/Prabhupada 0576 - प्रक्रिया यह होनी चाहिए कि कैसे इन सभी प्रवृत्तियों को शून्य करें
- HI/Prabhupada 0577 - तथाकथित तत्वज्ञानी, वैज्ञानिक, सभी, इसलिए दुष्ट, मूर्ख । उन्हें अस्वीकार करो
- HI/Prabhupada 0578 - वही बोलो जो कृष्ण कहते हैं
- HI/Prabhupada 0579 - आत्मा उसके शरीर को बदल रही है जैसे हम अपने वस्र को बदलते हैं
- HI/Prabhupada 0580 - हम भगवान की मंजूरी के बिना हमारी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0581 - अगर तुम कृष्ण की सेवा में अपने आप को संलग्न करते हो, तुम्हे नया प्रोत्साहन मिलेगा
- HI/Prabhupada 0582 - कृष्ण ह्दय में बैठे हैं
- HI/Prabhupada 0583 - सब कुछ भगवद गीता में है
- HI/Prabhupada 0615 - प्रेम और उत्साह के साथ कृष्ण के लिए काम करते हो, यही तुम्हारा कृष्ण भावनाभावित जीवन है
- HI/Prabhupada 0630 - शोक का कोई कारण नहीं है, क्योंकी आत्मा रहेगी
- HI/Prabhupada 0631 - मैं शाश्वत हूँ, शरीर शाश्वत नहीं है । यह तथ्य है
- HI/Prabhupada 0632 -जब एहसास होता है कि मैं यह शरीर नहीं हूं , तो तुरंत प्रकृति के तीनों गुणों से परे हो जाता हूँ
- HI/Prabhupada 0633 - हम कृष्ण की चमकति चिंगारी जैसे हैं
- HI/Prabhupada 0634 - कृष्ण माया शक्ति से कभी प्रभावित नहीं होते हैं
- HI/Prabhupada 0635 - आत्मा हर शरीर में है, यहां तक कि चींटी के भीतर भी
- HI/Prabhupada 0636 - जो पंडित हैं, वे भेद नहीं करते हैं कि उनकी आत्मा नहीं है । हर किसी की आत्मा है
- HI/Prabhupada 0637 - कृष्ण की उपस्थिति के बिना कुछ भी मौजूद नहीं हो सकता है
- HI/Prabhupada 0638 - यह प्रथम श्रेणी का योगी है, जो हमेशा कृष्ण के बारे में चिन्तन करता है
- HI/Prabhupada 0639 - व्यक्तिगत अात्मा हर शरीर में है और परमात्मा, परमात्मा असली मालिक हैं
- HI/Prabhupada 0640 - तुम्हे खुद को भगवान घोषित करने वाले बदमाश मिल सकते हैं, उसके चेहरे पर लात मारो
- HI/Prabhupada 0729 - एक सन्यासी छोटा सा अपराध करता है, उसे एक हजार गुना बढ़ाया जाता है
- HI/Prabhupada 0731 - भागवत धर्म इस तरह के व्यक्तियों के लिए नहीं है जो जलते हैं
- HI/Prabhupada 0783 - इस भौतिक दुनिया में हम भोग करने की भावना से आए हैं। इसलिए हम पतीत हैं
- HI/Prabhupada 0787 - लोग गलत समझते हैं, कि भगवद गीता साधारण युद्ध है, हिंसा
- HI/Prabhupada 0793 - शिक्षा में कोई अंतर नहीं है । इसलिए गुरु एक है
- HI/Prabhupada 0794 - धूर्त गुरु कहेगा " हाँ तुम कुछ भी खा सकते हो । तुम कुछ भी कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0798 - तुम नर्तकी हो। अब तुम्हे नृत्य करना होगा । तुम शर्मा नहीं सकती
- HI/Prabhupada 0805 - कृष्ण भावनाभावित में वे जानते हैं कि बंधन क्या है और मुक्ति क्या है