HI/Prabhupada 0719 - सन्यास ले रहे हो उसे बहुत अच्छी तरह से निभाओ: Difference between revisions

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श्री चैतन्य महाप्रभु इस जगह का निवासी थे जहाँ तुम सन्यास ले रहे हो । तो उनके सन्यास लेने का उद्देश्य क्या था? वे बहुत ही सम्मानित ब्राह्मण थे, निमाय पंडित । यह भूमि, नवद्वीप, अनादी काल से उच्च शिक्षित ब्राह्मण का स्थान है । तो श्री चैतन्य महाप्रभु एक बहुत सम्मानजनक ब्राह्मण परिवार के थे, जगन्नाथ मिश्र के बेटे; उनके दादा, नीलांबर चक्रवर्ती । बहुत सम्मानीय, सम्मानजनक व्यक्तिय । उन्होंने उस परिवार में जन्म लिया । निजी तौर पर वे बहुत सुंदर थे; इसलिए उनका एक और नाम गौरसंदर है । और वे बहुत भी विद्वान पंडित थे; इसलिए उनका एक और नाम निमाय पंडित है । तो, और उनके पारिवारिक जीवन में बहुत अच्छी, सुंदर युवा पत्नी थी विष्णुप्रिया और बहुत स्नेही माँ, और वे बहुत प्रभावशाली थे । तुम जानते हो ।. एक दिन में उन्होंने काजी के आदेश के खिलाफ विरोध करने के लिए एक लाख अनुयायियों को एकत्र किया था । तो इस तरह से उनकी सामाजिक स्थिति बहुत अनुकूल थी । निजी स्थिति बहुत अनुकूल थी । फिर भी, उन्होंने संयास लिया, घर त्याग दिया । क्यों? दैयितये : दुनिया की गिरी हुई आत्माओं को दया दिखाने के लिए, कृपा दिखाने के लिए ।  
श्री चैतन्य महाप्रभु इस जगह के निवासी थे जहाँ तुम सन्यास ले रहे हो । तो उनके सन्यास लेने का उद्देश्य क्या था? वे बहुत ही सम्मानित ब्राह्मण थे, निमाय पंडित । यह भूमि, नवद्वीप, अनादी काल से उच्च शिक्षित ब्राह्मण का स्थान है । तो श्री चैतन्य महाप्रभु एक बहुत सम्मानजनक ब्राह्मण परिवार के थे, जगन्नाथ मिश्र के बेटे; उनके दादा, नीलांबर चक्रवर्ती । बहुत सम्मानीय, सम्मानजनक व्यक्ति । उन्होंने उस परिवार में जन्म लिया । निजी तौर पर वे बहुत सुंदर थे; इसलिए उनका एक और नाम गौरसुंदर है । और वे बहुत ही विद्वान पंडित थे; इसलिए उनका एक और नाम निमाइ पंडित है । तो, और उनके पारिवारिक जीवन में बहुत अच्छी, सुंदर युवा पत्नी थी, विष्णुप्रिया और बहुत स्नेही माँ, और वे बहुत प्रभावशाली थे । तुम जानते हो । एक दिन में उन्होंने काजी के आदेश के खिलाफ विरोध करने के लिए एक लाख अनुयायीयों को एकत्र किया था । तो इस तरह से उनकी सामाजिक स्थिति बहुत अनुकूल थी । निजी स्थिति बहुत अनुकूल थी । फिर भी, उन्होंने सन्यास लिया, घर त्याग दिया । क्यों? दयितये: दुनिया की पतित आत्माओं पर कृपा करने के लिए ।  


तो उन्होंने विरासत छोड़ी, कि जिस किसी नें भी भारत में जन्म लिया है  
तो उन्होंने विरासत छोड़ी, कि जिस किसी नें भी भारत में जन्म लिया है,


:भारत-भूमिते मनुष्य-जन्म हैल यार  
:भारत-भूमिते मनुष्य-जन्म हैल यार  
:जन्म सार्थक कारि कर पर उपकार  
:जन्म सार्थक करि कर पर उपकार  
:([[Vanisource:CC Adi 9.41|चै च अादि ९।४१]])
:([[Vanisource:CC Adi 9.41|चैतन्य चरितामृत अादि ९.४१]])  


तो उन्होंने व्यक्तिगत रूप से प्रदर्शित किया कि परा उपकार कैसे करना चाहिए दूसरों के लिए कल्याण, पतीत आत्माओं के प्रति । तो इस संयास का अर्थ है श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश का पालन करना कि,  
तो उन्होंने व्यक्तिगत रूप से प्रदर्शित किया की पर-उपकार कैसे करना चाहिए, दूसरों के लिए, पतीत आत्माओं के प्रति, कल्याण । तो इस सन्यास का अर्थ है श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश का पालन करना की,  


:अामार अाज्ञाय गुरु हआया तार एइ देश  
:अामार अाज्ञाय गुरु हया तार एइ देश  
:यारे देखा तारे कह कृष्ण उपदेश  
:यारे देख तारे कह कृष्ण उपदेश  
:([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चै च मध्य ७।१२८]])
:([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८]])


इतना ही नहीं ... हम यह स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं कि न केवल भारतीयों की जिम्मेदारी है लेकिन श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुसार, कोई भी - पृथिवीते अाछे यत नगरादि ग्राम ( चै भ अंत्य खंड ४।१२६) - उन्हें यह कल्याणकारी कार्य को करना चाहिए । और मैं अापका बहुत अाभारी हूँ, आप अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ का भी, कि अापने बहुत गंभीरता से इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को लिया है । और श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से तुम संयास ले रहे हो, आप में से कुछ । उसे बहुत अच्छी तरह से निभाअाो और शहर से शहर, गांव से गांव, नगर से नगर जाअो पूरी दुनिया में और इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को फैलाअो ताकि हर कोई खुश हो जाएगा । लोग बहुत ज्यादा पीड़ित हैं । वे, क्योंखि वे मूढा हैं, दुष्ट, वे जानते नहीं कि मनुष्य जन्म को समायोजित कैसे करें । यही हर जगह भागवत-धर्म है । तो मनुष्य जन्म एक कुत्ता, सूअर, सुअर बनने के लिए नहीं है । तुम्हे एक पुर्ण इंसान बन जाना चाहिए । शुद्धयेत सत्वा । अपने अस्तित्व को शुद्ध करो । क्यों तुम जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के अधीन हो ? क्योंकि हम अशुद्ध हैं । अब, अगर हम अपने अस्तित्व को शुद्ध करते हैं, तो फिर जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी जैसी कोई बात नहीं होगी । यही श्री चैतन्य महाप्रभु और खुद कृष्ण का संस्करण है । केवल कृष्ण को समझने के द्वारा, तुम शुद्ध हो जाते हो और तुम जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के संक्रमण से बच जाते हो । इसलिए आम लोगों को समझाने की कोशिश करो, दार्शनिक, धार्मिक हमारी ऐसी कोई सोच नहीं, सांप्रदायिक दृष्टि कोई भी इस आंदोलन में शामिल हो सकता हैऔर खुद शुद्ध हो जाता है । जन्म सार्थक करि कर पर-उपकार ([[Vanisource:CC Adi 9.41|चै च अादि ९।४१]]) तो मैं बहुत ज्यादा खुश हूँ । तुम्ने समाज को पहले से ही सेवा दी है । अब तुम संयास लो और प्रचार करो ताकि लोगों को लाभ हो । बहुत बहुत धन्यवाद ।  
इतना ही नहीं... हम यह स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं कि न केवल भारतीयों की जिम्मेदारी है, लेकिन श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुसार, कोई भी - पृथ्विते अाछे यत नगरादि ग्राम (चैतन्य भागवत अंत्य खंड ४.१२६) - उन्हें यह कल्याणकारी कार्य को करना चाहिए । और मैं अापका बहुत अाभारी हूँ, आप अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ का भी, की अापने बहुत गंभीरता से इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को लिया है । और श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से तुम सन्यास ले रहे हो, आप में से कुछ । उसे बहुत अच्छी तरह से निभाअाो और शहर से शहर, गांव से गांव, नगर से नगर जाअो, पूरी दुनिया में और इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को फैलाअो ताकि हर कोई खुश हो जाएगा । लोग बहुत ज्यादा पीड़ित हैं । वे, क्योंकि वे मूढ हैं, दुष्ट, वे जानते नहीं कि मनुष्य जन्म को समायोजित कैसे करें । यही हर जगह भागवत-धर्म है ।  


भक्त: जया श्रील प्रभुपाद ।
तो मनुष्य जन्म एक कुत्ता, सूअर बनने के लिए नहीं है । तुम्हे एक पूर्ण इंसान बन जाना चाहिए । शुद्धयेत सत्व । अपने अस्तित्व को शुद्ध करो । क्यों तुम जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के अधीन हो ? क्योंकि हम अशुद्ध हैं । अब, अगर हम अपने अस्तित्व को शुद्ध करते हैं, तो फिर जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी जैसी कोई बात नहीं होगी । यही श्री चैतन्य महाप्रभु और खुद कृष्ण का संस्करण है । केवल कृष्ण को समझने के द्वारा, तुम शुद्ध हो जाते हो और तुम जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के संक्रमण से बच जाते हो । इसलिए आम लोगों को समझाने की कोशिश करो, तत्वज्ञानी, धार्मिकवादी | हमारी ऐसी कोई सोच नहीं, सांप्रदायिक दृष्टि | कोई भी इस आंदोलन में शामिल हो सकता हैऔर खुद शुद्ध हो जाता है । जन्म सार्थक करि कर पर-उपकार ([[Vanisource:CC Adi 9.41|चैतन्य चरितामृत अादि ९.४१]]) | तो मैं बहुत ज्यादा खुश हूँ । तुमने समाज को पहले से ही सेवा दी है । अब तुम सन्यास लो और प्रचार करो ताकि लोगों को लाभ हो ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद ।
 
भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।  
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Latest revision as of 07:34, 20 October 2018



Excerpt from Sannyasa Initiation of Viraha Prakasa Swami -- Mayapur, February 5, 1976

श्री चैतन्य महाप्रभु इस जगह के निवासी थे जहाँ तुम सन्यास ले रहे हो । तो उनके सन्यास लेने का उद्देश्य क्या था? वे बहुत ही सम्मानित ब्राह्मण थे, निमाय पंडित । यह भूमि, नवद्वीप, अनादी काल से उच्च शिक्षित ब्राह्मण का स्थान है । तो श्री चैतन्य महाप्रभु एक बहुत सम्मानजनक ब्राह्मण परिवार के थे, जगन्नाथ मिश्र के बेटे; उनके दादा, नीलांबर चक्रवर्ती । बहुत सम्मानीय, सम्मानजनक व्यक्ति । उन्होंने उस परिवार में जन्म लिया । निजी तौर पर वे बहुत सुंदर थे; इसलिए उनका एक और नाम गौरसुंदर है । और वे बहुत ही विद्वान पंडित थे; इसलिए उनका एक और नाम निमाइ पंडित है । तो, और उनके पारिवारिक जीवन में बहुत अच्छी, सुंदर युवा पत्नी थी, विष्णुप्रिया और बहुत स्नेही माँ, और वे बहुत प्रभावशाली थे । तुम जानते हो । एक दिन में उन्होंने काजी के आदेश के खिलाफ विरोध करने के लिए एक लाख अनुयायीयों को एकत्र किया था । तो इस तरह से उनकी सामाजिक स्थिति बहुत अनुकूल थी । निजी स्थिति बहुत अनुकूल थी । फिर भी, उन्होंने सन्यास लिया, घर त्याग दिया । क्यों? दयितये: दुनिया की पतित आत्माओं पर कृपा करने के लिए ।

तो उन्होंने विरासत छोड़ी, कि जिस किसी नें भी भारत में जन्म लिया है,

भारत-भूमिते मनुष्य-जन्म हैल यार
जन्म सार्थक करि कर पर उपकार
(चैतन्य चरितामृत अादि ९.४१)

तो उन्होंने व्यक्तिगत रूप से प्रदर्शित किया की पर-उपकार कैसे करना चाहिए, दूसरों के लिए, पतीत आत्माओं के प्रति, कल्याण । तो इस सन्यास का अर्थ है श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश का पालन करना की,

अामार अाज्ञाय गुरु हया तार एइ देश
यारे देख तारे कह कृष्ण उपदेश
(चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८)

इतना ही नहीं... हम यह स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं कि न केवल भारतीयों की जिम्मेदारी है, लेकिन श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुसार, कोई भी - पृथ्विते अाछे यत नगरादि ग्राम (चैतन्य भागवत अंत्य खंड ४.१२६) - उन्हें यह कल्याणकारी कार्य को करना चाहिए । और मैं अापका बहुत अाभारी हूँ, आप अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ का भी, की अापने बहुत गंभीरता से इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को लिया है । और श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से तुम सन्यास ले रहे हो, आप में से कुछ । उसे बहुत अच्छी तरह से निभाअाो और शहर से शहर, गांव से गांव, नगर से नगर जाअो, पूरी दुनिया में और इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को फैलाअो ताकि हर कोई खुश हो जाएगा । लोग बहुत ज्यादा पीड़ित हैं । वे, क्योंकि वे मूढ हैं, दुष्ट, वे जानते नहीं कि मनुष्य जन्म को समायोजित कैसे करें । यही हर जगह भागवत-धर्म है ।

तो मनुष्य जन्म एक कुत्ता, सूअर बनने के लिए नहीं है । तुम्हे एक पूर्ण इंसान बन जाना चाहिए । शुद्धयेत सत्व । अपने अस्तित्व को शुद्ध करो । क्यों तुम जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के अधीन हो ? क्योंकि हम अशुद्ध हैं । अब, अगर हम अपने अस्तित्व को शुद्ध करते हैं, तो फिर जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी जैसी कोई बात नहीं होगी । यही श्री चैतन्य महाप्रभु और खुद कृष्ण का संस्करण है । केवल कृष्ण को समझने के द्वारा, तुम शुद्ध हो जाते हो और तुम जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के संक्रमण से बच जाते हो । इसलिए आम लोगों को समझाने की कोशिश करो, तत्वज्ञानी, धार्मिकवादी | हमारी ऐसी कोई सोच नहीं, सांप्रदायिक दृष्टि | कोई भी इस आंदोलन में शामिल हो सकता हैऔर खुद शुद्ध हो जाता है । जन्म सार्थक करि कर पर-उपकार (चैतन्य चरितामृत अादि ९.४१) | तो मैं बहुत ज्यादा खुश हूँ । तुमने समाज को पहले से ही सेवा दी है । अब तुम सन्यास लो और प्रचार करो ताकि लोगों को लाभ हो ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।