HI/Prabhupada 0394 - निताई-पद -कमल तात्पर्य: Difference between revisions

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निताई-पद, कमल, कोटि-चंद्र-सुशिताल, जे छायाय जगत जुरे यह नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा एक गाना है, गौड़ीय-वैशनव-सम्प्रदाय के एक महान आचार्य । उन्होंने कई गीत लिखे हैं वैशनव तत्वज्ञान के बारे में, और वे वैदिक निर्देशों के साथ पूरी तरह ताल मेल खाते हैं, एसी मंजूरी दी गई है । तो यहाँ नरोत्तम दास ठाकुर गा रहे हैं कि "पूरी दुनिया पीड़ित है भौतिक अस्तित्व के धधकते आग के तहत । इसलिए, अगर प्रभु नित्यानंद के चरणकमलों का आश्रय लेते हैं ... " जिनका आज जन्मदिन है, ३१ जनवरी, १९६९ । इसलिए हमें नरोत्तम दास ठाकुर के इस निर्देश का स्वाद लेना चाहिए कि इस भौतिक अस्तित्व के धधकते आग के कष्ट से राहत पाने के लिए, हमें, भगवान नित्यानंद के चरणकमलों का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि यह चांदनी की तरह ठंडा है, संयुक्त, लाखों चांद । इसका मतलब है हमें तुरंत शांतिपूर्ण माहौल मिलेगा । जैसे एक आदमी पूरे दिन काम करता है, और वह चांदनी के तहत आता है, तो वह राहत महसूस करता है । इसी तरह, कोई भी भौतिकवादी आदमी भगवान नित्यानंद की शरण में आता है, तो वह तुरंत राहत महसूस करेगा । फिर वे कहते हैं, निताई-पद, कमल, कोटि-चंद्र-सुशिताल, जे छायाय जगत जुरे हेनो निताई बिने भाई, राधा कृष्ण पाइते नाइ, धरो-चरण दुखानि । वे कहते हैं कि "अगर तुम घर के लिए वापस जाने के लिए उत्सुक हो, देवत्व को वापस, और राधा और कृष्ण के साथ सहयोगी बनना चाहते हो, तो सबसे अच्छी नीति नित्यानंद की शरण लेना है । " फिर वे कहते हैं, से सम्बन्ध नाही जार, ब्रथा जन्म गेलो तार । "जो नित्यानंद का संपर्क करने में सक्षम नहीं होता है, तो उसे सोचना चाहिए कि उसने अपना बहुमूल्य जीवन सिर्फ खराब किया है ।' ब्रथा जन्म गेलो ब्रथा का मतलब है व्यर्थ ही, और जन्म का अर्थ है जीवन । गेलो तार, खराब । क्योंकि उसने नित्यानंद के साथ संबंध नहीं बनाया है । नित्यानंद, यह नाम ही, बताता है ... नित्या का मतलब है अनन्त । आनंद का मतलब है खुशी । भौतिक खुशी शाश्वत नहीं है । यही भेद है । इसलिए जो लोग बुद्धिमान हैं , उन्हें भौतिक दुनिया की इस चंचल खुशी के साथ कोई दिलचस्पी नहीं है । हम में से हर एक, जीव, हम खुशी को खोज रहे हैं । लेकिन जो खुशी हम खोज रहे हैं , वह अस्थायी, चंचल है । यही खुशी नहीं है । असली खुशी है नित्यानंद, अनन्त खुशी । तो जो कोई भी नित्यानंद के साथ संपर्क में नहीं है, समझ जाना चाहिए कि उसकी जिंदगी खराब हो रही है । से सम्बन्ध नाही जार, ब्रथा जन्म गेलो तार, सेई पशु बोरो दुराचार । नरोत्तम दास ठाकुर यहाँ बहुत कठोर शब्द का उपयोग करते हैं । वे कहते हैं कि इस तरह का इंसान एक जानवर है, एक बेकाबू जानवर । जैसे कुछ जानवरों को शिक्षित नहीं किया जा सकता है , तो जो कोई भी नित्यानंद से संपर्क में नहीं अाया है, उसे एक अदम्य पशु के रूप में विचार किया जाना चाहिए । सेई पशु बोरो दुराचार । क्यों? निताई ना बोलिलो मुखे: "उसने नित्यानंद के पवित्र नाम को कभी भी बोला नहीं ।" और मजिलो संसार-सुखे, "और इस भौतिक खुशी में विलय हो गया है ।" विद्या-कुले कोरिबे तार । "यह बकवास नहीं जानता है कि, उसकी शिक्षा, और परिवार, और परंपरा और राष्ट्रीयता उसकी क्या मदद करेगी? " ये बातें उसकी मदद नहीं कर सकती हैं । ये सभी अस्थायी बातें हैं । केवल अगर हम शाश्वत आनंद चाहते हैं, हमें नित्यानंद से संपर्क करना चाहिए । विद्या कुले कि कोरिबे तार । विद्या का मतलब है शिक्षा है, और कुल मतलब परिवार, राष्ट्रीयता । तो हमारा एक बहुत अच्छा परिवार कनेक्शन हो सकता है, या हमारी बहुत अच्छी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा हो सकती है, लेकिन यह शरीर के समाप्त होने के बाद, इन बातों से मुझे मदद नहीं मिलेगी । मैं मेरे साथ अपने काम को ले जाऊँगा और उस काम के अनुसार, मुझे बल द्वारा किसी अन्य प्रकार के शरीर के स्वीकार करना होगा । यह मानव शरीर के अलावा और कुछ हो सकता है । इसलिए यह बातें हमारी रक्षा नहीं कर सकती हैं या हमें असली खुशी नहीं दे सकती हैं । तो नरोत्तम दास ठाकुर सलाह देते हैं कि विद्या कुले कि कोरिबे तार । फिर वह कहते हैं, अहंकार मत्त होइ ।"झूठी प्रतिष्ठा और पहचान के पीछे पागल होकर ..." गलत पहचान शरीर के साथ और प्रतिष्ठा शारीरिक संबंध की, इसे अहंकार मत्त होइ, कहा जाता है । हम प्रतिष्ठा के पीछे पागल हैं । अहंकार मत्त होइ, निताई-पद पासरिया हम इस झूठी प्रतिष्ठा के कारण सोच रहे हैं कि , "ओह, नित्यानंद क्या हैं? वे मेरे लिए क्या कर सकते हैं? मुझे परवाह नहीं है ।" यो ये झूठी प्रतिष्ठा के संकेत हैं । अहंकार मत्त होइ, निताई-पद पासरिया......अस्तयेर सत्य कोरि मानि । नतीजा यह है कि मैं जो झूठ है उसे स्वीकार कर रहा हूँ । उदाहरण के लिए, मैं इस शरीर को स्वीकार कर रहा हूँ । यह शरीर, मैं यह शरीर नहीं हूं । इसलिए, झूठी पहचान के साथ मैं अौर अधिक उलझ रहा हूँ । तो जो इस झूठी प्रतिष्ठा के साथ फूला हुअा है, अहंकार मत्त होइअा, निताई-पद पासरिया......अस्तयेर सत्य कोरि मानि । वे गलत को सही स्वीकारते हैं । फिर वे कहते हैं, निताइर कोरुणा हबे, ब्रजे राधा कृष्ण पाबे । अगर तुम वास्तव में घर के लिए वापस जाने के बारे में गंभीर हो, देवत्व को वापस, तो नित्यानंद की दया की तलाश करो । निताइर कोरुणा हबे, ब्रजे राधा कृष्ण पाबे, धरो निताई-चरण दुखानि "नित्यानंद के कमल चरणों को पकड़ो ।" फिर वे कहते हैं नितायेर चरण सत्य । हम सोच सकते हैं कि हमारे इतने सारे आश्रय हैं, लेकिन इस भौतिक संसार में बाद में वे गलत साबित होंगे, इसी तरह, अगर हम नित्यानंद के कमल चरणों को पकड़ते हैं - यह भी गलत साबित हो सकता है । लेकिन नरोत्तम दास ठाकुर आश्वासन देते हैं कि, नितायेर चरण सत्य: "यह गलत नहीं है । क्योंकि नित्यानंद शाश्वत हैं,उनके चरण कमल भी शाश्वत हैं ।" तांहार सेवक नित्य । और जो नित्यानंद की सेवा लेता है, वे भी शाश्वत बन जाता है । अनन्त हुए के बिना, कोई भी अनन्त की सेवा नही कर सकता है । यही वैदिक निषेधाज्ञा है । ब्रह्मण बने बिना, परम ब्रह्मण के समीप हम नहीं जा सकते हैं । जैसे आग हुए बिना, कोई भी आग में प्रवेश नहीम कर सकता है । पानी हुए बिना, कोई भी पानी में प्रवेश नहीं कर सकता है । इसी तरह, पूरी तरह से अाध्यात्मिक हुए बिना, कोई भी आध्यात्मिक राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता है । तो नित्येर चरण सत्य । अगर तुम नित्यानंद के चरण कमलों को पकड़ते हो, तो तुम तुरंत अाध्यात्मिक हो जाते हो । जैसे कि तुम बिजली को स्पर्श करो, तो तुरंत तुम्हे करंट लगेगा । यह स्वाभाविक है । इसी तरह, नित्यानंद शाश्वत सुख हैं, अगर तुम किसी न किसी तरह से नित्यानंद को स्पर्श करते हो, तो तुम भी सदा खुश हो जाअोगे । तन्हारा सेवक नित्या । इसलिए जो नित्यानंद के साथ संपर्क में है, वे शाश्वत बन गए हैं । नित्येर चरण सत्य, तांहार सेवक नित्य, दृढ कोरी धारो नितायेर पाइ तो बहुत कसकर उन्हे पकड़ो । नरोत्तम बोरो दुखी, निताई मोरे कोरो सुखी अंत में, नरोत्तम दास ठाकुर, इस गीत के संगीतकार, वे नित्यानंद से निवेदन कर रहे हैं, "मेरे प्रिय प्रभु, मैं बहुत दुखी हूँ । तो अाप कृपया मुझे खुश कीजिए । और आप कृपया मुझे अपने कमल चरणों के कोने में रखिए । " यह इस गीत का सार है ।
निताई-पद, कमल, कोटि-चंद्र-सुशीतल, जे छायाय जगत जुराय । यह नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा रचित गीत है, गौड़ीय-वैष्णव-सम्प्रदाय के एक महान आचार्य । उन्होंने कई गीत लिखे हैं वैष्णव तत्त्वज्ञान के बारे में, और वे वैदिक निर्देशों के साथ पूरी तरह ताल-मेल खाते हैं । तो यहाँ नरोत्तम दास ठाकुर गा रहे हैं कि, "पूरी दुनिया भौतिक अग्नि से पीड़ित है । इसलिए, अगर कोई व्यक्ति प्रभु नित्यानंद के चरणकमलों का आश्रय लेता हैं ... " जिनका आज जन्मदिन है, ३१ जनवरी, १९६९ । इसलिए हमें नरोत्तम दास ठाकुर के इस निर्देश का आस्वादन करना चाहिए इस भौतिक अग्नि के कष्ट से राहत पाने के लिए, हमें, भगवान नित्यानंद के चरणकमलों का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि यह चाँदनी की तरह ठंडा है, जो की संयुक्त है, लाखों चाँद की चाँदनी  तरह । इसका मतलब है हमें तुरंत शांतिपूर्ण वातावरण मिलेगा । जैसे एक आदमी पूरे दिन काम करता है, और वह चाँदनी के नीचे आता है, उसे आराम मिलता है । उसी प्रकार, जब भौतिकतावादी व्यक्ति भगवान नित्यानंद की शरण मे आता है तो, उसे तुरंत आराम मिलता है ।  
 
फिर वे कहते हैं, निताई-पद, कमल, कोटि-चंद्र-सुशीतल, जे छायाय जगत जुराय, हेनो निताई बिने भाई, राधा कृष्ण पाइते नाइ, धरो- निताई चरण दुखानि । वे कहते हैं कि, "अगर तुम घर वापस जाने के लिए उत्सुक हो, भगवान के धाम वापस, और राधा और कृष्ण के सहयोगी बनना चाहते हो, तो सबसे अच्छी नीति नित्यानंद की शरण लेना है । " फिर वे कहते हैं, से सम्बन्ध नाही जार, वृथा जन्म गेलो तार । "जो नित्यानंद से संपर्क करने में सक्षम नहीं होता है, तो उसे सोचना चाहिए कि उसने अपना बहुमूल्य जीवन सिर्फ व्यर्थ किया है ।'  
 
वृथा जन्म गेलो, वृथा का मतलब है व्यर्थ ही, और जन्म का अर्थ है जीवन । गेलो तार, व्यर्थ । क्योंकि उसने नित्यानंद के साथ संबंध नहीं बनाया है । नित्यानंद, यह नाम ही, बताता है... नित्य का मतलब है शाश्वत । आनंद का मतलब है सुख । भौतिक सुख शाश्वत नहीं है । यही भेद है । इसलिए जो लोग बुद्धिमान हैं, उन्हें भौतिक दुनिया के इस चंचल सुख मे कोई रुचि नहीं है । हम में से हर एक, जीव, हम आनंद खोज रहे हैं । लेकिन जो आनंद हम खोज रहे हैं, वह अस्थायी, चंचल है । यह आनंद नहीं है । असली आनंद है नित्यानंद, शाश्वत सुख । तो जो कोई भी नित्यानंद के संपर्क में नहीं है, समझ जाना चाहिए कि उसका जीवन व्यर्थ है ।  
 
से सम्बन्ध नाही जार, वृथा जन्म गेलो तार, सेई पशु बोड़ो दुराचार । नरोत्तम दास ठाकुर यहाँ बहुत कठोर शब्द का उपयोग करते हैं । वे कहते हैं कि इस तरह का इंसान एक जानवर है, एक बेकाबू जानवर । जैसे कुछ जानवरों को शिक्षित नहीं किया जा सकता है , तो जो कोई भी नित्यानंद के संपर्क में नहीं अाया है, उसे एक अदम्य पशु समझना चाहिए । सेई पशु बोड़ो दुराचार । क्यों ? निताई ना बलिल मुखे: "उसने नित्यानंद के पवित्र नाम का कभी उच्चारण नहीं किया ।" और मजिल संसार-सुखे, "और इस भौतिक सुख मे लिप्त हो गया ।" विद्या-कुले कोरिबे तार । "वह मूर्ख नहीं जानता है कि, उसकी शिक्षा, और परिवार, और परंपरा और राष्ट्रीयता उसकी क्या सहायता करेगी ? " ये वस्तुएँ उसकी सहायता नहीं कर सकती हैं । ये सभी अस्थायी वस्तुएँ हैं । केवल, अगर हम शाश्वत आनंद चाहते हैं, हमें नित्यानंद के संपर्क में आना चाहिए ।  
 
विद्या कुले कि कोरिबे तार । विद्या का मतलब है शिक्षा, और कुल का मतलब परिवार, राष्ट्रीयता । तो हमारा एक बहुत अच्छा परिवारिक सम्बन्ध हो सकता है, या हमारी बहुत अच्छी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा हो सकती है, लेकिन यह शरीर के समाप्त होने के बाद, इन चीज़ों से मुझे सहायता नहीं मिलेगी । मैं अपने साथ अपने कर्म लेकर जाऊँगा और उस कर्म के अनुसार, मुझे बल द्वारा किसी अन्य प्रकार का शरीर स्वीकार करना होगा । वो मानव शरीर के अलावा भी कुछ हो सकता है । इसलिए ये चीज़ें हमारी रक्षा नहीं कर सकती हैं या हमें असली सुख नहीं दे सकती हैं । तो नरोत्तम दास ठाकुर परामर्श देते हैं कि विद्या कुले कि कोरिबे तार ।  
 
फिर वह कहते हैं, अहंकारे मत्त होइया । "झूठी प्रतिष्ठा और पहचान के पीछे पागल होकर ..." शरीर के साथ झूठी पहचान और शारीरिक संबंध की प्रतिष्ठा, इसे अहंकारे मत्त होइया, कहा जाता है । हम प्रतिष्ठा के पीछे पागल हैं । अहंकारे मत्त होइया, निताई-पद पासरिया हम इस झूठी प्रतिष्ठा के कारण सोच रहे हैं कि ,"ओह, नित्यानंद क्या हैं ? वे मेरे लिए क्या कर सकते हैं ? मुझे परवाह नहीं है ।" तो ये झूठी प्रतिष्ठा के संकेत हैं । अहंकारे मत्त होइया, निताई-पद पासरिया......असत्येरे सत्य कोरि मानि । निर्णय यह है कि मैं जो अनित्य है उसे स्वीकार कर रहा हूँ । उदाहरण के लिए, मैं इस शरीर को स्वीकार कर रहा हूँ । यह शरीर, मैं यह शरीर नहीं हूँ । इसलिए, झूठी पहचान के साथ मैं अौर अधिक उलझ रहा हूँ । तो जो इस झूठी प्रतिष्ठा के साथ फूला हुअा है, अहंकारे मत्त होइया, निताई-पद पासरिया... असत्येरे सत्य कोरि मानि । वे गलत को सही स्वीकारते हैं ।  
 
फिर वे कहते हैं, निताइयेर करुणा हबे, ब्रजे राधा कृष्ण पाबे । अगर तुम वास्तव में घर, परम धाम, वापस जाने के बारे में गंभीर हो, तो नित्यानंद की दया को प्राप्त करो । निताइयेर करुणा हबे, ब्रजे राधा कृष्ण पाबे, धरो निताई-चरण दुखानि "नित्यानंद के चरण कमलों को पकड़ो ।" फिर वे कहते हैं निताइयेर चरण सत्य । हम सोच सकते हैं कि हमारे इतने सारे आश्रय हैं, लेकिन इस भौतिक संसार में बाद में वे गलत ठहर जाते हैं, इसी तरह, अगर हम नित्यानंद के चरणकमलों  को पकड़ते हैं - यह भी गलत साबित हो सकता है । लेकिन नरोत्तम दास ठाकुर आश्वासन देते हैं कि, निताइयेर चरण सत्य: "यह अनित्य नहीं हैं । क्योंकि नित्यानंद शाश्वत हैं, उनके चरण कमल भी शाश्वत हैं ।"  
 
ताँहार सेवक नित्य । और जो नित्यानंद की सेवा करता है, वे भी शाश्वत हो जाता है । शाश्वत हुए बिना, कोई भी शाश्वत की सेवा नही कर सकता है । यही वैदिक आज्ञा है । ब्रह्म बने बिना, परम ब्रह्म के समीप हम नहीं जा सकते हैं । जैसे आग बने बिना, कोई भी आग में प्रवेश नही कर सकता है । पानी बने बिना, कोई भी पानी में प्रवेश नहीं कर सकता है । इसी तरह, पूरी तरह से अाध्यात्मिक हुए बिना, कोई भी आध्यात्मिक राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता है । तो निताइयेर चरण सत्य । अगर तुम नित्यानंद के चरण कमलों को पकड़ते हो, तो तुम तुरंत अाध्यात्मिक बन जाते हो । जैसे कि तुम बिजली को स्पर्श करो, तुरंत आप विद्युतकृत हो जाते हैं । यह स्वाभाविक है । इसी तरह, नित्यानंद शाश्वत सुख हैं, अगर तुम किसी न किसी तरह से नित्यानंद को स्पर्श करते हो, तो तुम भी सदैव प्रसन्न हो जाअोगे ।  
 
ताँहार सेवक नित्य । इसलिए जो नित्यानंद के संपर्क में है, वे शाश्वत बन गए हैं । निताइयेर चरण सत्य, ताँहार सेवक नित्य, दृढ कोरी धारो निताईयेर पाय तो बहुत कसकर उन्हें पकड़ो । नरोत्तम बोड़ो दुखी, निताई मोरे कोरो सुखी अंत में, नरोत्तम दास ठाकुर, इस गीत के रचियता, वे श्रीनित्यानंद से निवेदन कर रहे हैं, "मेरे प्रिय प्रभु, मैं बहुत दुखी हूँ । अतः अाप कृपया मुझे सुखी करें । और आप कृपया मुझे अपने चरण कमलों के कोने में रखें । " यह इस गीत का सार है ।  
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Latest revision as of 15:26, 9 October 2018



Purport to Nitai-Pada-Kamala -- Los Angeles, January 31, 1969

निताई-पद, कमल, कोटि-चंद्र-सुशीतल, जे छायाय जगत जुराय । यह नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा रचित गीत है, गौड़ीय-वैष्णव-सम्प्रदाय के एक महान आचार्य । उन्होंने कई गीत लिखे हैं वैष्णव तत्त्वज्ञान के बारे में, और वे वैदिक निर्देशों के साथ पूरी तरह ताल-मेल खाते हैं । तो यहाँ नरोत्तम दास ठाकुर गा रहे हैं कि, "पूरी दुनिया भौतिक अग्नि से पीड़ित है । इसलिए, अगर कोई व्यक्ति प्रभु नित्यानंद के चरणकमलों का आश्रय लेता हैं ... " जिनका आज जन्मदिन है, ३१ जनवरी, १९६९ । इसलिए हमें नरोत्तम दास ठाकुर के इस निर्देश का आस्वादन करना चाहिए इस भौतिक अग्नि के कष्ट से राहत पाने के लिए, हमें, भगवान नित्यानंद के चरणकमलों का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि यह चाँदनी की तरह ठंडा है, जो की संयुक्त है, लाखों चाँद की चाँदनी तरह । इसका मतलब है हमें तुरंत शांतिपूर्ण वातावरण मिलेगा । जैसे एक आदमी पूरे दिन काम करता है, और वह चाँदनी के नीचे आता है, उसे आराम मिलता है । उसी प्रकार, जब भौतिकतावादी व्यक्ति भगवान नित्यानंद की शरण मे आता है तो, उसे तुरंत आराम मिलता है ।

फिर वे कहते हैं, निताई-पद, कमल, कोटि-चंद्र-सुशीतल, जे छायाय जगत जुराय, हेनो निताई बिने भाई, राधा कृष्ण पाइते नाइ, धरो- निताई चरण दुखानि । वे कहते हैं कि, "अगर तुम घर वापस जाने के लिए उत्सुक हो, भगवान के धाम वापस, और राधा और कृष्ण के सहयोगी बनना चाहते हो, तो सबसे अच्छी नीति नित्यानंद की शरण लेना है । " फिर वे कहते हैं, से सम्बन्ध नाही जार, वृथा जन्म गेलो तार । "जो नित्यानंद से संपर्क करने में सक्षम नहीं होता है, तो उसे सोचना चाहिए कि उसने अपना बहुमूल्य जीवन सिर्फ व्यर्थ किया है ।'

वृथा जन्म गेलो, वृथा का मतलब है व्यर्थ ही, और जन्म का अर्थ है जीवन । गेलो तार, व्यर्थ । क्योंकि उसने नित्यानंद के साथ संबंध नहीं बनाया है । नित्यानंद, यह नाम ही, बताता है... नित्य का मतलब है शाश्वत । आनंद का मतलब है सुख । भौतिक सुख शाश्वत नहीं है । यही भेद है । इसलिए जो लोग बुद्धिमान हैं, उन्हें भौतिक दुनिया के इस चंचल सुख मे कोई रुचि नहीं है । हम में से हर एक, जीव, हम आनंद खोज रहे हैं । लेकिन जो आनंद हम खोज रहे हैं, वह अस्थायी, चंचल है । यह आनंद नहीं है । असली आनंद है नित्यानंद, शाश्वत सुख । तो जो कोई भी नित्यानंद के संपर्क में नहीं है, समझ जाना चाहिए कि उसका जीवन व्यर्थ है ।

से सम्बन्ध नाही जार, वृथा जन्म गेलो तार, सेई पशु बोड़ो दुराचार । नरोत्तम दास ठाकुर यहाँ बहुत कठोर शब्द का उपयोग करते हैं । वे कहते हैं कि इस तरह का इंसान एक जानवर है, एक बेकाबू जानवर । जैसे कुछ जानवरों को शिक्षित नहीं किया जा सकता है , तो जो कोई भी नित्यानंद के संपर्क में नहीं अाया है, उसे एक अदम्य पशु समझना चाहिए । सेई पशु बोड़ो दुराचार । क्यों  ? निताई ना बलिल मुखे: "उसने नित्यानंद के पवित्र नाम का कभी उच्चारण नहीं किया ।" और मजिल संसार-सुखे, "और इस भौतिक सुख मे लिप्त हो गया ।" विद्या-कुले कोरिबे तार । "वह मूर्ख नहीं जानता है कि, उसकी शिक्षा, और परिवार, और परंपरा और राष्ट्रीयता उसकी क्या सहायता करेगी ? " ये वस्तुएँ उसकी सहायता नहीं कर सकती हैं । ये सभी अस्थायी वस्तुएँ हैं । केवल, अगर हम शाश्वत आनंद चाहते हैं, हमें नित्यानंद के संपर्क में आना चाहिए ।

विद्या कुले कि कोरिबे तार । विद्या का मतलब है शिक्षा, और कुल का मतलब परिवार, राष्ट्रीयता । तो हमारा एक बहुत अच्छा परिवारिक सम्बन्ध हो सकता है, या हमारी बहुत अच्छी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा हो सकती है, लेकिन यह शरीर के समाप्त होने के बाद, इन चीज़ों से मुझे सहायता नहीं मिलेगी । मैं अपने साथ अपने कर्म लेकर जाऊँगा और उस कर्म के अनुसार, मुझे बल द्वारा किसी अन्य प्रकार का शरीर स्वीकार करना होगा । वो मानव शरीर के अलावा भी कुछ हो सकता है । इसलिए ये चीज़ें हमारी रक्षा नहीं कर सकती हैं या हमें असली सुख नहीं दे सकती हैं । तो नरोत्तम दास ठाकुर परामर्श देते हैं कि विद्या कुले कि कोरिबे तार ।

फिर वह कहते हैं, अहंकारे मत्त होइया । "झूठी प्रतिष्ठा और पहचान के पीछे पागल होकर ..." शरीर के साथ झूठी पहचान और शारीरिक संबंध की प्रतिष्ठा, इसे अहंकारे मत्त होइया, कहा जाता है । हम प्रतिष्ठा के पीछे पागल हैं । अहंकारे मत्त होइया, निताई-पद पासरिया । हम इस झूठी प्रतिष्ठा के कारण सोच रहे हैं कि ,"ओह, नित्यानंद क्या हैं ? वे मेरे लिए क्या कर सकते हैं ? मुझे परवाह नहीं है ।" तो ये झूठी प्रतिष्ठा के संकेत हैं । अहंकारे मत्त होइया, निताई-पद पासरिया......असत्येरे सत्य कोरि मानि । निर्णय यह है कि मैं जो अनित्य है उसे स्वीकार कर रहा हूँ । उदाहरण के लिए, मैं इस शरीर को स्वीकार कर रहा हूँ । यह शरीर, मैं यह शरीर नहीं हूँ । इसलिए, झूठी पहचान के साथ मैं अौर अधिक उलझ रहा हूँ । तो जो इस झूठी प्रतिष्ठा के साथ फूला हुअा है, अहंकारे मत्त होइया, निताई-पद पासरिया... असत्येरे सत्य कोरि मानि । वे गलत को सही स्वीकारते हैं ।

फिर वे कहते हैं, निताइयेर करुणा हबे, ब्रजे राधा कृष्ण पाबे । अगर तुम वास्तव में घर, परम धाम, वापस जाने के बारे में गंभीर हो, तो नित्यानंद की दया को प्राप्त करो । निताइयेर करुणा हबे, ब्रजे राधा कृष्ण पाबे, धरो निताई-चरण दुखानि "नित्यानंद के चरण कमलों को पकड़ो ।" फिर वे कहते हैं निताइयेर चरण सत्य । हम सोच सकते हैं कि हमारे इतने सारे आश्रय हैं, लेकिन इस भौतिक संसार में बाद में वे गलत ठहर जाते हैं, इसी तरह, अगर हम नित्यानंद के चरणकमलों को पकड़ते हैं - यह भी गलत साबित हो सकता है । लेकिन नरोत्तम दास ठाकुर आश्वासन देते हैं कि, निताइयेर चरण सत्य: "यह अनित्य नहीं हैं । क्योंकि नित्यानंद शाश्वत हैं, उनके चरण कमल भी शाश्वत हैं ।"

ताँहार सेवक नित्य । और जो नित्यानंद की सेवा करता है, वे भी शाश्वत हो जाता है । शाश्वत हुए बिना, कोई भी शाश्वत की सेवा नही कर सकता है । यही वैदिक आज्ञा है । ब्रह्म बने बिना, परम ब्रह्म के समीप हम नहीं जा सकते हैं । जैसे आग बने बिना, कोई भी आग में प्रवेश नही कर सकता है । पानी बने बिना, कोई भी पानी में प्रवेश नहीं कर सकता है । इसी तरह, पूरी तरह से अाध्यात्मिक हुए बिना, कोई भी आध्यात्मिक राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता है । तो निताइयेर चरण सत्य । अगर तुम नित्यानंद के चरण कमलों को पकड़ते हो, तो तुम तुरंत अाध्यात्मिक बन जाते हो । जैसे कि तुम बिजली को स्पर्श करो, तुरंत आप विद्युतकृत हो जाते हैं । यह स्वाभाविक है । इसी तरह, नित्यानंद शाश्वत सुख हैं, अगर तुम किसी न किसी तरह से नित्यानंद को स्पर्श करते हो, तो तुम भी सदैव प्रसन्न हो जाअोगे ।

ताँहार सेवक नित्य । इसलिए जो नित्यानंद के संपर्क में है, वे शाश्वत बन गए हैं । निताइयेर चरण सत्य, ताँहार सेवक नित्य, दृढ कोरी धारो निताईयेर पाय तो बहुत कसकर उन्हें पकड़ो । नरोत्तम बोड़ो दुखी, निताई मोरे कोरो सुखी । अंत में, नरोत्तम दास ठाकुर, इस गीत के रचियता, वे श्रीनित्यानंद से निवेदन कर रहे हैं, "मेरे प्रिय प्रभु, मैं बहुत दुखी हूँ । अतः अाप कृपया मुझे सुखी करें । और आप कृपया मुझे अपने चरण कमलों के कोने में रखें । " यह इस गीत का सार है ।