HI/BG 5.18: Difference between revisions

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==== श्लोक 18 ====
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:विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
 
:शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥१८॥
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Latest revision as of 04:55, 2 August 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 18

विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥१८॥

शब्दार्थ

विद्या—शिक्षण; विनय—तथा विनम्रता से; सम्पन्ने—युक्त; ब्राह्मणे—ब्राह्मण में; गवि—गाय में; हस्तिनि—हाथी में; शुनि—कुत्ते में; च—तथा; एव—निश्चय ही; श्वपा के—कुत्ताभक्षी (चाण्डाल) में; च—क्रमश:; पण्डिता:—ज्ञानी; सम-दॢशन:—समान ²ष्टि से देखने वाले।

अनुवाद

विनम्र साधुपुरुष अपने वास्तविक ज्ञान के कारण एक विद्वान् तथा विनीत ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता तथा चाण्डाल को समान दृष्टि (समभाव) से देखते हैं |

तात्पर्य

कृष्णभावनाभावित व्यक्ति योनि या जाति में भेद नहीं मानता | सामाजिक दृष्टि से ब्राह्मण तथा चाण्डाल भिन्न-भिन्न हो सकते हैं अथवा योनि के अनुसार कुत्ता, गाय तथा हाथी भिन्न हो सकते हैं, किन्तु विद्वान् योगी की दृष्टि में ये शरीरगत भेद अर्थहीन होते हैं | इसका कारण परमेश्र्वर से उनका सम्बन्ध है और परमेश्र्वर परमात्मा रूप में हर एक के हृदय में स्थित हैं | परमसत्य का ऐसा ज्ञान वास्तविक (यथार्थ) ज्ञान है | जहाँ तक विभिन्न जातियों या विभिन्न योनियों में शरीर का सम्बन्ध है, भगवान् सबों पर समान रूप से दयालु हैं क्योंकि वे प्रत्येक जीव को अपना मित्र मानते हैं फिर भी जीवों की समस्त परिस्थितियों में वे अपना परमात्मा स्वरूप बनाये रखते हैं | परमात्मा रूप में भगवान् चाण्डाल तथा ब्राह्मण दोनों में उपस्थित रहते हैं, यद्यपि इन दोनों के शरीर एक से नहीं होते | शरीर तो प्रकृति के गुणों द्वारा उत्पन्न हुए हैं, किन्तु शरीर के भीतर आत्मा तथा परमात्मा समान आध्यात्मिक गुण वाले हैं | परन्तु आत्मा तथा परमात्मा की यह समानता उन्हें मात्रात्मक दृष्टि से समान नहीं बनाती क्योंकि व्यष्टि आत्मा किसी विशेष शरीर में उपस्थित होता है, किन्तु परमात्मा प्रत्येक शरीर में है | कृष्णभावनाभावित व्यक्ति को इसका पूर्णज्ञान होता है इसीलिए वह सचमुच ही विद्वान् तथा समदर्शी होता है | आत्मा तथा परमात्मा के लक्षण समान हैं क्योंकि दोनों चेतन, शाश्र्वत तथा आनन्दमय हैं | किन्तु अन्तर इतना ही है कि आत्मा शरीर की सीमा के भीतर सचेतन रहता है जबकि परमात्मा सभी शरीरों में सचेतन है | परमात्मा बिना किसी भेदभाव के सभी शरीरों में विद्यमान है |