HI/Prabhupada 0549 - योग प्रणाली का मतलब कि तुम्हे इन्द्रियों को नियंत्रित करना है: Difference between revisions

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तमाल कृष्ण: "... इन्द्रियों में, मनुषय को उनमें अासक्ति उत्पन्न हो जाती है, और एसी अासक्ति से काम उत्पन्न होता है अौर फिर काम से क्रोध प्रकट होता है । ([[Vanisource:BG 2.62|भ गी २।६२]]) तात्पर्य : " जो मनुष्य कृष्णभावनाभावित नही है उसमें भौतिक इच्छाऍ उत्पन्न होती हैं इंद्रियविष्यों के चिन्तन से । इन्द्रियों को किसी न किसी कार्य में लगे रहना चाहिए अौर यदि वे भगवान के दिव्य प्रमाभक्ति में नहीं लगी रहेंगी, तो वे निश्चय ही भौतिकवाद में लगना चाहेंगी ।"
तमाल कृष्ण: "... इन्द्रियों का, मनुष्य को उनमें अासक्ति उत्पन्न हो जाती है, और एेसी अासक्ति से काम उत्पन्न होता है अौर फिर काम से क्रोध प्रकट होता है ।" ([[HI/BG 2.62|भ.गी. २.६२]]) तात्पर्य: " जो मनुष्य कृष्णभावनाभावित नहीं है उसमें भौतिक इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं इंद्रियविषयों के चिन्तन से । इन्द्रियों को किसी न किसी कार्य में लगे रहना चाहिए अौर यदि वे भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में नहीं लगी रहेंगी, तो वे निश्चित ही भौतिकतावाद में लगना चाहेंगी ।"  


प्रभुपाद: हाँ । यहां योग प्रणाली का राज़ है । योग इन्द्रिय-संयम । योग का वास्तविक उद्देश्य इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए है । हमारी भौतिक गतिविधियॉ का मतलब है इन्द्रिय को कुछ विशेष उद्देश्य या आनंद में संलग्न करना । यही हमारी भौतिक काम है । और योग प्रणाली का मतलब कि तुम्हे इन्द्रियों का नियंत्रित करना है और भौतिक आनंद या भौतिक खुशी और दर्द से इंद्रियों को अलग करना है, और ध्यान हटाकर, अपने भीतर परमात्मा विष्णु को देखने की ओर ध्यान केंद्रित करना है । यही योग का वास्तविक उद्देश्य है । योग का मतलब यह नहीं है ... बेशक, शुरुआत में विभिन्न नियम और विनियम हैं, आसन में बैठना, केवल मन को नियंत्रण में लाने के लिए । लेकिन ये खुद में अंत नहीं हैं । अंत है भौतिक कार्यों को रोकना और आध्यात्मिक कार्यों को शुरू करना । तो यहाँ यह समझाया गया है । पढ़ते जाअो ।
प्रभुपाद: हाँ । यहां योग प्रणाली का राज़ है । योग इन्द्रिय-संयम । योग का वास्तविक उद्देश्य इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए है । हमारे भौतिक कार्यो का मतलब है इन्द्रिय को कुछ विशेष उद्देश्य या आनंद में संलग्न करना । यही हमारा भौतिक काम है । और योग प्रणाली का मतलब कि तुम्हें इन्द्रियों को नियंत्रित करना है और भौतिक आनंद या भौतिक खुशी और दर्द से इंद्रियों को अलग करना है, और ध्यान हटाकर, अपने भीतर परमात्मा विष्णु को देखने की ओर ध्यान केंद्रित करना है । यही योग का वास्तविक उद्देश्य है । योग का मतलब यह नहीं है... अवश्य, शुरुआत में विभिन्न निति नियम हैं, आसन में बैठना, केवल मन को नियंत्रण में लाने के लिए । लेकिन ये खुद में अंत नहीं हैं । अंत है भौतिक कार्यों को रोकना और आध्यात्मिक कार्यों को शुरू करना । तो यहाँ यह समझाया गया है । पढ़ते जाअो ।  


तमाल कृष्ण: "इस भौतिक जगत में हर एक प्राणी, यहॉ तक कि ब्रह्मा तथा शिवजी भी, तो स्वर्ग के अन्य देवताअों के विष्य में क्या कहा जा सकता है -इन्द्रियविष्यों के अधीन हैं ।"
तमाल कृष्ण: "इस भौतिक जगत में हर एक प्राणी, यहाँ तक कि ब्रह्मा तथा शिवजी भी - तो स्वर्ग के अन्य देवताअों के विषय में क्या कहा जा सकता है - वे इन्द्रियविषयों के अधीन हैं ।"  


प्रभुपाद: इन्द्रियविष्य । हाँ ।
प्रभुपाद: इन्द्रियविषय । हाँ ।  


तमाल कृष्ण: इन्द्रियविष्य । इस संसार के जंजाल से निकलने का एकमात्रउपाय है कृष्णभावनाभवि होना ।"
तमाल कृष्ण: इन्द्रियविषय । इस संसार के जंजाल से निकलने का एकमात्र उपाय है कृष्ण भावनाभवित होना ।"  


प्रभुपाद: यह वैदिक साहित्य से सीखा जाता है कि ... बेशक, वे हमें सिखा रहे हैं, भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा वे भी कभी कभी इन्द्रियविष्यों से आकर्षित थे । जैसे भगवान ब्रह्मा, उnकी बेटी सरस्वती ... सरस्वती सुंदरता का सबसे उत्तम रूप, स्रैण सौंदर्य, मानी जाती है , सरस्वती । तो भगवान ब्रह्मा अपनी बेटी की सुंदरता से मुग्ध हो गए बस हमें उदाहरण दिखाने के लिए कि भगवान ब्रह्मा की तरह व्यक्तित्व भी कभी कभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । यह माया इतनी बलवान है । वे भूल गए कि, "वह मेरी बेटी है ।" तो फिर इसकी तपस्या के लिए, ब्रह्मा को शरीर छोड़ना पडा । ये कहानियॉ श्रीमद-भागवता में है । इसी तरह, भगवान शिव भी, जब कृष्ण मोहिनी-मूर्ति के रूप में उनके सामने प्रकट हुए , ... मोहिनी-मूर्ति ... मोहिनी का मतलब है सबसे अद्भुत, सुंदर स्रैण रूप । भगवान शिव भी उनके पीछे पागल हो गए । तो वह जहाँ भी जाती थी, भगवान शिव उसका पीछा कर रहे थे । और यह कहा गया है कि मोहिनी-मूर्ति का पीछा करते हुए, भगवान शिव नें निर्वहन किया था । तो ये उदाहरण हैं । जैसे भगवद गीता में कहा गया है, दैवी हि एषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ([[Vanisource:BG 7.14|भ गी ७।१४]]) सारी प्रकृति हम में से हर एक को अाकर्षित कर रही है इस सौंदर्य से, स्रैण सौंदर्य । दरअसल, कोई सौंदर्य नहीं है । यह भ्रम है । शंकराचार्य का कहना है कि, " तुम इस सुंदरता के पीछे भाग रहे हो, लेकिन तुमने इस सुंदरता का विश्लेषण किया है? यह सौंदर्य क्या है? " एतद रक्त-माम्स-विकारम । यह जैसे हमारे शिष्य, गोविंदा दासी और नार-नारायण, प्लास्टर अोफ पेरिस को ढाल रहे हैं । इस समय, कोई आकर्षण नहीं है । लेकिन यह प्लास्टर अोफ पेरिस जब यह अच्छी तरह चित्रित किया जाएगा, यह इतना आकर्षक हो जाएगा । इसी तरह, यह शरीर रक्त और मांसपेशियों और नसों का संयोजन है । अगर तुम अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को काटते हो, जैसे ही तुम अंदर देखते हो, सब अप्रिय भयानक चीज़ें । लेकिन बाहर से एसे रंगी जाती हैं माया द्वारा, ओह, यह बहुत आकर्षक लग रहा है । और यह हमारे इन्द्रियों को आकर्षित कर रहा है । यही हमारे बंधन का कारण है ।
प्रभुपाद: यह वैदिक साहित्य से सीखा जाता है कि... बेशक, वे हमें सिखा रहे हैं, शिवजी, ब्रह्माजी | वे भी कभी-कभी इन्द्रियविषयों से आकर्षित थे । जैसे ब्रह्माजी, उनकी पुत्री सरस्वती... सरस्वती स्त्री की सुंदरता का सबसे उत्तम रूप मानी जाती है, सरस्वती । तो ब्रह्माजी अपनी पुत्री की सुंदरता से मुग्ध हो गए बस हमें उदाहरण दिखाने के लिए कि ब्रह्माजी जैसे व्यक्ति भी कभी-कभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । यह माया इतनी बलवान है । वे भूल गए कि, "वह मेरी बेटी है ।" तो फिर इसकी पर्याश्चित के लिए, ब्रह्मा को शरीर छोड़ना पड़ा । ये कहानियाँ श्रीमद-भागवतम में है । इसी तरह, शिवजी भी, जब कृष्ण मोहिनी-मूर्ति के रूप में उनके सामने प्रकट हुए... मोहिनी-मूर्ति... मोहिनी का मतलब है सबसे अद्भुत, सुंदर स्त्री रूप । शिवजी भी उनके पीछे पागल हो गए । तो वह जहाँ भी जाती थी, शिवजी उसका पीछा कर रहे थे । और यह कहा गया है कि मोहिनी-मूर्ति का पीछा करते हुए, भगवान शिव का वीर्य स्खलन हुआ था । तो ये उदाहरण हैं ।  
 
जैसे भगवद गीता में कहा गया है, दैवी हि एषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ([[HI/BG 7.14|भ.गी. ७.१४]]) सारी प्रकृति हम में से हर एक को अाकर्षित कर रही है इस सौंदर्य से, स्त्री सौंदर्य । दरअसल, कोई सौंदर्य नहीं है । यह भ्रम है । शंकराचार्य का कहना है कि, "तुम इस सुंदरता के पीछे भाग रहे हो, लेकिन तुमने इस सुंदरता का विश्लेषण किया है ? यह सौंदर्य क्या है ?" एतद रक्त-मांस-विकारम । यह जैसे हमारे शिष्य, गोविंद दासी और नर-नारायण, प्लास्टर अोफ पेरिस को ढ़ाल रहे हैं । इस समय, कोई आकर्षण नहीं है । लेकिन यह प्लास्टर अोफ पेरिस जब यह अच्छी तरह चित्रित किया जाएगा, यह इतना आकर्षक हो जाएगा । इसी तरह, यह शरीर रक्त और मांसपेशियों और नसों का संयोजन है । अगर तुम अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को काटते हो, जैसे ही तुम अंदर देखते हो, सब अप्रिय भयानक चीज़ें । लेकिन बाहर से एसे रंगी जाती हैं माया द्वारा, ओह, यह बहुत आकर्षक लग रहा है । और यह हमारी इन्द्रियों को आकर्षित कर रहा है । यही हमारे बंधन का कारण है ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 2.62-72 -- Los Angeles, December 19, 1968

तमाल कृष्ण: "... इन्द्रियों का, मनुष्य को उनमें अासक्ति उत्पन्न हो जाती है, और एेसी अासक्ति से काम उत्पन्न होता है अौर फिर काम से क्रोध प्रकट होता है ।" (भ.गी. २.६२) तात्पर्य: " जो मनुष्य कृष्णभावनाभावित नहीं है उसमें भौतिक इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं इंद्रियविषयों के चिन्तन से । इन्द्रियों को किसी न किसी कार्य में लगे रहना चाहिए अौर यदि वे भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में नहीं लगी रहेंगी, तो वे निश्चित ही भौतिकतावाद में लगना चाहेंगी ।"

प्रभुपाद: हाँ । यहां योग प्रणाली का राज़ है । योग इन्द्रिय-संयम । योग का वास्तविक उद्देश्य इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए है । हमारे भौतिक कार्यो का मतलब है इन्द्रिय को कुछ विशेष उद्देश्य या आनंद में संलग्न करना । यही हमारा भौतिक काम है । और योग प्रणाली का मतलब कि तुम्हें इन्द्रियों को नियंत्रित करना है और भौतिक आनंद या भौतिक खुशी और दर्द से इंद्रियों को अलग करना है, और ध्यान हटाकर, अपने भीतर परमात्मा विष्णु को देखने की ओर ध्यान केंद्रित करना है । यही योग का वास्तविक उद्देश्य है । योग का मतलब यह नहीं है... अवश्य, शुरुआत में विभिन्न निति नियम हैं, आसन में बैठना, केवल मन को नियंत्रण में लाने के लिए । लेकिन ये खुद में अंत नहीं हैं । अंत है भौतिक कार्यों को रोकना और आध्यात्मिक कार्यों को शुरू करना । तो यहाँ यह समझाया गया है । पढ़ते जाअो ।

तमाल कृष्ण: "इस भौतिक जगत में हर एक प्राणी, यहाँ तक कि ब्रह्मा तथा शिवजी भी - तो स्वर्ग के अन्य देवताअों के विषय में क्या कहा जा सकता है - वे इन्द्रियविषयों के अधीन हैं ।"

प्रभुपाद: इन्द्रियविषय । हाँ ।

तमाल कृष्ण: इन्द्रियविषय । इस संसार के जंजाल से निकलने का एकमात्र उपाय है कृष्ण भावनाभवित होना ।"

प्रभुपाद: यह वैदिक साहित्य से सीखा जाता है कि... बेशक, वे हमें सिखा रहे हैं, शिवजी, ब्रह्माजी | वे भी कभी-कभी इन्द्रियविषयों से आकर्षित थे । जैसे ब्रह्माजी, उनकी पुत्री सरस्वती... सरस्वती स्त्री की सुंदरता का सबसे उत्तम रूप मानी जाती है, सरस्वती । तो ब्रह्माजी अपनी पुत्री की सुंदरता से मुग्ध हो गए बस हमें उदाहरण दिखाने के लिए कि ब्रह्माजी जैसे व्यक्ति भी कभी-कभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । यह माया इतनी बलवान है । वे भूल गए कि, "वह मेरी बेटी है ।" तो फिर इसकी पर्याश्चित के लिए, ब्रह्मा को शरीर छोड़ना पड़ा । ये कहानियाँ श्रीमद-भागवतम में है । इसी तरह, शिवजी भी, जब कृष्ण मोहिनी-मूर्ति के रूप में उनके सामने प्रकट हुए... मोहिनी-मूर्ति... मोहिनी का मतलब है सबसे अद्भुत, सुंदर स्त्री रूप । शिवजी भी उनके पीछे पागल हो गए । तो वह जहाँ भी जाती थी, शिवजी उसका पीछा कर रहे थे । और यह कहा गया है कि मोहिनी-मूर्ति का पीछा करते हुए, भगवान शिव का वीर्य स्खलन हुआ था । तो ये उदाहरण हैं ।

जैसे भगवद गीता में कहा गया है, दैवी हि एषा गुणमयी मम माया दुरत्यया (भ.गी. ७.१४) । सारी प्रकृति हम में से हर एक को अाकर्षित कर रही है इस सौंदर्य से, स्त्री सौंदर्य । दरअसल, कोई सौंदर्य नहीं है । यह भ्रम है । शंकराचार्य का कहना है कि, "तुम इस सुंदरता के पीछे भाग रहे हो, लेकिन तुमने इस सुंदरता का विश्लेषण किया है ? यह सौंदर्य क्या है ?" एतद रक्त-मांस-विकारम । यह जैसे हमारे शिष्य, गोविंद दासी और नर-नारायण, प्लास्टर अोफ पेरिस को ढ़ाल रहे हैं । इस समय, कोई आकर्षण नहीं है । लेकिन यह प्लास्टर अोफ पेरिस जब यह अच्छी तरह चित्रित किया जाएगा, यह इतना आकर्षक हो जाएगा । इसी तरह, यह शरीर रक्त और मांसपेशियों और नसों का संयोजन है । अगर तुम अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को काटते हो, जैसे ही तुम अंदर देखते हो, सब अप्रिय भयानक चीज़ें । लेकिन बाहर से एसे रंगी जाती हैं माया द्वारा, ओह, यह बहुत आकर्षक लग रहा है । और यह हमारी इन्द्रियों को आकर्षित कर रहा है । यही हमारे बंधन का कारण है ।