HI/Prabhupada 0605 - वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 French Pages with Videos Category:Prabhupada 0605 - in all Languages Category:FR-Quotes - 1976 Category:FR-Quotes - Le...")
 
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
 
Line 1: Line 1:
<!-- BEGIN CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN CATEGORY LIST -->
[[Category:1080 French Pages with Videos]]
[[Category:1080 Hindi Pages with Videos]]
[[Category:Prabhupada 0605 - in all Languages]]
[[Category:Prabhupada 0605 - in all Languages]]
[[Category:FR-Quotes - 1976]]
[[Category:HI-Quotes - 1976]]
[[Category:FR-Quotes - Lectures, Srimad-Bhagavatam]]
[[Category:HI-Quotes - Lectures, Srimad-Bhagavatam]]
[[Category:FR-Quotes - in India]]
[[Category:HI-Quotes - in India]]
[[Category:FR-Quotes - in India, Vrndavana]]
[[Category:HI-Quotes - in India, Vrndavana]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0604 - अगर मैंने जारी रखा, कृष्ण दिव्य मंच पर मुझे रखने की कृपा करेंगे|0604|HI/Prabhupada 0606 - हम भगवद गीता यथारूप का प्रचार कर रहे हैं । यह अंतर है|0606}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 15: Line 18:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|QVrHDztdd8I|Accroissez votre amour pour Vasudeva et vous ne risquerez pas de reprendre un corps matériel - Prabhupāda 0605}}
{{youtube_right|k-vQFq0EWLc|वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं है<br/> - Prabhupāda 0605}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/761028SB-VRNDAVAN_clip.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/761028SB-VRNDAVAN_clip.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 27: Line 30:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
तो ..., लेकिन अंतिम उद्देश्य वासुदेवे हैं । प्रीतिर न यावन मयि वासुदेवे । यह अंतिम लक्ष्य है । तुम्हे इस स्तर पर अाना होगा, वासुदेव सर्वम इति, पूरी तरह से, यह दृढ़ विश्वास कि "वासुदेव मेरी जिंदगी हैं । वासुदेव सब कुछ हैं । कृष्ण मेरी जिंदगी हैं ।" और उच्चतम पूर्णता वृन्दावन के चवातावरण में दिखाई देती है, विशेष रूप से गोपियों द्वारा । हर कोई वृन्दावन में, यहां तक ​​कि पेड़ पौधे भी, रेत के कण, हर कोई कृष्ण से जुड़ा है । यही वृन्दावन है । तो एसा नहीं कि हम अचानक उस उच्चतम अवस्था जीवन कि, को प्राप्त कर सकते हैं, लगाव , लेकिन फिर भी, जहॉ भी हम रहते हैं, अगर हम इस भक्ति योग का अभ्यास करें, जैसे हम प्रचार कर रहे हैं ... यह सफल होता जा रहा है । लोग ले रहे हैं । जो तथाकथित म्लेछा और यावन कहे जाते हैं, वे भी वासुदेव को अपना रहे हैं । कृष्ण के लिए उनका प्यार बढ़ रहा है । यह स्वाभाविक है । यह चैतन्य-चरितामृत में कहा जाता है, नित्य सिध्द कृष्ण भक्ति । नित्य सिध्द । जैसे मैं हूँ, या तुम हो, हम अनन्त हैं । नित्यो शाश्वतो अयम न हन्यते हन्यमाने शरीरे ([[Vanisource:BG 2.20|भ गी २।२०]]) हम शरीर के विनाश से नष्ट नहीं होते हैं । हम रहते हैं, रहते हैं । इसी प्रकार, कृष्ण के प्रति हमारी भक्ति जारी रहती है । यह बस ढक जाती है । अविद्यात्मानि उपाधियमाने । अविद्या । यह अविद्या । हम कृष्ण को भूल जाते हैं, यह अविद्या है । और जैसे ही हम कृष्ण को अपना जीवन और आत्मा मानते हैं, यह विद्या है । तुम कर सकते हो । कोई भी बहुत आसानी से कर सकता है । कृष्ण कहते हैं, इसलिए, सर्व धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम ([[Vanisource:BG 18.66|भ गी १८।६६]]) । क्यों? कोई भी अन्य तथाकथित धार्मिक प्रणाली, यह अविद्या है - तुम्हे अज्ञान में रखेगी । कोई रोशनी नहीं है । और वैदिक निषेधाज्ञा है कि "अपने आप को अज्ञान के अंधेरे में न रखें ।" तमसि मा ज्योति गम: । वह ज्योति का मतलब है कृष्ण से प्रेम करना । और कृष्ण केप् रेम की लीला आध्यात्मिक दुनिया में । यही ज्योति, ज्योतिरमाया धाम, स्वयं प्रकाश । यस्य प्रभा प्रभवतो जगद-अंड-कोटि ( ब्र स ५।४०) । कोई अंधेरा नहीं है । जैसे धूप में अंधकार का कोई सवाल नहीं है । उदाहरण यहाँ हैं । हम समझ सकते हैं कि ज्योति क्या है । हम देख सकते हैं कि सूर्य ग्रह में कोई अंधेरा नहीं है । यह सर्व तेज है । इसी तरह, आध्यात्मिक दुनिया में कोई अज्ञान नहीं है । हर कोई शुद्ध-सत्व है । सत्व-गुण ही नहीं, लेकिन शुद्ध-सत्त्व । सत्वम विशुद्धम वासुदेव-शब्दित: इधर, इस भौतिक दुनिया में, तीन गुण हैं , सत्व-गुण, रजो-गुण, तमो-गुण । तो इनमे से कोई भी गुण शुद्ध नहीं है । एक मिश्रण है । और क्योंकि मिश्रण है, इसलिए हम इतनी सारी विविधता देखते हैं । लेकिन हमें सत्व-गुण के मंच पर आना होगा । और वह प्रक्रिया सुनना है । यह सबसे अच्छी प्रक्रिया है । श्रण्वताम स्व-कथा: कृष्ण: पुण्य-श्रवण-कीर्तन: ([[Vanisource:SB 1.2.17|श्री १।२।१७]]) अगर तुम नियमित रूप से श्रीमद-भागवतम सुनते हो ... इसलिए हम जोर देते हैं: "हमेशा सुनो, हमेशा पढ़ो, हमेशा सुनो ।" नित्यम भागवत-सेवया ([[Vanisource:SB 1.2.18|श्री भ १।२।१८]]) । नित्य । यदि तुम निरंतर, चौबीस घंटे, अगर तुम सुनते हो और जपते हो मंत्र सुनने का मतलब है कोई जपता है या तुम खुद जपते हो या सुनते हो, या तुम्हारा सहयोगी जप सकता है, तुम सुनो । या वह सुन सकता है, तुम जप सकते हो । यह प्रक्रिया चलनी चाहिए । यह है श्रवणम कीर्तनम विष्नो: ([[Vanisource:SB 7.5.23|श्री भ ७।५।२३]]) । यही भागवत है । कोई भी अन्य बकवास वार्ता, गपशप नहीं । बस सुनो और जपो । फिर श्रण्वताम स्व-कथा: कृष्ण । अगर तुम गंभीरता से सुनते हो और जपते हो, गंभीरता से - "हाँ, इस जीवन को मैं संलग्न करूँगा केवल वासुदेव के लिए अापने को बढ़ाने के लिए - अगर तुम दृढ हो, तो यह किया जा सकता है । कोई कठिनाई नहीं है । और जैसे ही तुम यह करते हो, तो तुम पूरी तरह से वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं है ।
तो..., लेकिन अंतिम उद्देश्य वासुदेवे हैं । प्रीतिर न यावन मयि वासुदेवे । यह अंतिम लक्ष्य है । तुम्हे इस स्तर पर अाना होगा, वासुदेव सर्वम इति ([[HI/BG 7.19|भ.गी. ७.१९]]), पूरी तरह से, यह दृढ़ विश्वास कि "वासुदेव मेरी जिंदगी हैं । वासुदेव सब कुछ हैं । कृष्ण मेरी जिंदगी हैं ।" और उच्चतम पूर्णता वृन्दावन के वातावरण में दिखाई देती है, विशेष रूप से गोपियों द्वारा । हर कोई वृन्दावन में, यहां तक ​​कि पेड़ पौधे भी, रेत के कण, हर कोई कृष्ण से जुड़ा है । यही वृन्दावन है ।  


:जन्म कर्म च दिव्यम
तो एसा नहीं कि हम अचानक जीवन की उस उच्चतम अवस्था को, वृन्दावन लगाव को, प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन फिर भी, जहॉ भी हम रहते हैं, अगर हम इस भक्ति योग का अभ्यास करें, जैसे हम प्रचार कर रहे हैं... यह सफल होता जा रहा है । लोग अपना रहे हैं । जो तथाकथित म्लेछा और यावन कहे जाते हैं, वे भी वासुदेव को अपना रहे हैं । कृष्ण के लिए उनका प्यार बढ़ रहा है । यह स्वाभाविक है । यह चैतन्य-चरितामृत में कहा जाता है, नित्य सिद्ध कृष्ण भक्ति  ।
:मे यो जानाति तत्वत:
:त्यक्तवा देहम पुनर जन्म
:नैति...
:([[Vanisource:BG 4.9|भ गी ४।९]])


एक ही बात है । और अगर तुम कृष्ण को समझ नहीं सके, अगर तुम कृष्ण के लिए अपने प्राकृतिक प्यार में वृद्धि नहीं कर सके, फिर न मुच्यते देह-योगेन तावत । कोई संभावना नहीं है । उनके लिए कोई मौका नहीं है । तुम अगले जन्म में एक बहुत अमीर परिवार में जन्म ले सकते हो, एक ब्राह्मण परिवार में, योगो-भ्रश्ट: लेकिन वह भी रिहाई नहीं है । फिर से तुम नीचे गिर सकते हो । जैसे कि हम देखते हैं बहुत सारे ... जैसे तुम अमेरिकि, तुम अमीर परिवार में पैदा होते हो, समृद्ध राष्ट्र है, लेकिन नीचे गिरते हो, हिप्पी बनते हो । नीचे गिरना । इसलिए मौका है । एसा नहीं है कि यह सुनिश्चित है । "क्योंकि मैं एक अमीर परिवार या ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ हूँ, यह सुनिश्चित है ।" कोई गारंटी नहीं है । यह माया इतनी बलवान है कि यह केवल तुम्हें खींच रही है - नीचे खींचेती हैं, तुम्हे नीचे खींचेती है । तो कई करणों से । तो इसलिए हम कभी कभी देखते हैं कि ये अमेरिकि, वे कितने भाग्यशाली हैं वे पैदा होते हैं एक एसे देश में जहां कोई गरीबी नहीं है, कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी, क्योंकि नेता दुष्ट हैं, उन्होंने व्यवस्था की है मांस खाने, अवैध यौन संबंध, नशा, और जुआ के लिए । विज्ञापन । विज्ञानपन नग्न महिला और, क्या कहा जाता है, गाय को खाने वाले, और शराब । यह चल रहा है । सिगरेट का विज्ञानपना बस फिर से उन्हें नीचे खींचने के लिए । नर्क में जाओ । पुनर मूषिक भव । वे नहीं जानते हैं कि यह क्या खतरनाक सभ्यता है जो उन्हे खींच रही है नीचे । इसलिए कभी कभी सयाने बूडे पुरुष, वे मेरे पास आते हैं, वे अपना धन्यवाद देते हैं : "स्वामीजी, यह एक महान सौभाग्य है कि आप हमारे देश में आए हैं ।" वे स्वीकार करते हैं । हाँ, यह एक तथ्य है । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन एक महान भाग्यशाली आंदोलन है । और विशेष रूप से पश्चिमी देशों में, यह एक तथ्य है । तो जिन्होंने अपनाया है, इसे बहुत गंभीरता से लेना । कृष्ण के लिए अपने प्रेम को बढ़ाएँ । प्रीतिर न यावन मयि वासुदेवे मुच्यते देह योगेन.......... वे जानते नहीं हैं कि जीवन की वास्तविक समस्या क्या है । जीवन की वास्तविक समस्या है ये देह-योग, यह विदेशी शरीर । हम एक बार स्वीकार करते हैं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ([[Vanisource:BG 8.19|भ गी ८।१९]]), एक प्रकार का शरीर स्वीकार करते हैं । इसलिए वे, इन दुष्ट नेताओं नें यूरोप और अमेरिका में, उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि कोई जन्म नहीं है । बस । क्योंकि अगर वे स्वीकार करते हैं कि मृत्यु के बाद जीवन है, तो यह उनके लिए भयानक है । इसलिए उन्होंने खारिज कर दिया है: "नहीं, कोई जन्म नहीं है ।" बड़े बड़े तथाकथित प्रोफेसर, सीखा विद्वान, वे मूर्खता भरी बात करते हैं: "स्वामी जी, इस शरीर के समाप्त होने के बाद, सब कुछ समाप्त हो जाता है " यही उनका निष्कर्ष है और शरीर अचानक से अाता हैं, किम अन्यत काम-हैतुकम असत्यम अप्रतिश्ठम ते जगद अहुर अनीश्वरम ([[Vanisource:BG 16.8|भ गी १६।८]])
नित्य सिद्ध । जैसे मैं हूँ, या तुम हो, हम शाश्वत हैं । नित्यो शाश्वतो अयम हन्यते हन्यमाने शरीरे ([[HI/BG 2.20|भ.गी. २.२०]]) | हम शरीर के विनाश से नष्ट नहीं होते हैं । हम रहते हैं, रहते हैं । इसी प्रकार, कृष्ण के प्रति हमारी भक्ति जारी रहती है । यह बस ढक जाती है । अविद्यात्मानि उपाधियमाने अविद्या यह अविद्या ।  


तो, इस तरह की सभ्यता बहुत ही खतरनाक है । बहुत, बहुत खतरनाक इसलिए जो लोग कम से कम कृष्ण भावनामृत में आए हैं, उन्हें होना चाहिए बहुत, बहुत सतर्क इस खतरनाक सभ्यता से लोग पीड़ित हैं । कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाअो और खुश और पूर्ण रहो
हम कृष्ण को भूल जाते हैं, यह अविद्या है । और जैसे ही हम कृष्ण को अपना जीवन और आत्मा मानते हैं, यह विद्या है । तुम कर सकते हो । कोई भी बहुत आसानी से कर सकता है । कृष्ण कहते हैं, इसलिए, सर्व धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) । क्यों? कोई भी अन्य तथाकथित धार्मिक प्रणाली, यह अविद्या है - तुम्हे अज्ञान में रखेगी । कोई रोशनी नहीं है । और वैदिक आज्ञा है कि "अपने आप को अज्ञान के अंधेरे में न रखें " तमसि मा ज्योति गम: वह ज्योति का मतलब है कृष्ण से प्रेम करना । और आध्यात्मिक दुनिया में कृष्ण के प्रेम की लीलाए । यही ज्योति, ज्योतिरमाया धाम, स्वयं प्रकाशित ।  


बहुत बहुत धन्यवाद
यस्य प्रभा प्रभवतो जगद-अंड-कोटि (ब्रह्मसंहिता ५.४०) कोई अंधेरा नहीं है । जैसे धूप में अंधकार का कोई सवाल नहीं है । उदाहरण यहाँ हैं । हम समझ सकते हैं कि ज्योति क्या है । हम देख सकते हैं कि सूर्य ग्रह में कोई अंधेरा नहीं है । यह सर्व तेज है । इसी तरह, आध्यात्मिक दुनिया में कोई अज्ञान नहीं है । हर कोई शुद्ध-सत्व है । सत्व-गुण ही नहीं, लेकिन शुद्ध-सत्त्व । सत्वम विशुद्धम वासुदेव-शब्दित: |


भक्त: जय प्रभुपाद । (समाप्त)
इधर, इस भौतिक दुनिया में, तीन गुण हैं, सत्व-गुण, रजो-गुण, तमो-गुण । तो इनमे से कोई भी गुण शुद्ध नहीं है । एक मिश्रण है । और क्योंकि मिश्रण है, इसलिए हम इतनी सारी विविधता देखते हैं । लेकिन हमें सत्व-गुण के मंच पर आना होगा । और वह प्रक्रिया सुनना है । यह सबसे अच्छी प्रक्रिया है । शृण्वताम स्व-कथा: कृष्ण: पुण्य-श्रवण-कीर्तन: ([[Vanisource:SB 1.2.17|श्रीमद भागवतम १.२.१७]]) |
 
अगर तुम नियमित रूप से श्रीमद-भागवतम सुनते हो... इसलिए हम जोर देते हैं: "हमेशा सुनो, हमेशा पढ़ो, हमेशा सुनो ।" नित्यम भागवत-सेवया ([[Vanisource:SB 1.2.18|श्रीमद भागवतम १.२.१८]]) । नित्य । यदि तुम निरंतर, चौबीस घंटे, अगर तुम सुनते हो और जप करते हो सुनने का मतलब है कोई जप करता है या तुम खुद जप करते हो या सुनते हो, या तुम्हारा सहयोगी जप कर सकता है, तुम सुनो । या वह सुन सकता है, तुम जप कर सकते हो । यह प्रक्रिया चलनी चाहिए । यह है श्रवणम कीर्तनम विष्णो: | विष्णो: ([[Vanisource:SB 7.5.23-24|श्रीमद भागवतम ७.५.२३]]) । यही भागवत है ।
 
कोई भी अन्य बकवास वार्ता, गपशप नहीं । बस सुनो और जप करो । तो शृण्वताम स्व-कथा: कृष्ण । अगर तुम गंभीरता से सुनते हो और जप करते हो, गंभीरता से - "हाँ, इस जीवन को मैं संलग्न करूँगा केवल वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाने के लिए - अगर तुम दृढ हो, तो यह किया जा सकता है । कोई कठिनाई नहीं है । और जैसे ही तुम यह करते हो, तुम पूरी तरह से वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं है ।
 
:जन्म कर्म च दिव्यम
:मे यो जानाति तत्वत:
:त्यक्तवा देहम पुनर जन्म
:नैति...
:([[HI/BG 4.9|भ.गी. ४.९]])
 
एक ही बात है । और अगर तुम कृष्ण को समझ नहीं सके, अगर तुम कृष्ण के लिए अपने प्राकृतिक प्यार में वृद्धि नहीं कर सके, फिर न मुच्यते देह-योगेन तावत । कोई संभावना नहीं है । उनके लिए कोई मौका नहीं है । तुम अगले जन्म में एक बहुत अमीर परिवार में जन्म ले सकते हो, एक ब्राह्मण परिवार में, योगो-भ्रष्ट:, लेकिन वह भी रिहाई नहीं है । फिर से तुम नीचे गिर सकते हो । जैसे कि हम देखते हैं बहुत सारे... जैसे तुम अमेरिकी, तुम अमीर परिवार में पैदा हुए हो, समृद्ध राष्ट्र है, लेकिन नीचे गिरते हो, हिप्पी बनते हो । नीचे गिरना । इसलिए मौका है । एसा नहीं है कि यह सुनिश्चित है । "क्योंकि मैं एक अमीर परिवार या ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ हूँ, यह सुनिश्चित है ।" कोई गारंटी नहीं है । यह माया इतनी बलवान है कि यह केवल तुम्हें खींच रही है - नीचे खींचेती हैं, तुम्हे नीचे खींचेती है । तो कई कारणों से ।
 
तो इसलिए हम कभी कभी देखते हैं कि ये अमेरिकी, वे कितने भाग्यशाली हैं वे पैदा हुए हैं एक एसे देश में जहां कोई गरीबी नहीं है, कोई कमी नहीं है । लेकिन फिर भी, क्योंकि नेता दुष्ट हैं, उन्होंने व्यवस्था की है मांस खाने, अवैध यौन संबंध, नशा, और जुए के लिए । विज्ञापन । नग्न स्त्री का विज्ञापन करो और, क्या कहा जाता है, गाय खाने वाले, और शराब का विज्ञापन करो । यह चल रहा है । सिगरेट का विज्ञानपना बस फिर से उन्हें नीचे खींचने के लिए । नर्क में जाओ । पुनर मूषिक भव । वे नहीं जानते हैं कि यह कितनी खतरनाक सभ्यता है जो उन्हे निचे खींच रही है । इसलिए कभी कभी सयाने बूडे पुरुष,  वे मेरे पास आते हैं, वे अपना धन्यवाद देते हैं: "स्वामीजी, यह एक महान सौभाग्य है कि आप हमारे देश में आए हैं ।" वे स्वीकार करते हैं । हाँ, यह एक तथ्य है ।
 
यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन एक महान भाग्यशाली आंदोलन है । और विशेष रूप से पश्चिमी देशों में, यह एक तथ्य है । तो जिन्होंने अपनाया है, इसे बहुत गंभीरता से लेना । कृष्ण के लिए अपने प्रेम को बढ़ाएँ । प्रीतिर न यावन मयि वासुदेवे न मुच्यते देह योगेन... वे जानते नहीं हैं कि  जीवन की वास्तविक समस्या क्या है । जीवन की वास्तविक समस्या है ये देह-योग, यह विदेशी शरीर । हम एक बार स्वीकार करते हैं, भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ([[HI/BG 8.19|भ.गी. ८.१९]]),  एक प्रकार का शरीर स्वीकार करते हैं ।
 
इसलिए, इन दुष्ट नेताओं नें यूरोप और अमेरिका में, उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि कोई जन्म नहीं है । बस । क्योंकि अगर वे स्वीकार करते हैं कि मृत्यु के बाद जीवन है, तो यह उनके लिए भयानक है । इसलिए उन्होंने खारिज कर दिया है: "नहीं, कोई जन्म नहीं है ।" बड़े बड़े तथाकथित प्रोफेसर, शिक्षित विद्वान, वे मूर्खता भरी बात करते हैं: "स्वामी जी, इस शरीर के समाप्त होने के बाद, सब कुछ समाप्त हो जाता है ।" यही उनका निष्कर्ष है । और शरीर अकस्मात से अाता हैं, किम अन्यत काम-हैतुकम । असत्यम अप्रतिश्ठम ते जगद आहुर अनीश्वरम ([[HI/BG 16.8|भ.गी. १६.८]]) |
 
तो, इस तरह की सभ्यता बहुत ही खतरनाक है । बहुत, बहुत खतरनाक । इसलिए जो लोग कम से कम कृष्ण भावनामृत में आए हैं, उन्हें होना चाहिए बहुत, बहुत सतर्क इस खतरनाक सभ्यता से । लोग पीड़ित हैं । कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाअो और खुश और पूर्ण रहो ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद ।
 
भक्त: जय प्रभुपाद । (समाप्त)  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 18:57, 17 September 2020



Lecture on SB 5.5.6 -- Vrndavana, October 28, 1976

तो..., लेकिन अंतिम उद्देश्य वासुदेवे हैं । प्रीतिर न यावन मयि वासुदेवे । यह अंतिम लक्ष्य है । तुम्हे इस स्तर पर अाना होगा, वासुदेव सर्वम इति (भ.गी. ७.१९), पूरी तरह से, यह दृढ़ विश्वास कि "वासुदेव मेरी जिंदगी हैं । वासुदेव सब कुछ हैं । कृष्ण मेरी जिंदगी हैं ।" और उच्चतम पूर्णता वृन्दावन के वातावरण में दिखाई देती है, विशेष रूप से गोपियों द्वारा । हर कोई वृन्दावन में, यहां तक ​​कि पेड़ पौधे भी, रेत के कण, हर कोई कृष्ण से जुड़ा है । यही वृन्दावन है ।

तो एसा नहीं कि हम अचानक जीवन की उस उच्चतम अवस्था को, वृन्दावन लगाव को, प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन फिर भी, जहॉ भी हम रहते हैं, अगर हम इस भक्ति योग का अभ्यास करें, जैसे हम प्रचार कर रहे हैं... यह सफल होता जा रहा है । लोग अपना रहे हैं । जो तथाकथित म्लेछा और यावन कहे जाते हैं, वे भी वासुदेव को अपना रहे हैं । कृष्ण के लिए उनका प्यार बढ़ रहा है । यह स्वाभाविक है । यह चैतन्य-चरितामृत में कहा जाता है, नित्य सिद्ध कृष्ण भक्ति ।

नित्य सिद्ध । जैसे मैं हूँ, या तुम हो, हम शाश्वत हैं । नित्यो शाश्वतो अयम न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २.२०) | हम शरीर के विनाश से नष्ट नहीं होते हैं । हम रहते हैं, रहते हैं । इसी प्रकार, कृष्ण के प्रति हमारी भक्ति जारी रहती है । यह बस ढक जाती है । अविद्यात्मानि उपाधियमाने । अविद्या । यह अविद्या ।

हम कृष्ण को भूल जाते हैं, यह अविद्या है । और जैसे ही हम कृष्ण को अपना जीवन और आत्मा मानते हैं, यह विद्या है । तुम कर सकते हो । कोई भी बहुत आसानी से कर सकता है । कृष्ण कहते हैं, इसलिए, सर्व धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम (भ.गी. १८.६६) । क्यों? कोई भी अन्य तथाकथित धार्मिक प्रणाली, यह अविद्या है - तुम्हे अज्ञान में रखेगी । कोई रोशनी नहीं है । और वैदिक आज्ञा है कि "अपने आप को अज्ञान के अंधेरे में न रखें ।" तमसि मा ज्योति गम: । वह ज्योति का मतलब है कृष्ण से प्रेम करना । और आध्यात्मिक दुनिया में कृष्ण के प्रेम की लीलाए । यही ज्योति, ज्योतिरमाया धाम, स्वयं प्रकाशित ।

यस्य प्रभा प्रभवतो जगद-अंड-कोटि (ब्रह्मसंहिता ५.४०) । कोई अंधेरा नहीं है । जैसे धूप में अंधकार का कोई सवाल नहीं है । उदाहरण यहाँ हैं । हम समझ सकते हैं कि ज्योति क्या है । हम देख सकते हैं कि सूर्य ग्रह में कोई अंधेरा नहीं है । यह सर्व तेज है । इसी तरह, आध्यात्मिक दुनिया में कोई अज्ञान नहीं है । हर कोई शुद्ध-सत्व है । सत्व-गुण ही नहीं, लेकिन शुद्ध-सत्त्व । सत्वम विशुद्धम वासुदेव-शब्दित: |

इधर, इस भौतिक दुनिया में, तीन गुण हैं, सत्व-गुण, रजो-गुण, तमो-गुण । तो इनमे से कोई भी गुण शुद्ध नहीं है । एक मिश्रण है । और क्योंकि मिश्रण है, इसलिए हम इतनी सारी विविधता देखते हैं । लेकिन हमें सत्व-गुण के मंच पर आना होगा । और वह प्रक्रिया सुनना है । यह सबसे अच्छी प्रक्रिया है । शृण्वताम स्व-कथा: कृष्ण: पुण्य-श्रवण-कीर्तन: (श्रीमद भागवतम १.२.१७) |

अगर तुम नियमित रूप से श्रीमद-भागवतम सुनते हो... इसलिए हम जोर देते हैं: "हमेशा सुनो, हमेशा पढ़ो, हमेशा सुनो ।" नित्यम भागवत-सेवया (श्रीमद भागवतम १.२.१८) । नित्य । यदि तुम निरंतर, चौबीस घंटे, अगर तुम सुनते हो और जप करते हो सुनने का मतलब है कोई जप करता है या तुम खुद जप करते हो या सुनते हो, या तुम्हारा सहयोगी जप कर सकता है, तुम सुनो । या वह सुन सकता है, तुम जप कर सकते हो । यह प्रक्रिया चलनी चाहिए । यह है श्रवणम कीर्तनम विष्णो: | विष्णो: (श्रीमद भागवतम ७.५.२३) । यही भागवत है ।

कोई भी अन्य बकवास वार्ता, गपशप नहीं । बस सुनो और जप करो । तो शृण्वताम स्व-कथा: कृष्ण । अगर तुम गंभीरता से सुनते हो और जप करते हो, गंभीरता से - "हाँ, इस जीवन को मैं संलग्न करूँगा केवल वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाने के लिए - अगर तुम दृढ हो, तो यह किया जा सकता है । कोई कठिनाई नहीं है । और जैसे ही तुम यह करते हो, तुम पूरी तरह से वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं है ।

जन्म कर्म च दिव्यम
मे यो जानाति तत्वत:
त्यक्तवा देहम पुनर जन्म
नैति...
(भ.गी. ४.९)

एक ही बात है । और अगर तुम कृष्ण को समझ नहीं सके, अगर तुम कृष्ण के लिए अपने प्राकृतिक प्यार में वृद्धि नहीं कर सके, फिर न मुच्यते देह-योगेन तावत । कोई संभावना नहीं है । उनके लिए कोई मौका नहीं है । तुम अगले जन्म में एक बहुत अमीर परिवार में जन्म ले सकते हो, एक ब्राह्मण परिवार में, योगो-भ्रष्ट:, लेकिन वह भी रिहाई नहीं है । फिर से तुम नीचे गिर सकते हो । जैसे कि हम देखते हैं बहुत सारे... जैसे तुम अमेरिकी, तुम अमीर परिवार में पैदा हुए हो, समृद्ध राष्ट्र है, लेकिन नीचे गिरते हो, हिप्पी बनते हो । नीचे गिरना । इसलिए मौका है । एसा नहीं है कि यह सुनिश्चित है । "क्योंकि मैं एक अमीर परिवार या ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ हूँ, यह सुनिश्चित है ।" कोई गारंटी नहीं है । यह माया इतनी बलवान है कि यह केवल तुम्हें खींच रही है - नीचे खींचेती हैं, तुम्हे नीचे खींचेती है । तो कई कारणों से ।

तो इसलिए हम कभी कभी देखते हैं कि ये अमेरिकी, वे कितने भाग्यशाली हैं वे पैदा हुए हैं एक एसे देश में जहां कोई गरीबी नहीं है, कोई कमी नहीं है । लेकिन फिर भी, क्योंकि नेता दुष्ट हैं, उन्होंने व्यवस्था की है मांस खाने, अवैध यौन संबंध, नशा, और जुए के लिए । विज्ञापन । नग्न स्त्री का विज्ञापन करो और, क्या कहा जाता है, गाय खाने वाले, और शराब का विज्ञापन करो । यह चल रहा है । सिगरेट का विज्ञानपना बस फिर से उन्हें नीचे खींचने के लिए । नर्क में जाओ । पुनर मूषिक भव । वे नहीं जानते हैं कि यह कितनी खतरनाक सभ्यता है जो उन्हे निचे खींच रही है । इसलिए कभी कभी सयाने बूडे पुरुष, वे मेरे पास आते हैं, वे अपना धन्यवाद देते हैं: "स्वामीजी, यह एक महान सौभाग्य है कि आप हमारे देश में आए हैं ।" वे स्वीकार करते हैं । हाँ, यह एक तथ्य है ।

यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन एक महान भाग्यशाली आंदोलन है । और विशेष रूप से पश्चिमी देशों में, यह एक तथ्य है । तो जिन्होंने अपनाया है, इसे बहुत गंभीरता से लेना । कृष्ण के लिए अपने प्रेम को बढ़ाएँ । प्रीतिर न यावन मयि वासुदेवे न मुच्यते देह योगेन... वे जानते नहीं हैं कि जीवन की वास्तविक समस्या क्या है । जीवन की वास्तविक समस्या है ये देह-योग, यह विदेशी शरीर । हम एक बार स्वीकार करते हैं, भूत्वा भूत्वा प्रलीयते (भ.गी. ८.१९), एक प्रकार का शरीर स्वीकार करते हैं ।

इसलिए, इन दुष्ट नेताओं नें यूरोप और अमेरिका में, उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि कोई जन्म नहीं है । बस । क्योंकि अगर वे स्वीकार करते हैं कि मृत्यु के बाद जीवन है, तो यह उनके लिए भयानक है । इसलिए उन्होंने खारिज कर दिया है: "नहीं, कोई जन्म नहीं है ।" बड़े बड़े तथाकथित प्रोफेसर, शिक्षित विद्वान, वे मूर्खता भरी बात करते हैं: "स्वामी जी, इस शरीर के समाप्त होने के बाद, सब कुछ समाप्त हो जाता है ।" यही उनका निष्कर्ष है । और शरीर अकस्मात से अाता हैं, किम अन्यत काम-हैतुकम । असत्यम अप्रतिश्ठम ते जगद आहुर अनीश्वरम (भ.गी. १६.८) |

तो, इस तरह की सभ्यता बहुत ही खतरनाक है । बहुत, बहुत खतरनाक । इसलिए जो लोग कम से कम कृष्ण भावनामृत में आए हैं, उन्हें होना चाहिए बहुत, बहुत सतर्क इस खतरनाक सभ्यता से । लोग पीड़ित हैं । कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाअो और खुश और पूर्ण रहो ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय प्रभुपाद । (समाप्त)