HI/Prabhupada 0842 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन, निवृत्ति मार्ग का प्रशिक्षण है, बुनियादी सिद्धांत, कई मनाई हैं: Difference between revisions

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यह अासुरिक जीवन की शुरुआत है, प्रवृत्ति अौर निवृत्ति । प्रवृत्ति मतलब, क्या कहते हैं, प्रोत्साहन जो..... वहाँ चीनी का एक अनाज है, और चींटी को पता है कि चीनी का एक दाना है। वह इसके पीछे भाग रहा है। यही प्रवृत्ति है। और निवृत्ति का मतलब है, "मैंने इस तरह से अपनी जिंदगी बिताई है, लेकिन यह वास्तव में मेरी जीवन की प्रगति नहीं है। मुझे इस तरह का जीवन बंद करना चाहिए। मुझे आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए । " यही निवृत्ति-मार्ग है। दो तरीके हैं प्रवृत्ति अौर निवृत्ति । प्रवृत्ति मतलब हम अंधेरे क्षेत्र में जा रहे हैं, घोर अंधेरा । अदांत गोभिर विशताम तमिश्रम ([[Vanisource:SB 7.5.30|श्री भ ७।५।३०]]) क्योंकि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं, अदांत ... अदांत मतलब अनियंत्रित, अौर गो, मतलब इंद्रियॉ । अदांत गोभिर विषताम तमिश्रम । जैसे हम जीवन की किस्मों को देखते हैं, तो नरक में भी जीवन है, तमिश्र । तो या तो तुम जीवन की नरकीय स्थिति में जाअो या तुम मुक्ति के मार्ग पर, दोनों तरीके तुम्हारे लिए खुले हैं । तो अगर तुम जीवन की नरकीय स्थिति में जाअो, यह प्रवृत्ति-मार्ग कहा जाता है अौर अगर तुम मुक्ति के पथ पर जाअो, तो यह निवृत्ति-मार्ग है। हमारा यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन, निवृत्ति-मार्ग का प्रशिक्षण है बुनियादी सिद्धांत, कई मनाई हैं । "नहीं" मतलब निवृत्ति . कोई अवैध सेक्स, कोई मांसाहार, कोई जुआ, कोई नशा नहीं । तो यह नहीं, "नहीं" पथ । वे नहीं जानते हैं । जब हम इतने सारे नहीं कहते हैं, वे समझते हैं कि यह दिमाग को प्रभावित करना है । प्रभावित नहीं । यह वास्तविक है । अगर तुम अपनी आध्यात्मिक जीवन का विकास चाहते हो, तो तुम्हे इतने सारे उपद्रव को रोकना होगा । यही निवृत्ति-मार्ग है। असुर, वे नहीं जानते। क्योंकि वे नहीं जानते, जब निवृत्ति-मार्ग, "नहीं," का पथ "नहीं" की सिफारिश की जाती है, वे नाराज हो जाते हैं। वे नाराज हो जाते हैं।  
यह अासुरिक जीवन की शुरुआत है, प्रवृत्ति अौर निवृत्ति । प्रवृत्ति मतलब, क्या कहते हैं, प्रोत्साहन जो... वहाँ चीनी का एक दाना है, और चींटी को पता है कि चीनी का एक दाना है । वह इसके पीछे भाग रही है । यही प्रवृत्ति है । और निवृत्ति का मतलब है, "मैंने इस तरह से अपनी जिंदगी बिताई है, लेकिन यह वास्तव में मेरी जीवन की प्रगति नहीं है । मुझे इस तरह का जीवन बंद करना चाहिए । मुझे आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए ।" यही निवृत्ति-मार्ग है । दो तरीके हैं प्रवृत्ति अौर निवृत्ति । प्रवृत्ति मतलब हम अंधेरे क्षेत्र में जा रहे हैं, घोर अंधेरा । अदांत गोभिर विशताम तमिश्रम ([[Vanisource:SB 7.5.30|श्रीमद भागवतम ७.५.३०]]) | क्योंकि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं, अदांत... अदांत मतलब अनियंत्रित, अौर गो, मतलब इंद्रियॉ । अदांत गोभिर विषताम तमिश्रम ।  
 
जैसे हम जीवन की किस्मों को देखते हैं, तो नरक में भी जीवन है, तमिश्र । तो या तो तुम जीवन की नारकीय स्थिति में जाअो या तुम मुक्ति के मार्ग पर, दोनों तरीके तुम्हारे लिए खुले हैं । तो अगर तुम जीवन की नारकीय स्थिति में जाअो, यह प्रवृत्ति-मार्ग कहा जाता है, अौर अगर तुम मुक्ति के पथ पर जाअो, तो यह निवृत्ति-मार्ग है । हमारा यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन, निवृत्ति-मार्ग का प्रशिक्षण है, बुनियादी सिद्धांत, कई मनाई हैं । "नहीं" मतलब निवृत्ति | कोई अवैध यौन जीवन नहीं, कोई मांसाहार नहीं, कोई जुआ नहीं, कोई नशा नहीं । तो यह नहीं, "नहीं" पथ । वे नहीं जानते हैं । जब हम इतने सारे नहीं कहते हैं, वे समझते हैं कि यह दिमाग को धोना है । दिमाग को धोना नहीं । यह वास्तविक है । अगर तुम अपने आध्यात्मिक जीवन का विकास चाहते हो, तो तुम्हे इतने सारे उपद्रव को रोकना होगा । यही निवृत्ति-मार्ग है । असुर, वे नहीं जानते । क्योंकि वे नहीं जानते, जब निवृत्ति-मार्ग, "नहीं," का पथ "नहीं" की सिफारिश की जाती है, वे गुस्सा हो जाते हैं । वे गुस्सा हो जाते हैं।  


:मूर्खाय उपदेषो हि  
:मूर्खाय उपदेषो हि  
:प्रकोपाय न शांतये  
:प्रकोपाय न शांतये  
:पय: पानम् भुजांगनम  
:पय: पानम भुजांगनम  
:केवलम विष वर्धनम  
:केवलम विष वर्धनम  
:( नीति शास्त्र)  
:(नीति शास्त्र)  
 
जो धूर्त, मूर्ख हैं, अगर तुम कुछ बहुमूल्य बात करो उनके फायदे के लिए, वह तुम्हें नहीं सुनेगा; वह गुस्सा हो जाएगा । उदाहरण दिया जाता है पय: पानम भुजांगनम केवलम विष वर्धनम | जैसे अगर एक साँप, अगर तुम सांप से कहो "मैं दैनिक तुम्हे दूध का एक कप दूँगा । यह बिना ज़रूरत का दूसरों को काटने का हानिकारक जीवन तुम मत जिओ । "तुम यहां आअो, दूध का एक कप लो और शांति से रहो ।"  वह यह नहीं कर पाएगा । वह... पीने से, दूध का प्याला पीने से, उसका जहर अौर बढेगा, और जैसे ही जहर बढता है - यह एक और खुजली का एहसास है - वह काटना चाहता है । वह काटेगा ।
 
तो नतीजा यह होगा पय: पानम भुजांगनम केवलम विष वर्धनम | जितना अधिक वे भूखे रहते हैं, यह उनके लिए अच्छा है, क्योंकि जहर बढेगा नहीं । प्रकृति के कानून है । और जैसे ही हम एक साँप को देखते हैं, तुरंत हर कोई सांप को मारने के लिए सतर्क हो जाता है । और प्रकृति के कानून द्वारा... यह कहा जाता है कि, "एक सांप को मार डालने पर, साधु भी विलाप नहीं करता है ।" मोदेत साधुर अपि सर्प वृश्चिक सर्प हत्या ([[Vanisource:SB 7.9.14|श्रीमद भागवतम ७.९.१४]]) । प्रहलाद महाराज ने कहा । जब उनके पिता की मौत हो गई और नरसिंह-देव अभी भी गुस्से में थे, तो उन्होंने भगवान नरसिंह को मनाया, "प्रभु, अब आप अपना गुस्सा त्याग दीजिए, क्योंकि कोई भी दुःखी नहीं है मेरे पिता के मारे जाने से । " मतलब, "मैं भी दुःखी नहीं हूँ । मैं भी खुश हूँ, क्योंकि मेरे पिता एक सांप और बिच्छू की तरह थे ।


जो धूर्त, मूर्ख हैं, अगर तुम कुछ बहुमूल्य बात करो उनके फायदे के लिए, वह तुम्हें नहीं सुनेगा ; वह नाराज हो जाएगा । उदाहरण दिया जाता है पय: पानम् भुजांगनम केवलम विष वर्धनम जैसे अगर एक साँप, अगर तुम सांप से कहो "मैं दैनिक तुम्हे दूध का एक कप दूँगा । यह हानिकारक जीवन दूसरों को काटने का तुम मत करो । "तुम यहां आअो, दूध का एक कप लो और शांति से रहो ।" वह यह नहीं कर पाएगा । वह ... पीने से, दूध का प्याला पीने से, उसका जहर अौर बढेगा और जैसे ही जहर बढता है-यह एक और खुजली का एहसास है - वह काटना चाहता है । वह काटेगा । तो नतीजा यह होगा पय: पानम् भुजांगनम केवलम विष वर्धनम जितना अधिक वे भूखे रहते हैं, यह उनके लिए अच्छा है, क्योंकि जहर बढेगा नहीं । प्रकृति के कानून है। और जैसे ही हम एक साँप को देखते हैं, तुरंत हर कोई सांप को मारने के लिए सतर्क हो जाता है। और प्रकृति के कानून द्वारा ... यह कहा जाता है कि "एक सांप को मार डालने पर, साधू भी विलाप नहीं करता है।" मोदेत साधुर अपि सर्प वृश्चिक सर्प हत्या ([[Vanisource:SB 7.9.14|श्री भ ७।९।१४]]) । प्रहलाद महाराज ने कहा। जब उनके पिता की मौत हो गई और न्रसिंह-देव अभी भी गुस्से में थे, तो उन्होंने भगवान न्रसिंह को मनाया, "श्रीमान, अब आप अपना गुस्सा त्याग दीजिए, क्योंकि कोई भी दुखी नहीं है मेरे पिता को मारे जाने से । " मतलब , "मैं भी दुखी नहीं हूँ। मैं भी खुश हूँ, क्योंकि मेरे पिता एक सांप और बिच्छू की तरह थे । तो एक साधु भी खुश होता है जब बिच्छू या एक सांप को मार डाला जाता है ।" किसी की मौत पर वे खुश नहीं होते हैं। यहां तक ​​कि एक चींटी को मार डालने पर, एक साधु दुखी होता है। लेकिन एक साधु, जब वह एक सांप को मारा देखता है, तो वह खुश होता है। वह खुश होता है। इसलिए हमें एक सांप के जीवन का अनुसरण नहीं करना चाहिए, प्रवृत्तिमार्ग। मानव जीवन निवृत्ति-मार्ग के लिए है। हमारी कई बुरी आदतें हैं इन बुरी आदतों को त्यागना, यही मानव जीवन है। अगर हम ऐसा नहीं कर सकते, तो हम जीवन में आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर रहे हैं। आध्यात्मिक प्रगति ... जब तक तुम् एक छोटी से इच्छा रखते हो अपनी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए पापी जीवन, तुम्हे एक अगले शरीर को स्वीकार करना होगा । और जैसे ही तुम एक भौतिक शरीर स्वीकार करते हो, तो तुम्हे भुगतना होगा।
तो एक साधु भी खुश होता है जब बिच्छू या एक सांप को मार डाला जाता है ।" किसी की मौत पर वे खुश नहीं होते हैं । यहां तक ​​कि एक चींटी को मार डालने पर, एक साधु दुःखी होता है । लेकिन एक साधु, जब वह एक सांप को मारा देखता है, तो वह खुश होता है । वह खुश होता है । इसलिए हमें एक सांप के जीवन का अनुसरण नहीं करना चाहिए, प्रवृत्तिमार्ग का । मानव जीवन निवृत्ति-मार्ग के लिए है । हमारी कई बुरी आदतें हैं | इन बुरी आदतों को त्यागना, यही मानव जीवन है । अगर हम ऐसा नहीं कर सकते, तो हम जीवन में आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर रहे हैं । आध्यात्मिक प्रगति... जब तक तुम एक छोटी सी इच्छा रखते हो अपनी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए पापी जीवन की, तुम्हे एक अगले शरीर को स्वीकार करना होगा । और जैसे ही तुम एक भौतिक शरीर स्वीकार करते हो, फिर तुम्हे भुगतना होगा ।
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



761214 - Lecture BG 16.07 - Hyderabad

यह अासुरिक जीवन की शुरुआत है, प्रवृत्ति अौर निवृत्ति । प्रवृत्ति मतलब, क्या कहते हैं, प्रोत्साहन जो... वहाँ चीनी का एक दाना है, और चींटी को पता है कि चीनी का एक दाना है । वह इसके पीछे भाग रही है । यही प्रवृत्ति है । और निवृत्ति का मतलब है, "मैंने इस तरह से अपनी जिंदगी बिताई है, लेकिन यह वास्तव में मेरी जीवन की प्रगति नहीं है । मुझे इस तरह का जीवन बंद करना चाहिए । मुझे आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए ।" यही निवृत्ति-मार्ग है । दो तरीके हैं प्रवृत्ति अौर निवृत्ति । प्रवृत्ति मतलब हम अंधेरे क्षेत्र में जा रहे हैं, घोर अंधेरा । अदांत गोभिर विशताम तमिश्रम (श्रीमद भागवतम ७.५.३०) | क्योंकि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं, अदांत... अदांत मतलब अनियंत्रित, अौर गो, मतलब इंद्रियॉ । अदांत गोभिर विषताम तमिश्रम ।

जैसे हम जीवन की किस्मों को देखते हैं, तो नरक में भी जीवन है, तमिश्र । तो या तो तुम जीवन की नारकीय स्थिति में जाअो या तुम मुक्ति के मार्ग पर, दोनों तरीके तुम्हारे लिए खुले हैं । तो अगर तुम जीवन की नारकीय स्थिति में जाअो, यह प्रवृत्ति-मार्ग कहा जाता है, अौर अगर तुम मुक्ति के पथ पर जाअो, तो यह निवृत्ति-मार्ग है । हमारा यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन, निवृत्ति-मार्ग का प्रशिक्षण है, बुनियादी सिद्धांत, कई मनाई हैं । "नहीं" मतलब निवृत्ति | कोई अवैध यौन जीवन नहीं, कोई मांसाहार नहीं, कोई जुआ नहीं, कोई नशा नहीं । तो यह नहीं, "नहीं" पथ । वे नहीं जानते हैं । जब हम इतने सारे नहीं कहते हैं, वे समझते हैं कि यह दिमाग को धोना है । दिमाग को धोना नहीं । यह वास्तविक है । अगर तुम अपने आध्यात्मिक जीवन का विकास चाहते हो, तो तुम्हे इतने सारे उपद्रव को रोकना होगा । यही निवृत्ति-मार्ग है । असुर, वे नहीं जानते । क्योंकि वे नहीं जानते, जब निवृत्ति-मार्ग, "नहीं," का पथ "नहीं" की सिफारिश की जाती है, वे गुस्सा हो जाते हैं । वे गुस्सा हो जाते हैं।

मूर्खाय उपदेषो हि
प्रकोपाय न शांतये
पय: पानम भुजांगनम
केवलम विष वर्धनम
(नीति शास्त्र)

जो धूर्त, मूर्ख हैं, अगर तुम कुछ बहुमूल्य बात करो उनके फायदे के लिए, वह तुम्हें नहीं सुनेगा; वह गुस्सा हो जाएगा । उदाहरण दिया जाता है पय: पानम भुजांगनम केवलम विष वर्धनम | जैसे अगर एक साँप, अगर तुम सांप से कहो "मैं दैनिक तुम्हे दूध का एक कप दूँगा । यह बिना ज़रूरत का दूसरों को काटने का हानिकारक जीवन तुम मत जिओ । "तुम यहां आअो, दूध का एक कप लो और शांति से रहो ।" वह यह नहीं कर पाएगा । वह... पीने से, दूध का प्याला पीने से, उसका जहर अौर बढेगा, और जैसे ही जहर बढता है - यह एक और खुजली का एहसास है - वह काटना चाहता है । वह काटेगा ।

तो नतीजा यह होगा पय: पानम भुजांगनम केवलम विष वर्धनम | जितना अधिक वे भूखे रहते हैं, यह उनके लिए अच्छा है, क्योंकि जहर बढेगा नहीं । प्रकृति के कानून है । और जैसे ही हम एक साँप को देखते हैं, तुरंत हर कोई सांप को मारने के लिए सतर्क हो जाता है । और प्रकृति के कानून द्वारा... यह कहा जाता है कि, "एक सांप को मार डालने पर, साधु भी विलाप नहीं करता है ।" मोदेत साधुर अपि सर्प वृश्चिक सर्प हत्या (श्रीमद भागवतम ७.९.१४) । प्रहलाद महाराज ने कहा । जब उनके पिता की मौत हो गई और नरसिंह-देव अभी भी गुस्से में थे, तो उन्होंने भगवान नरसिंह को मनाया, "प्रभु, अब आप अपना गुस्सा त्याग दीजिए, क्योंकि कोई भी दुःखी नहीं है मेरे पिता के मारे जाने से । " मतलब, "मैं भी दुःखी नहीं हूँ । मैं भी खुश हूँ, क्योंकि मेरे पिता एक सांप और बिच्छू की तरह थे ।

तो एक साधु भी खुश होता है जब बिच्छू या एक सांप को मार डाला जाता है ।" किसी की मौत पर वे खुश नहीं होते हैं । यहां तक ​​कि एक चींटी को मार डालने पर, एक साधु दुःखी होता है । लेकिन एक साधु, जब वह एक सांप को मारा देखता है, तो वह खुश होता है । वह खुश होता है । इसलिए हमें एक सांप के जीवन का अनुसरण नहीं करना चाहिए, प्रवृत्तिमार्ग का । मानव जीवन निवृत्ति-मार्ग के लिए है । हमारी कई बुरी आदतें हैं | इन बुरी आदतों को त्यागना, यही मानव जीवन है । अगर हम ऐसा नहीं कर सकते, तो हम जीवन में आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर रहे हैं । आध्यात्मिक प्रगति... जब तक तुम एक छोटी सी इच्छा रखते हो अपनी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए पापी जीवन की, तुम्हे एक अगले शरीर को स्वीकार करना होगा । और जैसे ही तुम एक भौतिक शरीर स्वीकार करते हो, फिर तुम्हे भुगतना होगा ।