HI/Prabhupada 0943 - कुछ भी मेरा नहीं है । इशावास्यम इदम सर्वम, सब कुछ कृष्ण का है: Difference between revisions

 
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तो हर कोई, असीमित इच्छाअों की वजह से, एक के बाद एक ... यह इच्छा, जब यह इच्छा पूरी होती है, दूसरी इच्छा, दूसरी इच्छा, दूसरी इच्छा । इस तरह से तुम केवल समस्याएं को पैदा कर रहे हो । अौर जब इच्छाऍ पूरी नहीं होती हैं, तब हम हताश हो जाते हैं, उलझन में । निराश होती है । एक प्रकार की निराशा, जैसे तुम्हारे देश में हिप्पी, यह भी निराशा है । एक अन्य तरह की निराशा, जैसे हमारे देश में, यह बहुत पुरानी निराशा है, सन्यासी बन जाना । तो सन्यासी बन जाना, ब्रह्म सत्यम जगन मिथ्या, यह दुनिया असत है । कैसे यह असत है ? वह ठीक से इसका उपयोग नहीं कर सका; इसलिए यह असत है । यह असत नहीं है । वैश्णव दर्शन है, यह दुनिया असत नहीं है ; यह सत है । लेकिन गलत तरीके से तुम सोच रहे हो कि "मैं इस दुनिया का भोक्ता हूँ ।" यह गलत है । अगर हम यह स्वीकार करते हैं, कि यह श्री कृष्ण का है, और तुम्हे श्री कृष्ण की सेवा के लिए उपयोग किया जाना चाहिए, तो यह गलत नहीं है । हमने दिया है, यह उदाहरण, कि ये फूल, ये फूल फूलवाले की दुकान में हैं । इतने सारे फूल हैं जो लोग खरीद रहे हैं । हम खरीद रहे हैं, दूसरे खरीद रहे हैं । वे इन्द्रिय संतुष्टि के लिए खरीद रहे हैं, और हम श्री कृष्ण के लिए खरीद रहे हैं । फूल वही है । तो कोई पूछ सकता है कि " आप श्री कृष्ण को अर्पित कर रहे हैं । श्री कृष्ण परम अात्मा हैं, कैसे अाप भौतिक चीज़ों की अर्पित कर रहे हैं, इन फूलों को ?" लेकिन वे जानते नहीं है कि वास्तव में कुछ भी भौतिक नहीं है । जब तुम श्री कृष्ण को भूल जाते हो, यह भौतिक है। यह भौतिक है । यह फूल श्री कृष्ण के लिए ही है । यह आध्यात्मिक है । अौर जब हम इसे ले लेते हैं, यह फूल, मेरे इन्द्रिय संतुष्टि के लिए, यह भौतिक है । यह अविद्या है। अविद्या मतलब अज्ञान । कुछ भी मेरा नहीं है । ईशावास्यम इदम सर्वम, सब कुछ श्री कृष्ण का है । इसलिए हमारा आंदोलन है इस कृष्ण भावनामृत की जागृति के लिए । हमें पता होना चाहिए कि सब कुछ श्री कृष्ण का है । श्री कृष्ण तथ्य हैं । यह दुनिया तथ्य है । यह दुनिया श्री कृष्ण द्वारा बनाई गई है, इसलिए यह भी तथ्य है । तो सब कुछ तथ्य है जब यह कृष्ण भावामृत में किया जाता है । अन्यथा यह माया है, अविद्या । तो अविद्या से, अज्ञानता से, हम इन्द्रिय संतुष्टि का आनंद लेना चाहते हैं, और हम समस्याओं को पैदा करते हैं । हम इतने सारे कृत्रिम काम पैदा करते हैं, उग्र-कर्म । हालांकि हम अविद्या में हैं, श्री कृष्ण की कृपा से सब कुछ बहुत सरल है । जैसे कहीं भी, दुनिया के किसी भी हिस्से में, भोजन है । सब कुछ हैम पूरा, पूर्णम इदम, पूर्णम इदम । जैसे कोई ग्रीनलैंड, अलास्का में रह रहा है, वातावरण हमारे विचार से बहुत अनुकूल नहीं है, लेकिन वे रह रहे हैं, निवासि । कुछ व्यवस्था है । इसी तरह, अगर तुम बारीकी से अध्ययन करो हर जगह ... जैसे पानी में लाखों मछलियॉ हैं । अगर तुम्हे एक नाव में डाला जाए और तुम्हे मान लो एक महीने के लिए उसपर रहना है, तो तुम मर जाओगे । तुम्हे अपने लिए खाना नहीं मिलेगा । लेकिन तब ..., पानी के भीतर, लाखों मछलियॉ हैं, उन्हे पर्याप्त भोजन मिल रहा है । पर्याप्त भोजन । एक भी मछली मरेगी नहीं भोजन के अभाव के कारण । लेकिन अगर तुम्हे पानी में डाला जाए, तो तुम मर जाओगे । तो इसी तरह, भगवान के निर्माण में जीवन की ८४००००० प्रजातियॉ हैं, रुप हैं । तो भगवान नें हर किसी की भोजन दिया है । जैसे जेल में भी अगर तुम हो, सरकार तुम्हे भोजन देती है । इसी तरह, हालांकि यह भौतिक जगत कारागार के रूप में माना जाता है जीव के लिए, फिर भी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है ।
तो हर कोई, असीमित इच्छाअों की वजह से, एक के बाद एक... यह इच्छा, जब यह इच्छा पूरी होती है, दूसरी इच्छा, दूसरी इच्छा, दूसरी इच्छा । इस तरह से तुम केवल समस्याएं पैदा कर रहे हो । अौर जब इच्छाऍ पूरी नहीं होती हैं, तब हम हताश हो जाते हैं, उलझन में । निराशा होती है । एक प्रकार की निराशा, जैसे तुम्हारे देश में हिप्पी, यह भी निराशा है । एक अन्य तरह की निराशा, जैसे हमारे देश में, यह बहुत पुरानी निराशा है, सन्यासी बन जाना । तो सन्यासी बन जाना, ब्रह्म सत्यम जगन मिथ्या, यह दुनिया असत है । कैसे यह असत है ? वह ठीक से इसका उपयोग नहीं कर सका; इसलिए यह असत है । यह असत नहीं है । वैष्णव तत्वज्ञान है, यह दुनिया असत नहीं है ; यह सत है । लेकिन गलत तरीके से तुम सोच रहे हो कि "मैं इस दुनिया का भोक्ता हूँ ।" यह गलत है ।  
 
अगर हम यह स्वीकार करते हैं, कि यह श्री कृष्ण का है, और तुम्हे श्री कृष्ण की सेवा के लिए उपयोग किया जाना चाहिए, तो यह गलत नहीं है । हमने दिया है, यह उदाहरण, कि ये फूल, ये फूल फूलवाले की दुकान में हैं । इतने सारे फूल हैं जो लोग खरीद रहे हैं । हम खरीद रहे हैं, दूसरे खरीद रहे हैं । वे इन्द्रिय संतुष्टि के लिए खरीद रहे हैं, और हम श्री कृष्ण के लिए खरीद रहे हैं । फूल वही है । तो कोई पूछ सकता है कि "आप श्री कृष्ण को अर्पित कर रहे हैं । श्री कृष्ण परम अात्मा हैं, कैसे अाप भौतिक चीज़ों की अर्पित कर रहे हैं, इन फूलों को ?" लेकिन वे जानते नहीं है कि वास्तव में कुछ भी भौतिक नहीं है । जब तुम श्री कृष्ण को भूल जाते हो, यह भौतिक है। यह भौतिक है । यह फूल श्री कृष्ण के लिए ही है । यह आध्यात्मिक है । अौर जब हम इसे लेते हैं, यह फूल, मेरे इन्द्रिय संतुष्टि के लिए, यह भौतिक है । यह अविद्या है।  
 
अविद्या मतलब अज्ञान । कुछ भी मेरा नहीं है । ईशावास्यम इदम सर्वम, सब कुछ श्री कृष्ण का है । इसलिए हमारा आंदोलन है इस कृष्ण भावनामृत की जागृति के लिए । हमें पता होना चाहिए कि सब कुछ श्री कृष्ण का है । श्री कृष्ण तथ्य हैं । यह दुनिया तथ्य है । यह दुनिया श्री कृष्ण द्वारा बनाई गई है, इसलिए यह भी तथ्य है । तो सब कुछ तथ्य है जब यह कृष्ण भावामृत में किया जाता है । अन्यथा यह माया है, अविद्या । तो अविद्या से, अज्ञानता से, हम इन्द्रिय संतुष्टि का आनंद लेना चाहते हैं, और हम समस्याओं को पैदा करते हैं । हम इतने सारे कृत्रिम काम पैदा करते हैं, उग्र-कर्म ।  
 
हालांकि हम अविद्या में हैं, श्री कृष्ण की कृपा से सब कुछ बहुत सरल है । जैसे कहीं भी, दुनिया के किसी भी हिस्से में, भोजन है । सब कुछ है पूरा, पूर्णम इदम, पूर्णम इदम । जैसे कोई ग्रीनलैंड, अलास्का में रह रहा है, वातावरण हमारे विचार से बहुत अनुकूल नहीं है, लेकिन निवासी वहा रह रहे हैं । कुछ व्यवस्था है । इसी तरह, अगर तुम बारीकी से अध्ययन करो हर जगह... जैसे पानी में लाखों मछलियॉ हैं । अगर तुम्हे एक नाव में डाला जाए और तुम्हे मान लो एक महीने के लिए उस पर रहना है, तो तुम मर जाओगे । तुम्हे अपने लिए खाना नहीं मिलेगा । लेकिन तब..., पानी के भीतर, लाखों मछलियॉ हैं, उन्हे पर्याप्त भोजन मिल रहा है । पर्याप्त भोजन । एक भी मछली मरेगी नहीं भोजन के अभाव के कारण । लेकिन अगर तुम्हे पानी में डाला जाए, तो तुम मर जाओगे । तो इसी तरह, भगवान के निर्माण में जीवन की ८४,००,००० प्रजातियॉ हैं, रुप हैं ।  
 
तो भगवान नें हर किसी की भोजन दिया है । जैसे जेल में भी अगर तुम हो, सरकार तुम्हे भोजन देती है । इसी तरह, हालांकि यह भौतिक जगत कारागार के रूप में माना जाता है जीव के लिए, फिर भी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है ।  
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Latest revision as of 14:14, 27 October 2018



730427 - Lecture SB 01.08.35 - Los Angeles

तो हर कोई, असीमित इच्छाअों की वजह से, एक के बाद एक... यह इच्छा, जब यह इच्छा पूरी होती है, दूसरी इच्छा, दूसरी इच्छा, दूसरी इच्छा । इस तरह से तुम केवल समस्याएं पैदा कर रहे हो । अौर जब इच्छाऍ पूरी नहीं होती हैं, तब हम हताश हो जाते हैं, उलझन में । निराशा होती है । एक प्रकार की निराशा, जैसे तुम्हारे देश में हिप्पी, यह भी निराशा है । एक अन्य तरह की निराशा, जैसे हमारे देश में, यह बहुत पुरानी निराशा है, सन्यासी बन जाना । तो सन्यासी बन जाना, ब्रह्म सत्यम जगन मिथ्या, यह दुनिया असत है । कैसे यह असत है ? वह ठीक से इसका उपयोग नहीं कर सका; इसलिए यह असत है । यह असत नहीं है । वैष्णव तत्वज्ञान है, यह दुनिया असत नहीं है ; यह सत है । लेकिन गलत तरीके से तुम सोच रहे हो कि "मैं इस दुनिया का भोक्ता हूँ ।" यह गलत है ।

अगर हम यह स्वीकार करते हैं, कि यह श्री कृष्ण का है, और तुम्हे श्री कृष्ण की सेवा के लिए उपयोग किया जाना चाहिए, तो यह गलत नहीं है । हमने दिया है, यह उदाहरण, कि ये फूल, ये फूल फूलवाले की दुकान में हैं । इतने सारे फूल हैं जो लोग खरीद रहे हैं । हम खरीद रहे हैं, दूसरे खरीद रहे हैं । वे इन्द्रिय संतुष्टि के लिए खरीद रहे हैं, और हम श्री कृष्ण के लिए खरीद रहे हैं । फूल वही है । तो कोई पूछ सकता है कि "आप श्री कृष्ण को अर्पित कर रहे हैं । श्री कृष्ण परम अात्मा हैं, कैसे अाप भौतिक चीज़ों की अर्पित कर रहे हैं, इन फूलों को ?" लेकिन वे जानते नहीं है कि वास्तव में कुछ भी भौतिक नहीं है । जब तुम श्री कृष्ण को भूल जाते हो, यह भौतिक है। यह भौतिक है । यह फूल श्री कृष्ण के लिए ही है । यह आध्यात्मिक है । अौर जब हम इसे लेते हैं, यह फूल, मेरे इन्द्रिय संतुष्टि के लिए, यह भौतिक है । यह अविद्या है।

अविद्या मतलब अज्ञान । कुछ भी मेरा नहीं है । ईशावास्यम इदम सर्वम, सब कुछ श्री कृष्ण का है । इसलिए हमारा आंदोलन है इस कृष्ण भावनामृत की जागृति के लिए । हमें पता होना चाहिए कि सब कुछ श्री कृष्ण का है । श्री कृष्ण तथ्य हैं । यह दुनिया तथ्य है । यह दुनिया श्री कृष्ण द्वारा बनाई गई है, इसलिए यह भी तथ्य है । तो सब कुछ तथ्य है जब यह कृष्ण भावामृत में किया जाता है । अन्यथा यह माया है, अविद्या । तो अविद्या से, अज्ञानता से, हम इन्द्रिय संतुष्टि का आनंद लेना चाहते हैं, और हम समस्याओं को पैदा करते हैं । हम इतने सारे कृत्रिम काम पैदा करते हैं, उग्र-कर्म ।

हालांकि हम अविद्या में हैं, श्री कृष्ण की कृपा से सब कुछ बहुत सरल है । जैसे कहीं भी, दुनिया के किसी भी हिस्से में, भोजन है । सब कुछ है पूरा, पूर्णम इदम, पूर्णम इदम । जैसे कोई ग्रीनलैंड, अलास्का में रह रहा है, वातावरण हमारे विचार से बहुत अनुकूल नहीं है, लेकिन निवासी वहा रह रहे हैं । कुछ व्यवस्था है । इसी तरह, अगर तुम बारीकी से अध्ययन करो हर जगह... जैसे पानी में लाखों मछलियॉ हैं । अगर तुम्हे एक नाव में डाला जाए और तुम्हे मान लो एक महीने के लिए उस पर रहना है, तो तुम मर जाओगे । तुम्हे अपने लिए खाना नहीं मिलेगा । लेकिन तब..., पानी के भीतर, लाखों मछलियॉ हैं, उन्हे पर्याप्त भोजन मिल रहा है । पर्याप्त भोजन । एक भी मछली मरेगी नहीं भोजन के अभाव के कारण । लेकिन अगर तुम्हे पानी में डाला जाए, तो तुम मर जाओगे । तो इसी तरह, भगवान के निर्माण में जीवन की ८४,००,००० प्रजातियॉ हैं, रुप हैं ।

तो भगवान नें हर किसी की भोजन दिया है । जैसे जेल में भी अगर तुम हो, सरकार तुम्हे भोजन देती है । इसी तरह, हालांकि यह भौतिक जगत कारागार के रूप में माना जाता है जीव के लिए, फिर भी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है ।