Category:HI-Quotes - 1972
Pages in category "HI-Quotes - 1972"
The following 103 pages are in this category, out of 103 total.
H
- HI/Prabhupada 0009 - चोर जो भक्त बना
- HI/Prabhupada 0048 - आर्यन सभ्यता
- HI/Prabhupada 0050 - उनको पता नहीं है की अगला जीवन क्या है
- HI/Prabhupada 0055 - श्रवण द्वारा कृष्ण को छूना
- HI/Prabhupada 0084 - केवल कृष्ण का भक्त बनो
- HI/Prabhupada 0088 - हमारे साथ जो छात्र शामिल हुए हैं, वे श्रवणिक अभिग्रहण करते हैं
- HI/Prabhupada 0098 - कृष्ण की सुंदरता से आकर्षित हो
- HI/Prabhupada 0105 - यह विज्ञान, परम्परा द्वारा समझा जाता है
- HI/Prabhupada 0106 - लिफ्ट सीधे कृष्ण भक्ति की ओर ले लो
- HI/Prabhupada 0114 - एक सज्जन व्यक्ति जिसका नाम कृष्ण है, वह हर किसी को नियंत्रित कर रहे है
- HI/Prabhupada 0127 - एक महानसंस्था खो गई सनकी तरीके की वजह से
- HI/Prabhupada 0171 - भूल जाओ अच्छी सरकार लाखों वर्षों के लिए, जब तक...
- HI/Prabhupada 0182 - उसी धुली हुई हालत में अपने आप को रखो
- HI/Prabhupada 0220 - हर जीव भगवान का अभिन्न अंग है
- HI/Prabhupada 0226 - भगवान के नाम का प्रचार, महिमा, गतिविधियॉ, सुंदरता, प्यार
- HI/Prabhupada 0227 - क्यों मर रहे हो। मैं मरना नहीं चाहता
- HI/Prabhupada 0326 - भगवान सर्वोच्च मालिक हैं, भगवान परम मित्र है
- HI/Prabhupada 0334 - जीवन की असली जरूरत आत्मा को सुख प्रदान करना है
- HI/Prabhupada 0335 - प्रथम श्रेणी के योगी बननें के लिए शिक्षित
- HI/Prabhupada 0354 - एक अंधा आदमी अन्य अन्धे अादमियों को मार्ग दिखा रहा है
- HI/Prabhupada 0377 - भजहू रे मन का तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0392 - नारद मुनि बजाय वीना तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0404 - कृष्ण भावनामृत की इस तलवार को लो, बस विश्वास के साथ तुम सुनने की कोशिश करो
- HI/Prabhupada 0423 - मैं तुम्हारे लिए बहुत कठिन परिश्रम कर रहा हूँ, लेकिन तुम इसका लाभ नहीं लेते हो
- HI/Prabhupada 0424 - इस वैदिक संस्कृति का पूरा फायदा उठाना
- HI/Prabhupada 0426 - जो विद्वान व्यक्ति है, वह न तो जीवित के लिए न ही मरे हुए व्यक्ति के लिए विलाप करता है
- HI/Prabhupada 0427 - आत्मा, स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर से अलग हैं
- HI/Prabhupada 0428 - इंसान का विशेषाधिकार है यह समझना कि मैं क्या हूँ
- HI/Prabhupada 0429 - कृष्ण भगवान का नाम है । कृष्ण का मतलब है पूर्ण आकर्षक
- HI/Prabhupada 0430 - चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि भगवान का हर नाम भगवान की तरह ही शक्तिशाली है
- HI/Prabhupada 0431 - भगवान वास्तव में सभी जीव के सही दोस्त हैं
- HI/Prabhupada 0432 - जब तक तुम पढ़ रहे हो, सूरज तुम्हारा जीवन लेने में असमर्थ है
- HI/Prabhupada 0497 - हर कोई न मरने की कोशिश कर रहा है
- HI/Prabhupada 0498 - जैसे ही मैं इस शरीर को त्याग देता हूँ, मेरे सारे गगनचुंबी इमारत, व्यापार, कारखाने खतम
- HI/Prabhupada 0499 - वैष्णव बहुत दयालु है, दयालु, क्योंकि वह दूसरों के लिए महसूस करता है
- HI/Prabhupada 0500 - तुम भौतिक दुनिया में स्थायी रूप से खुश नहीं हो सकते हो
- HI/Prabhupada 0501 - हम चिंता से मुक्त नहीं हो सकते हैं जब तक हम कृष्ण भावनामृत को नहीं अपनाते हैं
- HI/Prabhupada 0502 - बकवास धारणाओं का त्याग करो, कृष्ण भावनामृत की उदारता को लो
- HI/Prabhupada 0503 - गुरु स्वीकारना मतलब निरपेक्ष सत्य के बारे में उनसे पूछताछ करना
- HI/Prabhupada 0584 - हम च्युत हो जाते हैं, नीचे गिर जाते हैं । लेकिन कृष्ण अच्युत हैं
- HI/Prabhupada 0585 - एक वैष्णव दूसरों को दुखी देखकर दुखी होता है
- HI/Prabhupada 0586 - वास्तव में शरीर की यह स्वीकृति का मतलब नहीं है कि मैं मरता हूँ
- HI/Prabhupada 0587 - संभव नहीं है । तो हम में से हर एक आध्यात्मिक भूख में है
- HI/Prabhupada 0588 - जो हम चाहते हैं कृष्ण तुम्हें दे देंगे
- HI/Prabhupada 0589 - हम इन भौतिक किस्मों से निराश हो रहे हैं
- HI/Prabhupada 0590 - इस शुद्धि का मतलब है कि हमें पता होना चाहिए कि, 'मैं यह शरीर नहीं हूँ । मैं आत्मा हूं'
- HI/Prabhupada 0591 - मेरा काम इस भौतिक चंगुल से बाहर निकलना है
- HI/Prabhupada 0592 - आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए
- HI/Prabhupada 0593 - जैसे ही तुम कृष्णभावनामृत में आते हो, तुम प्रसन्न हो जाते हो
- HI/Prabhupada 0594 - आत्मा को हमारे भौतिक उपकरणों से मापना असंभव है
- HI/Prabhupada 0595 - अगर आप विविधता चाहते हैं तो आपको एक ग्रह का आश्रय लेना होगा
- HI/Prabhupada 0596 -आत्मा को टुकड़ों में काटा नहीं जा सकता है
- HI/Prabhupada 0597 - हम इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं जीवन में कुछ अानन्द प्राप्त करने के लिए
- HI/Prabhupada 0598 - हम नहीं समझ सकते हैं कि वे कितने महान हैं ! यह हमारी मूर्खता है
- HI/Prabhupada 0599 - कृष्ण भावनामृत इतना आसान नहीं है । जब तक आप अपने आप को आत्मसमर्पित न करे
- HI/Prabhupada 0600 - हम आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार नहीं हैं । यह हमारा भौतिक रोग है
- HI/Prabhupada 0601 - चैत्य गुरु का मतलब है जो भीतर से विवेक और ज्ञान देता है
- HI/Prabhupada 0607 - हमारे समाज में, तुम सभी गुरुभाई, गुरुबहिन हो
- HI/Prabhupada 0608 - भक्ति सेवा, हमें उत्साह के साथ, धैर्य के साथ निष्पादित करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0609 - तुम कई हो जो हरे कृष्ण का जाप कर रहे हो । यही मेरी सफलता है
- HI/Prabhupada 0623 - आत्मा, एक शरीर से दूसरे में देहांतरित होता है
- HI/Prabhupada 0624 - भगवान भी शाश्वत हैं, और हम भी शाश्वत हैं
- HI/Prabhupada 0625 - जीवन की आवश्यकताऍ परम शाश्वत, परमेश्वर द्वारा आपूर्ति की जा रही है
- HI/Prabhupada 0626 - अगर तुम तथ्यात्मक बातें जानना चाहते हो, तो तुम्हे आचार्य के पास जाना होगा
- HI/Prabhupada 0627 - ताज़गी के बिना, हम इस उदात्त विषय वस्तु को नहीं समझ सकते हैं
- HI/Prabhupada 0628 - हम ऐसी बातों को स्वीकार नहीं करते हैं, "शायद ।" नहीं । हम जो तथ्य है वह स्वीकार करते हैं
- HI/Prabhupada 0629 - हम अलग अलग वस्त्र में भगवान के विभिन्न पुत्र हैं
- HI/Prabhupada 0764 - मजदूरों को लगा कि, 'यीशु मसीहा मजदूरों में से कोई एक होगा'
- HI/Prabhupada 0773 - हमारा ध्यान हमेशा होना चाहिए, कैसे हम अपने आध्यात्मिक जीवन को क्रियान्वित कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0777 - जितना अधिक तुम अपनी चेतना को विकसित करते हो, उतना अधिक तुम स्वतंत्रता के प्रेमी बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0792 - कृष्ण का हर किसी के मित्र हुए बिना, कोई एक पल भी रह नहीं सकता है
- HI/Prabhupada 0795 - आधुनिक दुनिया वे बहुत सक्रिय हैं, लेकिन वे मूर्खता वश सक्रिय हैं, रजस तमस में
- HI/Prabhupada 0826 - हमारा आंदोलन है कि उस कड़ी मेहनत को कृष्ण के काम में लगाना
- HI/Prabhupada 0827 - आचार्य का कर्तव्य है शास्त्र की आज्ञा को बताना
- HI/Prabhupada 0829 - चार दीवार तुम्हे सुनेंगे । यह पर्याप्त है। निराश मत होना । जप करते रहो
- HI/Prabhupada 0830 - यह वैष्णव तत्त्वज्ञान है । हम दास बनने की कोशिश कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0831 - हम असाधु मार्ग का अनुसरण नहीं कर सकते । हमें साधु मार्ग का अनुसरण करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0945 - भागवत-धर्म का मतलब है भक्त और भगवान के बीच का संबंध
- HI/Prabhupada 0946 - हम इस तथाकथित भ्रामक सुख के लिए एक शरीर से दूसरे में प्रवेश करते हैं
- HI/Prabhupada 0947 - हमें बहुत स्वतंत्रता मिली है, लेकिन अभी हम इस शरीर से बद्ध हैं
- HI/Prabhupada 0948 - यह युग कलि कहलता है, यह बहुत अच्छा समय नहीं है । केवल असहमति और लड़ाई
- HI/Prabhupada 0949 - हम शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन हम हमारे दांतों का अध्ययन नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0950 - हमारा पड़ोसी भूखा मर सकता है, लेकिन हमें इसकी परवाह नहीं है
- HI/Prabhupada 0951 - आम के पेड़ के शीर्ष पर एक बहुत परिपक्व फल है
- HI/Prabhupada 0963 - केवल कृष्ण का एक भक्त जो उनसे घनिष्टता के संबंध रखता है भगवद गीता को समझ सकता है
- HI/Prabhupada 0964 - जब कृष्ण इस ग्रह पर विद्यमान थे, वे गोलोक वृन्दावन में अनुपस्थित थे । नहीं
- HI/Prabhupada 0965 - हमें उस व्यक्ति की शरण लेना है जिसका जीवन कृष्ण को समर्पित है
- HI/Prabhupada 0966 - हम भगवान के दर्शन कर सकते हैं जब आंखें रंगीं हो भक्ति के काजल से
- HI/Prabhupada 0967 - कृष्ण को, भगवान को, समझने के लिए हमें अपनी इन्द्रियों को शुद्ध करना होगा
- HI/Prabhupada 0980 - हम भौतिक समृद्धि से सुखी नहीं हो सकते, यह एक तथ्य है
- HI/Prabhupada 0981 - पहेले हर ब्राह्मण ये दो विज्ञान सीखते थे, आयुर्वेद और ज्योतिर वेद
- HI/Prabhupada 0982 - जैसे ही हमें एक गाडी मिलती है, कितनी भी खराब क्यों न हो, हमें लगता है कि यह बहुत अच्छा है
- HI/Prabhupada 0983 - भौतिकवादी व्यक्ति, वे अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0984 - हिंदुओं का एक भगवान है और ईसाइयों का दूसरा भगवान है । नहीं । भगवान दो नहीं हो सकते हैं
- HI/Prabhupada 0985 - मनुष्य जीवन विशेष रूप से परम सत्य के बारे में जिज्ञासा करने के लिए है
- HI/Prabhupada 0986 - कोई भी भगवान से ज्यादा बुद्धिमान नहीं हो सकता
- HI/Prabhupada 0987 - यह मत सोचो कि भगवद भावनामृत में तुम भूखे रहोगे । तुम कभी भूखे नहीं रहोगे
- HI/Prabhupada 1015 - जब तक पदार्थ के पीछे अात्मा नहीं होती है, कुछ भी निर्माण नहीं किया जा सकता है
- HI/Prabhupada 1016 - भागवतम कहता है कि हर वस्तु का मूल स्रोत संवेदनशील है । सचेत
- HI/Prabhupada 1017 - ब्रह्मा मूल सृजनकर्ता नहीं हैं । मूल सृजनकर्ता कृष्ण हैं
- HI/Prabhupada 1034 - मृत्यु का अर्थ है सात महीनों की नींद । बस । यही मृत्यु है
- HI/Prabhupada 1035 - हरे कृष्ण जप द्वारा अपने अस्तित्व की वास्तविक्ता को समझो
- HI/Prabhupada 1036 - सात ग्रह प्रणालियॉ हमारे उपर हैं और सात ग्रह प्रणालियॉ नीचे भी हैं