HI/Prabhupada 0773 - हमारा ध्यान हमेशा होना चाहिए, कैसे हम अपने आध्यात्मिक जीवन को क्रियान्वित कर रहे हैं: Difference between revisions

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प्रद्युम्न: पेज १५३ तात्पर्य में, दूसरे पैराग्राफ में : "ऊंट एक एसा पशु है जो कांटों को खाने में आनंद लेता है । इसी तरह, वह मनुष्य जो पारिवारिक जीवन का आनंद लेना चाहता है, या सांसारिक जीवन का तथाकथित आनंद, उसकी तुलना ऊंट के साथ की जाती है । भौतिकवादी जीवन कांटों से भरा है, तो हमें वैदिक नियमों की निर्धारित विधि के तहत ही रहना चाहिए केवल एक बुरे सौदा का सबसे अच्छा उपयोग करने के लिए । "  
प्रद्युम्न: पृष्ठ १५३ तात्पर्य में, दूसरे परिच्छेद में: "ऊंट एक एसा पशु है जो कांटों को खाने में आनंद लेता है । इसी तरह, वह मनुष्य जो पारिवारिक जीवन का आनंद लेना चाहता है, या सांसारिक जीवन का तथाकथित आनंद, उसकी तुलना ऊंट के साथ की जाती है । भौतिकवादी जीवन कांटों से भरा है, तो हमें वैदिक नियमों की निर्धारित विधि के तहत ही रहना चाहिए, केवल एक बुरे सौदा का सबसे अच्छा उपयोग करने के लिए ।" प्रभुपाद: जैसे अगर तुम कांटों से गुजर रहे हो, तुम्हे बहुत सावधान रहना चाहिए । अन्यथा ये कांटें तुम्हारे वस्त्र में फँस जाऍगे, और तुम्हे तकलीफ़ होगी ।


प्रभुपाद: जैसे अगर तुम कांटों से गुजर रहे हो, तुम्हे बहुत सावधान रहना चाहिए । अन्यथा ये कांटें तुम्हारे वस्त्र में फँस जाऍगे, और तुम्हे तकलीफ़ होगी । यह वेदों में कहा गया है, क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया ( कथा उपनिषद १।३।१४) । जैसे हम उसतरे से दाढ़ी बनाते हैं । उस्तरा बहुत तेज है । तो अगर हम ध्यान से उस्तरा संभालते हैं हम अपने गाल को बहुत शुद्ध करते हैं, यह काम खत्म । लेकिन थोड़ी सी असावधानी , तुरंत कट जाता है और रक्त होगा । थोड़ी सी असावधानी । यही उदाहरण दिया जाता है । क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गम पथस तत कवयो वदन्ति । ( मोक्ष का मार्ग बहुत मुश्किल है। जैसे हम घर वापस, भगवान के धाम जाने की कोशिश कर रहे हैं, श्री कृष्ण । पथ बहुत मुश्किल है । क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गम । दुर्गम का मतलब है बहुत मुश्किल है गुज़रना । लेकिन थोड़ा सी सावधानी तुम्हे बचा सकती है । थोड़ी सी सावधानी, कि "मैं एक बहुत ही खतरनाक रास्ते से गुजर रहा हूँ, इसलिए मुझे बहुत सावधान रहना चाहिए । " इसलिए हमारा ध्यान हमेशा होना चाहिए, कैसे हम अपने आध्यात्मिक जीवन को क्रियान्वित कर रहे हैं । यह बहुत सरल है । हम सख़ती से नियामक सिद्धांतों का पालन करते हैं और मंत्र सोलह माला कम से कम जपते हैं । यह हमें बचाएगा । लेकिन अगर हम इन सिद्धांतों के प्रति असावधानी करते हैं, तो कांटों से चुभे जाने की संभावना है । इतने सारे कांटे हैं हर जगह । या फिर वही उदाहरण । क्षुरस्य धारा । तुम दाढ़ी बनाते हैं, अपने चहरे को बहुत शुद्ध करते हो लेकिन थोड़ा असावधानी, तुरंत रक्त बहता है । हमें बहुत सावधान रहना चाहिए । अागे पढो ।  
यह वेदों में कहा गया है, क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया (कठ उपनिषद १.३.१४) । जैसे हम उस्तरे से दाढ़ी बनाते हैं । उस्तरा बहुत तेज है । तो अगर हम ध्यान से उस्तरा संभालते हैं, हम अपने गाल को बहुत शुद्ध करते हैं, यह काम खत्म । लेकिन थोड़ी सी असावधानी, तुरंत कट जाता है और रक्त बहेगा । थोड़ी सी असावधानी । यही उदाहरण दिया जाता है । क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गम पथस तत कवयो वदन्ति । मोक्ष का मार्ग बहुत मुश्किल है । स जैसे हम घर वापस, भगवद धाम, कृष्ण के पास, जाने की कोशिश कर रहे हैं । पथ बहुत मुश्किल है । क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गम । दुर्गम का मतलब है पार करना बहुत मुश्किल है । लेकिन थोड़ा सी सावधानी तुम्हे बचा सकती है ।  


प्रद्युम्न: "भौतिक दुनिया में जीवन बनाए रखा जाता है अपना ही खून चूस कर । केंद्र बिंदु आकर्षण का भौतिक भोग में है सेक्स जीवन सेक्स जीवन का आनंद लेने का मतलब है अपना खून चूसना और बहुत कुछ इस संबंध में विस्तार से कहने के लिए नहीं है। ऊंट भी कांटेदार टहनियाँ को चबाते हुए अपना ही खून चूसता है ऊंट जो कांटे खाता है ऊंट की जीभ काट देते हैं, और इसलिए रक्त ऊंट के मुंह के भीतर अाता है ताजा खून कांटों के साथ मिलकर मूर्ख ऊंट के लिए एक स्वाद पैदा करते हैं, और इसलिए वह झूठी खुशी के साथ कांटे-खाने के कार्य का आनंद लेता है इसी तरह, महान व्यापारी, उद्योगपतियों जो बहुत काम करते हैं, अलग अलग तरीकों से और संदिग्ध तरीकों से पैसा कमाने के लिए, अपने ही खून के साथ मिश्रित कर्म के कांटेदार परिणाम खाते हैं इसलिए भागवतम ने उन बीमार व्यक्तियों को ऊंटों के साथ स्थित किया है। "
थोड़ी सी सावधानी, की "मैं एक बहुत ही खतरनाक रास्ते से गुजर रहा हूँ, इसलिए मुझे बहुत सावधान रहना चाहिए ।" इसलिए हमारा ध्यान हमेशा होना चाहिए, कैसे हम अपने आध्यात्मिक जीवन को क्रियान्वित कर रहे हैं यह बहुत सरल है । हम सख़ती से नियामक सिद्धांतों का पालन करते हैं और सोलह माला कम से कम जपते हैं यह हमें बचाएगा लेकिन अगर हम इन सिद्धांतों के प्रति असावधानी करते हैं, तो कांटों से चुभे जाने की संभावना है । इतने सारे कांटे हैं हर जगह । या फिर वही उदाहरण । क्षुरस्य धारा तुम दाढ़ी बनाते हो, अपने चहरे को बहुत शुद्ध करते हो, लेकिन थोड़ी असावधानी, तुरंत रक्त बहता है । हमें बहुत सावधान रहना चाहिए । अागे पढो ।  


प्रभुपाद: वे ख़तरा मोल लेते हैं, इतना ख़तरा, पैसा कमाने के लिए, अौर इन्द्रिय संतुष्टि । चोर, चोर, वे अपने जीवन को ख़तरे में ड़ालते हैं । वे चोरी करने के लिए जाते हैं, एक आदमी के घर और यह सब जानते हैं कि जैसे ही वह पकड़ा जाएगा, "वह आ गया है," मालिक, घर का मालिक, तुरंत उसे गोली मार सकता है । वह ख़तरा लेता है । तो सिर्फ चोर नहीं, हम में से हर एक । यह कहा जाता है पदम पदम यद विपदाम ([[Vanisource:SB 10.14.58|श्री भ १०।१४।५८]]) । हर कदम पर खतरा है । हर कदम पर। हम बहुत तेजी से हमारे मोटरकार में जाते हैं, सत्तर मील, एक सौ मील की गति, लेकिन किसी भी क्षण बड़ा खतरा हो सकता है । तो वास्तव में भौतिक जीवन में कोई शांति नहीं हो सकती । यह संभव नहीं है । समाश्रिता ये पद पल्लव प्लवम ([[Vanisource:SB 10.14.58|श्री भ १०।१४।५८]]) । हमें भगवान के चरण कमलों का आश्रय लेना चाहिए । अगर हम तुम खुश होना चाहते हो, अगर हम शांतिपूर्ण होना चाहता हो, तो यह एक ही रास्ता है ।
प्रद्युम्न: "भौतिक दुनिया में जीवन बनाए रखा जाता है अपना ही खून चूस कर । केंद्र बिंदु आकर्षण का भौतिक भोग में है यौन जीवन । यौन जीवन का आनंद लेने का मतलब है अपना खून चूसना और इस संबंध में बहुत कुछ विस्तार से कहने के लिए नहीं है । ऊंट भी कांटेदार टहनियाँ को चबाते हुए अपना ही खून चूसता है । ऊंट जो कांटे खाता है ऊंट की जीभ काट देते हैं, और इसलिए रक्त ऊंट के मुंह के भीतर अाता है । ताजा खून कांटों के साथ मिलकर मूर्ख ऊंट के लिए एक स्वाद पैदा करते हैं, और इसलिए वह झूठी खुशी के साथ कांटे-खाने के कार्य का आनंद लेता है । इसी तरह, महान व्यापारी, उद्योगपति जो बहुत काम करते हैं, अलग अलग तरीकों से और संदिग्ध तरीकों से पैसा कमाने के लिए, अपने ही खून के साथ मिश्रित कर्म के कांटेदार परिणाम खाते हैं । इसलिए भागवतम ने उन बीमार व्यक्तियों को ऊंटों के साथ स्थित किया है ।"
 
प्रभुपाद: वे ख़तरा मोल लेते हैं, इतना ख़तरा, पैसा कमाने के लिए, अौर इन्द्रिय संतुष्टि के लिए । चोर, वे अपने जीवन को ख़तरे में ड़ालते हैं । वे चोरी करने के लिए जाते हैं, एक आदमी के घर, और यह सब जानते हैं कि जैसे ही वह पकड़ा जाएगा, "वह आ गया है," मालिक, घर का मालिक, तुरंत उसे गोली मार सकता है । वह ख़तरा लेता है । तो सिर्फ चोर नहीं, हम में से हर एक । यह कहा जाता है पदम पदम यद विपदाम ([[Vanisource:SB 10.14.58|श्रीमद भागवतम १०.१४.५८]]) । हर कदम पर खतरा है । हर कदम पर । हम बहुत तेजी से हमारी मोटरकार में जाते हैं, सत्तर मील, एक सौ मील की गति से, लेकिन किसी भी क्षण बड़ा खतरा हो सकता है । तो वास्तव में भौतिक जीवन में कोई शांति नहीं हो सकती । यह संभव नहीं है । समाश्रिता ये पद पल्लव प्लवम ([[Vanisource:SB 10.14.58|श्रीमद भागवतम १०.१४.५८]]) । हमें भगवान के चरण कमलों का आश्रय लेना चाहिए । अगर हम खुश होना चाहते है, अगर हम शांतिपूर्ण होना चाहता है, तो यह एक ही रास्ता है ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 2.3.19 -- Los Angeles, June 15, 1972

प्रद्युम्न: पृष्ठ १५३ तात्पर्य में, दूसरे परिच्छेद में: "ऊंट एक एसा पशु है जो कांटों को खाने में आनंद लेता है । इसी तरह, वह मनुष्य जो पारिवारिक जीवन का आनंद लेना चाहता है, या सांसारिक जीवन का तथाकथित आनंद, उसकी तुलना ऊंट के साथ की जाती है । भौतिकवादी जीवन कांटों से भरा है, तो हमें वैदिक नियमों की निर्धारित विधि के तहत ही रहना चाहिए, केवल एक बुरे सौदा का सबसे अच्छा उपयोग करने के लिए ।" प्रभुपाद: जैसे अगर तुम कांटों से गुजर रहे हो, तुम्हे बहुत सावधान रहना चाहिए । अन्यथा ये कांटें तुम्हारे वस्त्र में फँस जाऍगे, और तुम्हे तकलीफ़ होगी ।

यह वेदों में कहा गया है, क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया (कठ उपनिषद १.३.१४) । जैसे हम उस्तरे से दाढ़ी बनाते हैं । उस्तरा बहुत तेज है । तो अगर हम ध्यान से उस्तरा संभालते हैं, हम अपने गाल को बहुत शुद्ध करते हैं, यह काम खत्म । लेकिन थोड़ी सी असावधानी, तुरंत कट जाता है और रक्त बहेगा । थोड़ी सी असावधानी । यही उदाहरण दिया जाता है । क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गम पथस तत कवयो वदन्ति । मोक्ष का मार्ग बहुत मुश्किल है । स जैसे हम घर वापस, भगवद धाम, कृष्ण के पास, जाने की कोशिश कर रहे हैं । पथ बहुत मुश्किल है । क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गम । दुर्गम का मतलब है पार करना बहुत मुश्किल है । लेकिन थोड़ा सी सावधानी तुम्हे बचा सकती है ।

थोड़ी सी सावधानी, की "मैं एक बहुत ही खतरनाक रास्ते से गुजर रहा हूँ, इसलिए मुझे बहुत सावधान रहना चाहिए ।" इसलिए हमारा ध्यान हमेशा होना चाहिए, कैसे हम अपने आध्यात्मिक जीवन को क्रियान्वित कर रहे हैं । यह बहुत सरल है । हम सख़ती से नियामक सिद्धांतों का पालन करते हैं और सोलह माला कम से कम जपते हैं । यह हमें बचाएगा । लेकिन अगर हम इन सिद्धांतों के प्रति असावधानी करते हैं, तो कांटों से चुभे जाने की संभावना है । इतने सारे कांटे हैं हर जगह । या फिर वही उदाहरण । क्षुरस्य धारा । तुम दाढ़ी बनाते हो, अपने चहरे को बहुत शुद्ध करते हो, लेकिन थोड़ी असावधानी, तुरंत रक्त बहता है । हमें बहुत सावधान रहना चाहिए । अागे पढो ।

प्रद्युम्न: "भौतिक दुनिया में जीवन बनाए रखा जाता है अपना ही खून चूस कर । केंद्र बिंदु आकर्षण का भौतिक भोग में है यौन जीवन । यौन जीवन का आनंद लेने का मतलब है अपना खून चूसना और इस संबंध में बहुत कुछ विस्तार से कहने के लिए नहीं है । ऊंट भी कांटेदार टहनियाँ को चबाते हुए अपना ही खून चूसता है । ऊंट जो कांटे खाता है ऊंट की जीभ काट देते हैं, और इसलिए रक्त ऊंट के मुंह के भीतर अाता है । ताजा खून कांटों के साथ मिलकर मूर्ख ऊंट के लिए एक स्वाद पैदा करते हैं, और इसलिए वह झूठी खुशी के साथ कांटे-खाने के कार्य का आनंद लेता है । इसी तरह, महान व्यापारी, उद्योगपति जो बहुत काम करते हैं, अलग अलग तरीकों से और संदिग्ध तरीकों से पैसा कमाने के लिए, अपने ही खून के साथ मिश्रित कर्म के कांटेदार परिणाम खाते हैं । इसलिए भागवतम ने उन बीमार व्यक्तियों को ऊंटों के साथ स्थित किया है ।"

प्रभुपाद: वे ख़तरा मोल लेते हैं, इतना ख़तरा, पैसा कमाने के लिए, अौर इन्द्रिय संतुष्टि के लिए । चोर, वे अपने जीवन को ख़तरे में ड़ालते हैं । वे चोरी करने के लिए जाते हैं, एक आदमी के घर, और यह सब जानते हैं कि जैसे ही वह पकड़ा जाएगा, "वह आ गया है," मालिक, घर का मालिक, तुरंत उसे गोली मार सकता है । वह ख़तरा लेता है । तो सिर्फ चोर नहीं, हम में से हर एक । यह कहा जाता है पदम पदम यद विपदाम (श्रीमद भागवतम १०.१४.५८) । हर कदम पर खतरा है । हर कदम पर । हम बहुत तेजी से हमारी मोटरकार में जाते हैं, सत्तर मील, एक सौ मील की गति से, लेकिन किसी भी क्षण बड़ा खतरा हो सकता है । तो वास्तव में भौतिक जीवन में कोई शांति नहीं हो सकती । यह संभव नहीं है । समाश्रिता ये पद पल्लव प्लवम (श्रीमद भागवतम १०.१४.५८) । हमें भगवान के चरण कमलों का आश्रय लेना चाहिए । अगर हम खुश होना चाहते है, अगर हम शांतिपूर्ण होना चाहता है, तो यह एक ही रास्ता है ।